मिज़ाज क्या पूछा उनसे
मुस्कुरा दिये वो
मिरे मिज़ाज को
गुलबहार कर गये हो जैसे
मिज़ाज के खातिर
उँगलियां क्या छूई
काँपती हुई सी
कुछ इशारा कर गये हो जैसे
मिज़ाज की नब्ज टटोलने
निगाहें जो फेरी ऊधर
पलक बन्द कर
रूहानियत कर गये हो जैसे
मिज़ाज दरयाफ्त को
गया जो गली तक
होंठ बुदबुदायें ऐसे
सब बयां कर गये हो जैसे
मिज़ाज उनका
बना पैमाना मिरा 'व्याकुल'
जुस्तजू मुसलसल उनकी
हाल नासाज़ कर गये हो जैसे
@व्याकुल