कहाँ से शुरू करू??
कर्मस्थली इलाहाबाद!
बचपन इलाहाबाद!
आध्यात्मिक इलाहाबाद!
मीरापुर के एम. एल. कान्वेंट से स्कूली शिक्षा प्रारम्भ होकर जमुना क्रिश्चियन से होते हुए जी. आई. सी. तक हुई।
जमुना क्रिश्चियन में पढ़ाई के दौरान बेंत आज भी याद है। यहॉ पढाई के दौरान कॉलेज के पीछे जमुना घाट तक चले जाने का साहस करना फिर डरते रहना कोई गुरू जी न आ जायें।
जी. आई. सी. इलाहाबाद में पढ़ाई के दौरान हिन्दी की कक्षाओं में गायब हो जाना और कई बार पकड़े जाना। हिन्दी के वही गुरू जी का हमारी आयु के हिसाब से बाते करना व साथी विद्यार्थीयों का ठसाठस कक्षा में पुनः अवतरण।
कौन इलाहाबाद को भूलना चाहेगा चप्पल घिसना माघ मेले में। एकाएक मूड बना लेना फिर साईकिल से कटरा स्थित सिनेमा देख आना।
बड़े होने का या बौद्धिक प्राणी का अहसास करना होना हो तो कॉफी हाऊस घूम आना।
दोस्तों के साथ रात में पार्टी फिर सिविल लाईन्स चर्च पर फोटो खिचवाना।
अंतहीन सिलसिला है.. तन कही भी रहे मन घूम फिर कर इलाहाबाद ही अटक जाता है असीम यादें है जो चिरन्तन है।
वासी मीरापुर। विश्वविद्यालय में प्रवेश करते ही सिविल का भूत समा जाता है वहाँ से गिरे तो डॉक्टरेट या कुछ कर गुजरने का नशा पलकों पर विराज हो ही जाता है।
वाह रे इलाहाबाद!!!!!
@व्याकुल