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शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

जाति या स्टेट्स



बहुत दिनों से इस पर लिखने की सोच रहा था पर विषय की संवेदनशीलता को लेकर लिखने में संकोच कर रहा था। पहलें बचपन की  2-3 घटनाओं का उल्लेख करना चाहूँगा-

1) प्रयागराज में एक विशेष जाति के भैया दूध लेकर आते थे। उनके आने और मेरे स्कूल जाने का समय एक ही हुआ करता था। अधिकतर दिनों में उनके साथ ही सुबह का नाश्ता होता था। कभी जाति जैसा कोई शब्द नही सुना था और न ही कोई चर्चा।

2) पिछले कई वर्षो से जब भी गॉव जाता हूँ 2-3 विभिन्न जातियों के यहाँ से मट्ठा.. दही व दूध इत्यादि खाने को मिल जाता हैं। आज भी कोई भेदभाव नही दिखता।

ऐसे कई दृष्टांत आप हमेशा देखते होंगे पर चुनाव के समय जातियों के बीच की खाई कुछ ज़्यादा ही बढ़ जाती हैं। शादी-विवाह हो... या खान-पान व्यक्ति का स्टेट्स ही देखा जाता है। आपने कभी इस बात पर ध्यान ही नही दिया होगा कि आप साल भर शायद ही अपने स्टेट्स से बड़े लोंगो के यहाँ गये होंगे। शायद कुछ अपवाद को छोड़कर। बहुत अमीर हो तो सिर्फ स्टेट्स ही चलता है। जाति कोई मायने नही रखती। भीड़ बढ़ानी हो या आपका दुरुपयोग करना हो तो जाति का महत्व और बढ़ जाता हैं। चुनावी मौसम है भीड़ बढ़ाने का मौसम।

हिंदुस्तान विविधताओं का देश है... जाति.. उपजाति... उप-उपजाति..लोंगो को अपने में समाहित करने की कला हमारें खून में है कितने विदेशी आये यहाँ की मेजबानी के कायल हो कर रह गयें..शायद यह कला हम अपनों के मध्य में ही रह कर सीख पायें... देश की वैविध्यता का आनंद लीजिये और जाति भूलकर अपने स्टेट्स तक ही सीमित रहिये....

@विपिन "व्याकुल"

नियति

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