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शुक्रवार, 25 जून 2021

प्रकृति

करूँ कैसे परिभाषाएं प्रकृति का 

गर समेट लूँ निश्चल मन बाल पन का

देखना कौन चाहे श्रृंगार प्रकृति का
निहार सके है जो अलंकृत सद्गुणी का

भाषा किसने सुना है प्रकृति का
कायल हो सका है जो मृदुभाषी का

पहनावा गढ़े है वो प्रकृति का
जो झाँक सके है सौम्य अन्तर्मन का

कर न सके नकली मीत प्रकृति का
जैसे ज्योति हर सके है व्याप्त तम का

ढाल सके है कौन खुद को प्रकृति सा
आसान नहीं बनना भगीरथ गंगा सा

आओ देखे घाव भरा तन प्रकृति का
देख सके है जो अविरल आँशू लहू का

@व्याकुल

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