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शनिवार, 28 मार्च 2020

आवरण

आवरण
चेहरें पर
क्यों!!!

क्याँ
बाँध
पायेंगे
ये
अव्यक्त
भावनाओं
को
या
जकड़
सकेंगे
मेरी
बेचैनियों
को...

जो
मेरे साथ
ही
जन्म लेती
और
बह
जाती
राख
बनकर...

@व्याकुल

गरीबी


उदर पर हाथ रखें मन ही मन स्वयं से बाते कर रही थी तभी ठेकेदार की घुड़की कान पर पड़ी, 'सिर्फ बच्चे पैदा करवा लो' 'ऐसे ही लोग देश पर बोझ बने हुए है।' 

उसको ऐसा लगा जैसे नींद से जग गयी हो। थक कर चूर हो गयी थी व पॉव कपकँपा रहे थे।

पति की बिमारी ने भी तोड़ कर रख दिया था टी.बी. की बीमारी से ग्रसित उसका पति रात भर खासता रहता था। वह सोचती जा रही थी गरीबी अभिशाप है, इससे मुक्ति कब मिलेगी। पिछले कई दिनों से पति की बीमारी व बच्चे को भी जनने की जिम्मेदारी। हमेशा ही पति को जबर्दस्ती करने से भी मना किया पर मानता कहा था और बच्चों के सामने...

आज सोच ही लिया था कुछ भी हो जाय जहर की पुड़िया ले ही आऊँगी । पर क्या, मेडिकल स्टोर तक पहुँची ही थी,  सभी बच्चे उसके आँखों के सामने तैर गये थे वो बेबस भारी मन से लौट आयी थी ।

ईश्वर से उसकी बस यही ख्वाहिश थी सुबह न देखु । लेकिन गरीब की ख्वाहिश भी कभी पूरी होती है क्या??? आँसु ढलक जाते है असहाय सी अभिलाषा लिये, कभी कोई कृष्ण बन आयेगा गरीबी रूपी दुःशासन से उसको बचायेगा ।

©️व्याकुल

शुक्रवार, 27 मार्च 2020

मेरा शहर बेजान सा क्यों हैं..

मेरा शहर बेजान सा क्यों हैं..

चेहरे नदारद से क्यो हैं
जमीदोंज हुई ये रोनकें
हर तरफ खौफ सा सन्नाटा क्यों हैं
मेरा शहर बेजान सा क्यों हैं..

बालों पर पड़े न धूलों की गुबार
न सड़कों पर आदमियों के धक्कें
ढूँढ रही अपनों को क्यों है
मेरा शहर बेजान सा क्यों है..

लाशों पर उदासियाँ सी है
सनद फाँकों का है या कुछ और
सूखी बूँदों की लकीरें चेहरे पर क्यों है
मेरा शहर बेजान सा क्यों है..

क्यों ढूंढ रहा तुझे दरबदर
बेजूबान से क्यों हो
हर शख्स के मुँह पर ताले क्यो हैं
मेरा शहर बेजान सा क्यों है..

शक से भरी ये निगाहें
ढूँढ रही कातिलों को जैसे
खता से यूँ बेखबर हर शख्स क्यों हैं
मेरा शहर बेजान सा क्यों है..

@व्याकुल

मार्च

मार्च बहुत रुलाता है..

कलम बहुत चलवाता है
छुट्टी ये रुकवाता है
कमर ये तुड़वाता है
मार्च बहुत रुलाता है ।

चिंता ये दिलवाता है
परीक्षा ये करवाता है
गर्मी ये बढ़वाता है
मार्च बहुत रुलाता है ।

बारिश जब हो जाता है
रबी फसल हिल जाता है
हाल बुरा हो जाता है
मार्च बहुत रुलाता है ।

विवाह जब पड़ जाता है
कोई आ नही पाता है
यादे ही रह जाता है
मार्च बहुत रुलाता है ।

त्योहार भी आ जाता है
खर्च ये बढ़वाता है
टैक्स भी कटवाता है
मार्च बहुत रुलाता है ।

@व्याकुल

गुरुवार, 26 मार्च 2020

होली

होरी मनाऊँ कैसे!!!!!!

स्वाँग रचु गोरी का
या ढपली का थाप
बजाऊँ
या फगुआ अलापू
होरी मनाऊँ कैसे

ऊपले चुराऊ
दहन को
या लट्ठ खाऊँ
जोर की
होरी मनाऊँ कैसे

बनारसी रँग में
ढल जाऊँ
या भंग का
नशा कर लूँ
होरी मनाऊँ कैसे

गुझियाँ चखु
गुड़ की
या होरहा
खाऊँ
होरी मनाऊँ कैसे

पोत लूँ
हरा पीला
या छूपा लूँ
रंगभेद
होरी मनाऊँ कैसे

बासंतिक बयार
में डूबू
या झूम जाऊँ
बौर में
होरी मनाऊँ कैसे

गुलाल लपेट
लूँ
गले में
या भोला बन
विषधारी बनु
होरी मनाऊँ कैसे!!!!!


होरी मनाऊँ कैसे!!!!!!
होरी मनाऊँ कैसे!!!!!!

@व्याकुल

सिर्फ तू

मेरे रोम रोम में
नस नस में
सिर्फ तू
और तू
कैसे कहू
तू
कहाँ नही..

हँसता भी
हूँ
तो
खिलखिलाहट
भी तू
रोता हूँ
तो
बेचैनी
भी तू..

इबादत
में भी
सिर्फ तू
करवटें
जब भी
ली
अचैतन्य
में भी
तू..

क्यों समा
से
गये हो
ये
प्रश्न है
तुझसे
हाँ
तुझसे ही..

हाँ
एक बात
जाना तो
साथ
ही जाना
अकेले
गये
तो
किसी को
मै नही
दिखुँगा
हाँ पर
निष्प्राण
अवश्य
हो
जाऊँगा..

@व्याकुल

अधुना


आओं
गढ़ ले
नित नयी
परिभाषाएं
मूँद ले
आँखो कों
और
कलियुगी
पूर्णत्व को
सिधार जायें....

@व्याकुल

हिन्दू चिन्तन



थियोसॉफिस्ट डॉ. एनी बेसेंट कहती थी "मैंने 40 वर्षों तक विश्व के सभी बड़े धर्मों का अध्ययन करके पाया कि हिन्दू धर्म के समान पूर्ण, महान और वैज्ञानिक धर्म कोई नहीं है।"
ऐनी बेसेन्ट का उल्लेख यहाँ इसलिये किया क्योंकि हम लोगो की प्रामाणिकता विदेशी ही देते है ऐसा मै बचपन से देखता आया हूँ। आप चिल्लाते रहिये हमारी संस्कृति, परम्परा या किसी भी मूल्यवान संस्कार के विषय में। कोई नही सुनेगा। विवेकानन्द जी को प्रामाणिकता शिकागो से मिली।
ये धर्म तो सनातनी है मानव उत्पत्ति से पहले का। यह वेदो पर आधारित धर्म है इतना सब कुछ होते हुए भी यह अपने अंदर कई मत, संप्रदाय व उपासना पद्धतियों को समेटे हुए है व कट्टर तो कभी हुआ ही नही।  दर्शन के दृष्टि से भी हम धनी है क्योकि दर्शन हमे लक्ष्य देता है। हिन्दू धर्म अध्यात्म व संस्कृति के दृष्टि से भी सौभाग्यशाली रहा है
यही द्वंद हमेशा से ही मन मे रही अध्यात्म व संस्कृति की। अध्यात्म वो जो आपके भीतर जबकि संस्कृति में उसका परिलक्षित होना है। यही अंतर आप विज्ञान व धर्म में कर सकते है विज्ञान आपको बाहरी ताकत दे सकता है जबकि धर्म अंदर की।
हिंदू धर्म के संस्कृति की बात करे तो आजकल अक्सर आलोचना सुनने को मिल जाती है "असहिष्णुता" है इसमे। वही पिछले 1000 वर्ष के आततायियों पर नजर डालते है व उनको सामानांतर आत्मसात इतने सरल ढंग से किया फिर मन सकारात्मकता से भर गया। इस धर्म की विशाल ह्रदय का भी द्योतक है।
यही बात तो जर्मन दार्शनिक शॉपनहार भी कहते है कि
"जीवन को ऊँचा उठाने वाला उपनिषदों के समान दूसरा कोई अध्ययन का विषय सम्पूर्ण विश्व में नहीं है। इनसे मेरे जीवन को शांति मिली है, इन्हीं से मुझे मृत्यु के समय भी शांति मिलेगी।"
सर्वधर्म समभाव की भावना जितना हिन्दू धर्म समेटे हुए है उतना विश्व के किसी धर्म में नही। इसके लिये ऋगवेद का एक प्रसिद्ध सूक्त का संदर्भ देना समीचीन होगा ‘आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु वि‍श्वत:’ यानी कल्याणकारी सद्-विचार हमारे लिए सभी ओर से आएं ।
अंत मे एक सबसे प्रसिद्ध श्लोक सहिष्णुता पर प्रामाणिकता देते है
ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु। मा विद्विषावहै।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:।।(कठोपनिषद -कृष्ण यजुर्वेद)
ईश्वर हम सब की साथ-साथ रक्षा करें, हम सब का साथ-साथ पालन-पोषण करें, हम साथ-साथ शक्ति प्राप्त करें, हमारी प्राप्त की हुई विद्या तेजप्रद हो, हम परस्पर द्वेष न करें, परस्पर स्नेह करें।

@व्याकुल

जय हिन्द । जय भारत
#विपिन #सर्वधर्मसमभाव #वेद #हिन्दूचिंतन #सहिष्णुता

बुधवार, 25 मार्च 2020

अधूरी चाह


लूट ही लूट जब मचा हों
पेट तब भी न भर रहा हों
भूखे पेट घूम आना किसी
गरीब बस्ती में..

अहं जब चरम पर हों
खुद को जब इन्द्र समझने लगना
कृष्ण बन छतरी तान आना किसी
गरीब बस्ती में...

कबीर जब बनना हों
या वीणा धारिणी तपस्वी होना हो
कुछ अक्षर उकेर आना किसी
गरीब बस्ती में...

भरी थाली खिसकाने का मन हो
या अन्न देव भा न रहे हो
रोटी के दो टुकड़े खा आना किसी
गरीब बस्ती में...

सम्मान न आ रहा हो मातृ का
या चरित्र शोषक का बन गया हों
स्त्री सा जीवन जी आना किसी
गरीब बस्ती में...

@व्याकुल

अभाव


शिकायत
करूँ किससें
उस
लखन से
या पालनहार राम से
जो अब
तारण को
दिखते नही
क्यों
महीन सी
रेखा खींच
दी
गरीबी-अमीरी
की....


कलियुगी
दशानन
के
छुपे नौ
मुख
ऊपर से
आडंबर
करते
तारण का...


छद्म 
भेष धर
करे
हरण 
और
कर दें
तार-तार
गरीब की
मासूमियत
का..

@व्याकुल

हिन्दू चिन्तन

हिन्दू चिन्तन#3

मन्दिर में प्रवचन चल रहा होता है अगर सुनने बैठ गया फिर उठने की इच्छा नही होती। पूरा श्रवण कर ही उठने की इच्छा होती है । अगर बीच में उठ कर घर आ गया तो प्रसंग दीमाग में चल रहा होता है कि इसके बाद क्या हुआ होगा। कुछ वर्ष पूर्व 15 दिन प्रवचन सुनता रहा । वह प्रवचन पूरी तरह तार्किक था । श्रवण का अर्थ ही यही होता है केवल ज्ञान की बातें सुनना नहीं है, बल्कि उनका तार्किक रूप से विश्लेषण कर आत्मसात करना है।
श्रवण का महत्व बताते हुए आचार्य चाणक्य ने कहा है-
श्रुत्वा धर्मं विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम्।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्।।
अर्थात श्रवण करने से धर्म का ज्ञान होता है, सुनकर कुबुद्धि का त्याग किया जाता है, सुनने से ज्ञान की प्राप्ति होती है और श्रवण करने से मुक्ति होती है।
अाध्यात्मिक अभ्यास में तीन चरण होते हैं: श्रवण, मनन और निदिध्यासन। उपनिषद भी व्यक्ति को श्रवण का अभ्यास करने के लिए प्रेरित करते हैं ।
यह सब देख सुनकर ही आभास होता है कि प्राचीन काल में कैसे श्रवण परम्परा से ही वेदों का ज्ञान गुरु से शिष्यों में आया होगा । इसी वजह से वेदों का ज्ञान जीवित रहा अन्यथा ये कभी के भुला दिए गए होते ।
विदेशी आक्रमणकारियों की हमारी संस्कृति से घृणा इस हद तक पराकाष्ठा पर थी कि भट्टियों में लकड़ी की जगह हिन्दुओं के धर्मग्रंथों की पांडुलिपियाँ जलाई जाती रहीं, पुस्तकालयों में जलाई हुई अग्नि महीनों तक जलती रहतीं। करोड़ों ग्रंथों की पांडुलिपियों को नष्ट किया|
वेदों को श्रुति भी कहते है क्योकि वेद श्रवण व याद द्वारा ही संरक्षित रहा है इसे "आम्नाय" भी कहते है। वेदों को अपौरुषेय यानि ईश्वर कृत माना जाता है। यह ज्ञान श्रुति परम्परा के माध्यम से सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने प्राप्त किया था ।
वैदिक संतों के प्रवचनों को सुनते रहना ही सिद्धांत श्रवण है। मन एवं बुद्धि को पवित्र तथा सकारात्मक बनाने के लिए सतत् श्रवण महत्वपूर्ण है।
@व्याकुल

#विपिन
#हिन्दूदर्शन#वेद#श्रवण#श्रुति#आध्यात्म

हिन्दू चिन्तन

हिन्दू चिन्तन#2

बचपन से ही मन्दिर की परिक्रमा करता आया हूँ । परिक्रमा का अर्थ किसी व्यक्ति, देव मूर्ति या स्थान के चारों ओर clockwise घूमना । इसको प्रदक्षिणा भी कहते है । यह हमारे षोडशोपचार पूजा का एक अंग माना जाता रहा है । शादी विवाहों में वर कन्या सात बार अग्नि की परिक्रमा करते है ।
दुनिया के जितने भी धर्म है जहाँ जहाँ प्ररिक्रमा की जाती है हिन्दू धर्म की देन है बाकी के धर्मो में जैन, सिख, बौद्ध व इस्लाम । इस्लाम में प्रदक्षिणा को तवाफ कहते हैं।
गणेश भगवान द्वारा अपने माता व पिता के परिक्रमा कर संदेश दिया था कि यह प्रथा कितनी प्राचीन है ।
हिन्दू धर्म में देवताओं के लियें अलग अलग प्रदक्षिणा का प्रावधान है।
'कर्म लोचन' नामक ग्रंथ में लिखा गया है कि- ''एका चण्ड्या रवे: सप्त तिस्र: कार्या विनायके। हरेश्चतस्र: कर्तव्या: शिवस्यार्धप्रदक्षिणा।'' अर्थात दुर्गाजी की एक, सूर्य की सात, गणेशजी की तीन, विष्णु भगवान की चार एवं शिवजी की आधी प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
@व्याकुल

#विपिन #हिन्दूधर्म #दर्शन #प्रदक्षिणा #हिन्दूचिंतन

हिन्दू चिन्तन

हिन्दू चिन्तन#1



थोरो नामक पाश्‍चात्त्य तत्त्वज्ञानीको किसीने पूछा कि आपका आचरण एवं विचार इतने अच्छे कैसे हैं ? इसपर उसने तत्काल उत्तर दिया, ‘’ मैं नित्य प्रातःकाल अपने हृदय और बुद्धि को गीतारूपी पवित्र जल में स्नान कराता हूँ।’’
थोरो का कहना था "प्राचीन युग की सभी स्मरणीय वस्तुओं में भगवदगीता से श्रेष्ठ कोई भी वस्तु नहीं है। गीता के साथ तुलना करने पर जगत का समस्त आधुनिक ज्ञान मुझे तुच्छ लगता है।"
ऐसा था अपना सनातन धर्म। हिन्दू ही क्या विदेशी धरती पर भी लोगो को प्रेरित करती रही है..
अमेरिकावासी  हेनरी डेविड थोरो  विख्यात समाज-सुधारक थे। वे ' सविनय अवज्ञा आंदोलन' के जनक थे जिनसे गांधी ने अपना सविनय अवज्ञा आंदोलन' लिया था। थोरो भारतीय दर्शन की किताबें बड़े चाव से पढ़ते थे उनके पास गीता के अलावा भारतीय दार्शनिकों के कई ग्रन्थ थें। थोरो ने हिन्दू दर्शन व धर्म की कई जगहों पर खुलकर प्रशंसा की है।

इन्होने अपनी पुस्तक 'लाइफ इन दी वुड्स' में जीवन में निडरता व शांति के साथ ही साथ सत्य पर विशेष बल दिया । आपके दर्शन में भारतीय दर्शन की छाया परिलक्षित होती है ।

@व्याकुल

#विपिन पाण्डेय
#हिन्दूदर्शन#वेद#थोरो#सविनय

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...