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गुरुवार, 30 सितंबर 2021

बापू

जब भी "रघुपति राघव...." धुन सुनाई पड़ता था। श्रद्धा के भाव उमड़ पड़ते थे। गाँधी जी बापू ऐसे ही नही कहे गये होंगे। संरक्षकत्व का भाव जनमामस में जगा जरूर होगा। 

एक आम इंसान जिसने राजनीति को अपने घोर आदर्श रूपी विचारों से भर दिया। संघर्ष से लड़ने का नया शस्त्र दिया। वों शस्त्र लोहे का नही था। विचारों का था।

विचारवान् व्यक्ति सांगठनिक ढांचा खड़ा करते है। अग्नि रूपी सत्ता की आंच से दूर ही रहते है क्योकि उनका विचार समग्र रहता है। वें पथ प्रदर्शक की तरह होते है। उनका कार्य हर क्षेत्र में पूर्णता का मानक खड़ा करना होता है।

गाँधी जी के अच्छें विचारो का स्वयं में समाहित करने की जो कला थी वो उन्हे श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर की ओर अग्रसर करती चली गयी।

अजातशत्रु बमुश्किल से मिलते है। गाँधी जी कोई अजातशत्रु नही थे। उनके भी कई आलोचक रहे है। दृष्टिकोण भिन्न हो सकते है। नज़रिया अलग हो सकता है पर गाँधी दर्शन अकाट्य व देशकाल से परे ही था। आज की पीढ़ी को लगता है जैसे वे अभी भी हमारे साथ है।

देश भ्रमण करना। बंगाल से पख्तून व कश्मीर से लेकर मद्रास तक अपने विचारों की अपार प्रभाव कौन बना पाया। कोई राजा-महाराजा नही थे जो राजसूय यज्ञ किये थे भारत पर एकछत्र राज्य के लिये। ये विचार का विजय ही था। सीमांत गाँधी से राजगोपालाचारी तक सब गाँधी दर्शन के संवाहक थे।

महामानव कहना समीचीन होगा बापू जी को। आदर्शों से समझौता कोई आसान काम नही। पर बापू जी ने आदर्शो को ऊपर रखा। कभी कोई समझौता नही चाहें असहयोग आंदोलन हो या देश बँटवारा। कही डिगे नही। आदर्श पूर्ण जीवन जीना आसान नही। मजबूत इच्छा शक्ति चाहिये अडिग बने रहने के लिये। वे संकीर्णता से दूरी बनाये रखना चाहते थे। सांप्रदायिक भावनाओ के शिकार हो सकते थे पर अपने इंसानियत को दूर ही रखा।

एक विदेशी, माउंटबेटन, जो पराधीन देश के अंतिम क्षणो में आये थे। माउंटबेटन के उद्गार को भला कौन नकार सकता है, "महात्‍मा गांधी को इतिहास में महात्मा बुद्ध और ईसा मसीह का दर्जा प्राप्‍त होगा।"

सत्य के लिये आग्रह "सत्याग्रह" एक मजबूत माध्यम बना न सिर्फ हिन्दुस्तान में वरन् विश्व में। आग्रह सत्य का हो तो बरबस ही वो संत याद आ जाते है......

@व्याकुल

बुधवार, 29 सितंबर 2021

अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस

कुछ दिन पहले एक बुजुर्ग से बात हो रही थी। उस दिन उनका जन्मदिवस था। मैने शुभकामनाओं के साथ 120 वर्ष की उम्र तक दीर्घायु होने की बात कही। वों बोले कम है। मै तो 150 वर्ष तक जिंदा रहने का प्लान किया हूँ। मै सन्न रह गया। ये उनके जिंदादिली का प्रत्यक्ष उदाहरण देख हतप्रभ रह गया। उनके शब्द अन्य बुजुर्गो के लिये प्रेरणादायी है।

इस देश में रिटायर होते ही ये मान लिया जाता है कि कार्य करने की उम्र गयी। कार्यालयों में रिटायर होने के 2-3 वर्ष पहले से ही लोग ढीले पड़ जाते है। मानसिक तौर पर अगर ढीले पड़ गये तो समझिये शारीरिक रूप से आप अक्षम्य हो जायेंगे।

कभी-कभी सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो देखने को मिल जाता है जहाँ बुजुर्ग नाचते गाते मिल जाते है। उन्हे कभी मत कहिये आप नाच नही सकते। आप लोग भी उनके साथ खूब नाचिये। 

मैने african proverb पढ़ा था कि "If you refuse the elder’s advice you will walk the whole day.” सही बात है। बुजुर्गो को नही सुनने का मतलब भटक ही जाना है।

अनुभव बहुत ही कमाल की चीज होती है। अनुभव उम्र के साथ बढ़ता ही जाता है। घर से आप निकले नही कि "फलां रास्ते नही जाना", ये सीख सुनने को मिल जाता है।

                      चित्र: गूगल से
पीढ़ी दर पीढ़ी अनुभव का स्थानान्तरण होता रहता है। बुजुर्ग पीढ़ियों को जोड़ने का काम करती है।

अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस हर वर्ष 1 अक्टूबर को 1990 से मनाया जाता रहा है। संयुक्त परिवार के विघटन से बुजुर्गों की स्थिति दयनीय हो गयी है जो कि भारत की पुरातन सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप नही है....

@व्याकुल

सोमवार, 27 सितंबर 2021

समौरी

अवधी बोली का एक शब्द है "समौरी" इसका अर्थ है समकक्ष या समव्यस्क। हमारे एक भाई है अशोक। मुझसे तीन माह बड़े है। ये कहा जाता है कि वो मेरे समौरी है। इस शब्द की व्युत्पत्ति कैसे हुई बता पाना सम्भव नही पर अवधी बोली का यह आम शब्द है।

अगर आयु के संदर्भ में लिया जाये तो समौरी में 2-3 माह छोटे भी हो सकते है और बड़े भी।

समौरी का अर्थ सिर्फ आयु से ही नही है भाव के भी परिपेक्ष्य में लिया जा सकता है जब भाव के अर्थ एक हो। 

नीचे दिये गये चित्र में मेरे समौरी अशोक भाई है-



आज से ही शुरू कर दीजिये तलाशना आपका समौरी कौन कौन है......

@व्याकुल

रविवार, 26 सितंबर 2021

हेंगा

गॉवों में बरधा (बैल) दुआर (घर के बाहर) की शोभा मानी जाती रही है। खेती की बात हो तो हेंगा शब्द बरबस ही मुँह में आ जाता है। हेंगा का उपयोग मिट्टी के ढेले को समाप्त कर जमीन को समतल करने के काम आता है। 

छोटे बच्चे हेंगा पर बैठकर स्केटिंग जैसा आनन्द लेते थे। बैलों से बँधी रस्सी को पकड़ लिया जाता था। रस्सी को पकड़ते वक्त इस बात का ख्याल रखा जाता था कि शरीर का ऊपरी हिस्सा पीछे की ओर ज्यादा झुका हुआ हो। आगे झुके तो चलते हेंगा में पैर फसने का डर रहता था। किसान गजब का संतुलन बनाये रखते थे।

हेंगा लम्बा व आयताकार व भारी होता है।



हेंगा को पाटा भी कहते है। वैसे देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है।

मै पहली बार बैठते समय डर रहा था। जब इसकी टेक्निकल्टी समझ आयी, फिर मजा आने लगा।

आप भी जरूर मजा लीजिये या बच्चों को इस अनुभव से जरूर अवगत कराइयें.....

@व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...