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रविवार, 26 फ़रवरी 2023

मायाजाल

 


बगल से वो निकली ही थी। एक ही झलक देख पाया था मै। मुस्कुराई थी वों।  मन में गुदगुदी होना स्वाभाविक ही था। पहले भी कई बार उसे देखा था पर कभी चेहरे पर निगाह गयी ही नही। आज अॉफिस के मोड़ पर मेरी बाईक और उसकी एक्टिवा आमने-सामने थी। मुस्कुरा रही थी वों। 


अब तो लगभग डेली ही उससे मुलाकात हो जाया करती थी। जब भी पास से निकलती, मुस्कुराते हुये ही मिलती। अब तो मुझे उसकी टाईमिंग भी समझ में आ गयी थी। उसी समय मै भी घर से निकलने लगा। 


कई दिन हो गये थे उसकों मुस्कुराते हुये। आज मन का नियन्त्रण समाप्त हो चुका था। विश्वामित्र साक्षात प्रगट हो चुके थे। काम का गुन ही होता है किं वों आपके बुद्धि को कैद कर ले। आज मै भी कैद में था। मेरी बाईक उसकी एक्टिवा के सामने थी।


मैने उससे पूछना चाहा ही था, "तुम्हारा नाम क्या है... कहॉ जॉब करती हो"


मुझे लगा वों किसी और से बात कर रही। कह रही थी, "रुकों यार, एक सिरफिरा नाम पूछ रहा है??" इसकों निपटा लू पहले।


मै कुछ समझ पाता.. इससे पहले उसने गले में लिपटी नागपाश जैसी किसी चीज को हटाया। ब्लूटूथ ही थी नागपाश के रूप में। 


मैने उसको उसकी मुस्कुराहट के बारे में पूछा। उसने आश्चर्यचकित होकर मुझे देखा। बोली भाई!!! " मै किसी और से बात करती हूँ" " कृपया आप गलतफहमी न पालें"


वों फुर्र से हवा हो गयी।


मै जड़वत् रहा व उसके ब्लूटूथ की महिमा का शिकार हो चुका था।


@डॉ विपिन "व्याकुल"

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