वापसी की बेला में
वों
स्वयं ही
रह जाता है
उस अहसास
के साथ
जिसमें
दर्द छुपा होता है
बहुत सी बातों का
कुछ अनकहे
व
बंद हो जाती है कानें
खींच लेती है
लक्ष्मण रेखा
उन
कहकहों से।
दिमाग में
घेर लेती है
चक्रव्यूह सी
शून्यता
जो
खेल
खेलता रहता है
तुझे
अभिमन्यु समझ कर
अब या
लड़ रण में
या
आत्मसमर्पण कर।
@डॉ विपिन "व्याकुल"