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रविवार, 26 फ़रवरी 2023

चमचागीरी

 


आज जब चमचागीरी एक शान का विषय माना जाता है व किसी बड़े नेता के आगे-पीछे फोटो खिचवाना गर्व का विषय समझा जाता है। राजा हरि सिंह ठीक इसके उलट थे। वो चमचागीरी से बहुत ज्यादा चिढ़ते थे। उन्होनें चमचागीरी के लिये एक खिताब तय किया था जिसका नाम ‘ख़ुशामदी टट्टू’ था। इसमे बन्द दरबार में हर साल सबसे बड़े चमचे को "चाँदी और काँसे के भीख माँगते टट्टू की प्रतिमा" दी जाती थी। आज आवश्यकता है हर स्तर पर इस तरह के ‘ख़ुशामदी टट्टू’ जैसे पुरस्कारों की शुरुआत करने की ताकि चिन्हित किया जा सके चापलूसों को।


@डॉ विपिन "व्याकुल

कऊड़ा


कऊड़ा को छोटा पंचायत स्थल कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी। मचई साधे कऊड़ा के चारों ओर देश दुनिया की चर्चा का शीतकालीन सत्र कहना ही होगा। झगड़े की सम्भावना नही के बराबर ही रहता है क्योकि मजाल है कोई आग की तपिश छोड़ दे। मचई में बईठई का हक घरे का वरिष्ठों को ही रहता था। वईसे पियरा का छोटी-छोटी गोल गद्दियाँनुमा बनती थी। बाल्यावस्था में उसी पर बैठने का हक था। कऊड़ा जलानें का हुनर कुछ ही लोगो को होता था। कंडी या लकड़ी का सामंजस्य कैसे सेट किया जाये कि देर तक अग्नि प्रज्जवलित होता रहे। धूँआ आँख पर लगने पर ये कहा जाता था कि सासू बहुत मानती है..यह सुनकर मन प्रफुल्लित होना स्वाभाविक ही है। आलू या शकरकन्द को भून कर खाने का अलग ही मजा होता था।


@डॉ विपिन "व्याकुल"


मायाजाल

 


बगल से वो निकली ही थी। एक ही झलक देख पाया था मै। मुस्कुराई थी वों।  मन में गुदगुदी होना स्वाभाविक ही था। पहले भी कई बार उसे देखा था पर कभी चेहरे पर निगाह गयी ही नही। आज अॉफिस के मोड़ पर मेरी बाईक और उसकी एक्टिवा आमने-सामने थी। मुस्कुरा रही थी वों। 


अब तो लगभग डेली ही उससे मुलाकात हो जाया करती थी। जब भी पास से निकलती, मुस्कुराते हुये ही मिलती। अब तो मुझे उसकी टाईमिंग भी समझ में आ गयी थी। उसी समय मै भी घर से निकलने लगा। 


कई दिन हो गये थे उसकों मुस्कुराते हुये। आज मन का नियन्त्रण समाप्त हो चुका था। विश्वामित्र साक्षात प्रगट हो चुके थे। काम का गुन ही होता है किं वों आपके बुद्धि को कैद कर ले। आज मै भी कैद में था। मेरी बाईक उसकी एक्टिवा के सामने थी।


मैने उससे पूछना चाहा ही था, "तुम्हारा नाम क्या है... कहॉ जॉब करती हो"


मुझे लगा वों किसी और से बात कर रही। कह रही थी, "रुकों यार, एक सिरफिरा नाम पूछ रहा है??" इसकों निपटा लू पहले।


मै कुछ समझ पाता.. इससे पहले उसने गले में लिपटी नागपाश जैसी किसी चीज को हटाया। ब्लूटूथ ही थी नागपाश के रूप में। 


मैने उसको उसकी मुस्कुराहट के बारे में पूछा। उसने आश्चर्यचकित होकर मुझे देखा। बोली भाई!!! " मै किसी और से बात करती हूँ" " कृपया आप गलतफहमी न पालें"


वों फुर्र से हवा हो गयी।


मै जड़वत् रहा व उसके ब्लूटूथ की महिमा का शिकार हो चुका था।


@डॉ विपिन "व्याकुल"

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...