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गुरुवार, 24 जून 2021

बड़े शहर

 बेस्वादू सा क्यों लगे यें कबीर चौरा

खून लगे हो जैसे बाजार ख़ास का


भूल बैठे है काशी के घाटों की सीढ़ीया

झूठें ख्वाब बाँधे हो टूटते पतंगो सा


कँधे न मिले अश्क ही मिले रुसवाई में

हर शख्स मोल लगाने को तैयार मिला


कई हाथ उठे थे उन तंग गलियों में

उड़ते शहरों की बेरुखी का क्या


ऊँगलियाँ छूटती कैसे घूमते भीड़ में

जेबें जो रहे बेख्याली में "व्याकुल"...

@व्याकुल

धाकड़ पथ

 धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...