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रविवार, 26 फ़रवरी 2023

कऊड़ा


कऊड़ा को छोटा पंचायत स्थल कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी। मचई साधे कऊड़ा के चारों ओर देश दुनिया की चर्चा का शीतकालीन सत्र कहना ही होगा। झगड़े की सम्भावना नही के बराबर ही रहता है क्योकि मजाल है कोई आग की तपिश छोड़ दे। मचई में बईठई का हक घरे का वरिष्ठों को ही रहता था। वईसे पियरा का छोटी-छोटी गोल गद्दियाँनुमा बनती थी। बाल्यावस्था में उसी पर बैठने का हक था। कऊड़ा जलानें का हुनर कुछ ही लोगो को होता था। कंडी या लकड़ी का सामंजस्य कैसे सेट किया जाये कि देर तक अग्नि प्रज्जवलित होता रहे। धूँआ आँख पर लगने पर ये कहा जाता था कि सासू बहुत मानती है..यह सुनकर मन प्रफुल्लित होना स्वाभाविक ही है। आलू या शकरकन्द को भून कर खाने का अलग ही मजा होता था।


@डॉ विपिन "व्याकुल"


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