शिकायत
करूँ किससें
उस
लखन से
या पालनहार राम से
जो अब
तारण को
दिखते नही
क्यों
महीन सी
रेखा खींच
दी
गरीबी-अमीरी
की....
कलियुगी
दशानन
के
छुपे नौ
मुख
ऊपर से
आडंबर
करते
तारण का...
छद्म
भेष धर
करे
हरण
और
कर दें
तार-तार
गरीब की
मासूमियत
का..
@व्याकुल
आस पास तड़पते लोगो को देखना और कुछ न कर पाना कितनी कोफ़्त होती है न। व्याकुलता ऐसे ही थोड़े न जन्म लेती है। कितना तड़प चुका होगा वो। रक्त का एक एक कतरा बह रहा होगा। दिल से कह ले या आँखों से। ह्रदय ग्लानि से कितना विदीर्ण हो चुका होगा। पैर भी ठहर गए होंगे। असहाय इस दुनिया में सिवाय एक निर्जीव शरीर के।
धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...