घुटने को माथे तक सिकोड़ ली
गरीब की कथरी जब पैरो से सरक गयी...
आँसु बेसुध से बह गये
रोटी की भूख से जब पड़ोसी तड़प गये...
माथे की लकीरे बयाँ कर गयी
खेत की बेहन जब दगा कर गयी...
फंदा तलाशता रहा रात भर
वो भी मुझसे दगा कर गयी...
नजरे चुरा फिरता रहा 'व्याकुल'
खेत रेहन से जो उलझ गयी...
@व्याकुल