FOLLOWER

गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

कथरी

घुटने को माथे तक सिकोड़ ली

गरीब की कथरी जब पैरो से सरक गयी...

आँसु बेसुध से बह गये

रोटी की भूख से जब पड़ोसी तड़प गये...

माथे की लकीरे बयाँ कर गयी

खेत की बेहन जब दगा कर गयी...

फंदा तलाशता रहा रात भर

वो भी मुझसे दगा कर गयी...

नजरे चुरा फिरता रहा 'व्याकुल'

खेत रेहन से जो उलझ गयी...

@व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...