मेरा शहर बेजान सा क्यों हैं..
चेहरे नदारद से क्यो हैं
जमीदोंज हुई ये रोनकें
हर तरफ खौफ सा सन्नाटा क्यों हैं
मेरा शहर बेजान सा क्यों हैं..
बालों पर पड़े न धूलों की गुबार
न सड़कों पर आदमियों के धक्कें
ढूँढ रही अपनों को क्यों है
मेरा शहर बेजान सा क्यों है..
लाशों पर उदासियाँ सी है
सनद फाँकों का है या कुछ और
सूखी बूँदों की लकीरें चेहरे पर क्यों है
मेरा शहर बेजान सा क्यों है..
क्यों ढूंढ रहा तुझे दरबदर
बेजूबान से क्यों हो
हर शख्स के मुँह पर ताले क्यो हैं
मेरा शहर बेजान सा क्यों है..
शक से भरी ये निगाहें
ढूँढ रही कातिलों को जैसे
खता से यूँ बेखबर हर शख्स क्यों हैं
मेरा शहर बेजान सा क्यों है..
@व्याकुल