(वो पथ जिसने कई शहीदों को अपने सीने लगाया)
पथ वही
पथिक नही
ढूढ़ रहा
पथिक को
जो
बनी थी
मुकुट उसकी..
रक्त रंजीत
हो
हर्षायी
तकती राह
उस राही की..
उस
दृढ़ी की
पावड़े बिछाए
भीड़ों की
श्रृंखला देखती..
ख़ुशी से
मगन
ख़ुशी के
आँसु
छलक जाते
पुष्प की
लय
उस पर
पड़ते..
तंद्रा ही
थी
है पुष्प
ये
विछोह के..
राह तकती
उस वीर की
जिसने
प्राणों की
बलि की..
समर्पित जीवन
की
अभिलाषित
वो पथ
"व्याकुल" सी...
@व्याकुल