2) घर के बगल में बगीचा हुआ करता था। तब घर में कुल सदस्यों की संख्या 10-15 की रही होगी। एक मकान में सभी रहते थे। ये 1990 की बात होगी। अब चार मकान है। चारो मकानों में कुल सदस्य 6 है। बगीचा गायब है। ये विकास हुआ है गॉव का। निरीह प्रकृति का दोहन।
3) प्रयागराज के मीरापुर मोहल्ले में नल से पानी की आपूर्ति ठप्प जब भी होती थी। महिला उद्योग इंटर कॉलेज में बना हुआ कुँआ ही आसरा बनता था। ये घटना भी उसी समय का है।
4) पहले दो लेन का हाइवे होता था। चार लेन का हुआ। 6 लेन। अब 8 लेन। बगल के पेड़ नदारद। नये के रोपड़ की कोई निशानी नही।
5) बचपन के गौरैया, गिद्ध और पता नही कितने पक्षी दिखने बंद हो गये। पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ा तो कोई संभाल नही पायेगा। कोविड की भयावहता के सामने सारा विकास धरा रह गया था।
6) सबमर्सिबल घर-घर में व्याप्त है। गॉव हो या शहर। दोहन का कोई हिसाब नही। जनचेतना सुषुप्ता अवस्था में।
सन् 1970 से हर वर्ष "पृथ्वी दिवस" मनाया जाने लगा। हर वर्ष "पृथ्वी दिवस" के लिए एक खास थीम रखी जाती है। पृथ्वी दिवस 2022 की थीम 'इन्वेस्ट इन आवर प्लैनेट' (Invest in Our Planet) है। मानव जाति की भूख खत्म नही हुयी है अभी तक। इन्वेस्ट क्या करेंगे!!!!!!!!!!!!
@विपिन "व्याकुल"