आवरण
चेहरें पर
क्यों!!!
क्याँ
बाँध
पायेंगे
ये
अव्यक्त
भावनाओं
को
या
जकड़
सकेंगे
मेरी
बेचैनियों
को...
जो
मेरे साथ
ही
जन्म लेती
और
बह
जाती
राख
बनकर...
@व्याकुल
आस पास तड़पते लोगो को देखना और कुछ न कर पाना कितनी कोफ़्त होती है न। व्याकुलता ऐसे ही थोड़े न जन्म लेती है। कितना तड़प चुका होगा वो। रक्त का एक एक कतरा बह रहा होगा। दिल से कह ले या आँखों से। ह्रदय ग्लानि से कितना विदीर्ण हो चुका होगा। पैर भी ठहर गए होंगे। असहाय इस दुनिया में सिवाय एक निर्जीव शरीर के।
थोरो नामक पाश्चात्त्य तत्त्वज्ञानीको किसीने पूछा कि आपका आचरण एवं विचार इतने अच्छे कैसे हैं ? इसपर उसने तत्काल उत्तर दिया, ‘’ मैं नित्य प्रातःकाल अपने हृदय और बुद्धि को गीतारूपी पवित्र जल में स्नान कराता हूँ।’’थोरो का कहना था "प्राचीन युग की सभी स्मरणीय वस्तुओं में भगवदगीता से श्रेष्ठ कोई भी वस्तु नहीं है। गीता के साथ तुलना करने पर जगत का समस्त आधुनिक ज्ञान मुझे तुच्छ लगता है।"ऐसा था अपना सनातन धर्म। हिन्दू ही क्या विदेशी धरती पर भी लोगो को प्रेरित करती रही है..अमेरिकावासी हेनरी डेविड थोरो विख्यात समाज-सुधारक थे। वे ' सविनय अवज्ञा आंदोलन' के जनक थे जिनसे गांधी ने अपना सविनय अवज्ञा आंदोलन' लिया था। थोरो भारतीय दर्शन की किताबें बड़े चाव से पढ़ते थे उनके पास गीता के अलावा भारतीय दार्शनिकों के कई ग्रन्थ थें। थोरो ने हिन्दू दर्शन व धर्म की कई जगहों पर खुलकर प्रशंसा की है।
मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...