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शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

मिज़ाज

मिज़ाज क्या पूछा उनसे

मुस्कुरा दिये वो

मिरे मिज़ाज को

गुलबहार कर गये हो जैसे


मिज़ाज के खातिर

उँगलियां क्या छूई

काँपती हुई सी

कुछ इशारा कर गये हो जैसे


मिज़ाज की नब्ज टटोलने

निगाहें जो फेरी ऊधर

पलक बन्द कर

रूहानियत कर गये हो जैसे


मिज़ाज दरयाफ्त को

गया जो गली तक

होंठ बुदबुदायें ऐसे

सब बयां कर गये हो जैसे


मिज़ाज उनका

बना पैमाना मिरा 'व्याकुल'

जुस्तजू मुसलसल उनकी

हाल नासाज़ कर गये हो जैसे


@व्याकुल

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