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सोमवार, 10 मार्च 2025

समय का पहिया

 


वह जोमैटो में डिलीवरी बॉय बन गया था। रात दिन कभी इधर तो कभी उधर। बस शहर के चक्कर लगाते रहना है। 


कभी किसी कॉलेज के हॉस्टल में जाना होता था तो कॉलेज के पुराने दिन याद आ जाते थे यह भी याद आता था की कैसे उसका  विद्यार्थी जीवन  आनंदमय रहा था।


 कभी सुबह के नाश्ते में पोहा बड़ा ही पसंद आता था। उसकी वजह यह थी कि मिताली को सुबह पोहा कैंटीन में चाहिए था। वह मिताली को बेहद पसंद करता था तो उसने भी पोहा खाने की आदत बना ही ली थी और कितनी ही बार मैंने उसका पेमेंट भी किया था।


मैंने तो पोहा ही खाना छोड़ दिया था जबसे कॉलेज लाइफ छोड़ा। आज अचानक पता नहीं क्यों मिताली बहुत ही याद आ रही थी जैसे लग रहा था कि वह इसी शहर में कहीं है। 


 एक फ़ूड कोर्ट मैं आर्डर लेने के लिए खड़ा ही था मुझे कैश में एक महिला दिखाई दी। मेरे तो जैसे पंख ही लग गए थे। मैं ध्यान से देखा तो मिताली ही लगी।इतने बड़े रेस्टोरेंट की मालकिन। मै खुश हो गया। मैं तुरंत बाइक को स्टैंड पर लगाया और पास गया। " मिताली!!!  पहचाना" उसने बोला, ” मुझे याद तो नहीं आ रहा” मैंने कहा, "हर सुबह हम लोग दिल्ली कॉलेज कैंटीन में पोहा खाते थे" "क्या तुम्हें कुछ भी याद नहीं” उसने कहा, ”कुछ भी याद नहीं, पहले यह बताओ तुम क्या कर रहे हो” मैंने बताया कि "मैं जोमैटो में डिलीवरी बॉय हूँ" उसने बोला, "सॉरी, पहचान नहीं पा रही हूं” मैंने कहा, ”ठीक से देखो, मै मुकेश।" 


 "मै किसी मुकेश वुकेश को नहीं जानती" पर यह याद रखना डिलीवर करने जाते हो तो फीडबैक लेना मत भूलना। 


सारे स्टाफ के चेहरे पर व्यंगात्मक हसीं थी। इस जवाब से मैं ज़मीन में गड़ गया। चलते वक्त सिर्फ इतना ही सुन पाया था की "यह तब भी लफँगा था और आज भी वैसा ही है।"


मै बहुत जल्दी वहां से बहुत दूर चला जाना चाहता था।


@डॉ विपिन पाण्डेय "व्याकुल"




सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

ख़्वाहिश

पता है मुझे वों सीतारें है फ़लक के 

जमीं पर रहें पाँव के निशाँ जरूर देखना 


बदलते मौसम की गठरी ग़ुरूर की ज़ब हो 

बहते हुए पसीने की आजिज़ी जरूर देखना


बढ़ चुके जों कदम छोड़ कर तन्हा मुझे 

समय मिले तो पुराने तोहफ़ो को जरूर देखना 


किस्से किताबों में ज़ब दफ़न हो जाये 

पहले पन्ने की सिसकियों को जरूर देखना


खूब करें गुफ़्तगू अजनबी तमाशाइयों से 

साहिल रहें उस शाम "व्याकुल" जरूर देखना


@डॉ विपिन पाण्डेय "व्याकुल"


आजिज़ी = बेबसी




रविवार, 27 फ़रवरी 2022

सूखे पत्ते


पतझड़

के मौसम

में

पेड़ से

गिरते

झरते

सूखे पत्ते...



तंद्रा

भंग करती

हर-पल

प्रतिपल

अहसास कराती

साथ होने का

जैसे

छाँव दिया था

कभी....


बसंत 

भले ही गढ़े

खुद को

नयेे कोपलों

से 

पर

ख्वाहिश

रहती

उन सूखे

पत्तों की

जो

गिरते रहे थे

सर पर

जैसे

बुजुर्ग सा

आशीर्वाद

दे रहे हो

काँपते-हिलते

हाथों से.....


@व्याकुल



धाकड़ पथ

 धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...