FOLLOWER

गुरुवार, 14 अप्रैल 2022

डरा रहता हूँ

डरा रहता हूँ...

डरा ही रहता हूँ..


कंपित मन बुजुर्गों के बिछड़ने से

या गंभीर से खामोश लफ्जों से


बड़ों की बढ़ती झुर्रियो से  

शुन्यता पर उलझतें नजरों से


महफ़िलो में सधे अल्फ़ाजो से

कोठरियों में हाफते फेफड़ों से


काँपते उँगलियों की थपकियों से

अन्तर्मन में बहते अश्रुओं से


ढलते उम्र की शीर्षता से

या घाटी से झुके कंधो से


अवसान की सीढ़ियों से

या डग मग बढ़े कदमों से


डरा रहता हूँ...

डरा ही रहता हूँ..


@व्याकुल

मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

बढ़ते भाव और टोटकहा नींबू

 


हमारे पड़ोस के दो लोगों में जबर्दस्त झगड़ा होता था। ये दोनो ऊपर नीचे रहते थे। ये तो पता नही कि नीचे वाले के आँगन में कौन नींबू और कपड़े में बँधा हुआ सिंदूर फेंक जाता था। नारियल भी होता था। पूरे मोहल्लें में आनन्ददायक माहौल रहता था। एक बार कई दिनों तक कोई आवाज नही आयी। मोहल्ला शूकून में था। 


लम्बे अंतराल के बाद एक दिन फिर जोर से झगड़े की आवाज आने लगी। दोनों के झगड़े में एक पक्ष से मै भी था। मुझे लग रहा था इसमे किसी तीसरे का हाथ था जिसने मजे लेने के लिये ये सब किया होगा। विरोधी पक्ष के पैरोकार मुझसे एक कदम आगे निकले नारियल मुँह मेें डालकर बोले," आप लोग फालतू में घबड़ा रहे है, मुझे देखिये नारियल खा गया और कोई फर्क नही पड़ा"


खैर उनके नारियल खाते ही झगड़ा खत्म हो गया। आज जब नींबू के दाम इतने बढ़ गये है तो शायद विरोधी पक्ष के पैरोकार नारियल खाने के साथ-साथ नींबू भी घर ले जाते और पत्नी के साथ शिकंजी पी रहे होते और ऐसे ही झगड़े होने की उन्हे दरकार होती।


@विपिन "व्याकुल"

रविवार, 10 अप्रैल 2022

हरि मंदिर में राम नवमी

 

"भए प्रगट कृपाला दीनदयाला |

कौसल्या हितकारी।

हरषित महतारी मुनि मन हारी |

अद्भुत रूप बिचारी॥...."


मॉ की पूजा में ये स्वर आज के दिन विशेष रूप से सुनायी पड़ता था। प्रयागराज के मीरापुर मोहल्ला में हरि मंदिर में आज के दिन हर्षोल्लास का माहौल रहता था।

इस दिन भंडारे का भी आयोजन होता था। मेरी आयु बहुत ही छोटी थी। मुझे तो सिर्फ भंडारा ही समझ आता था। हरि मंदिर में प्रवचन का भी आयोजन होता था। मजे की बात ये थी कि ढोलक हमारे मुहल्ले के एक मुस्लिम बजाया करते थे। 

हरि मंदिर के ट्रस्टी में ज्यादातर पंजाबी लोग है जिनके पूर्वज सन् 1947 की त्रासदी झेले थे।

आज भी जब प्रयागराज जाता हूँ। हरि मंदिर मे अवश्य ही जाता हूँ। अब इस मंदिर में भीड़ कम ही देखने को मिलता है। मन दुःखी हो जाता है। सारी भीड़ का खिंचाव मॉ ललिता मंदिर में दिखायी देता है।

आज भी इस मंदिर में जाता हूँ तो दॉये हाथ की अनामिका अपने-आप बजरंग बली की मूर्ति को छू जाती है... जैसे मस्तक पर खुद टीका लगा लूँ... पर आयु अब बाल मन पर हावी हो चुका है...



राम नवमी की आप सभी को बधाई व शुभकामनायें....

@विपिन "व्याकुल"

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...