बहुत से शहरों में बताशा गली... बताशा मंडी मिल जायेंगे... हमारे जिला भदोही के एक ब्लॉक सुरियाँवा में भी बताशा गली है... किसी जमाने में उस गली में गजब की भीड़ हुआ करती थी। आखिर हो भी क्यों न??? बताशा किसी दिव्य मिठाई से कम थी क्या???? दिव्य तो थी... छोटे वाले बताशा तो दैवों के प्रिय हो गये पर बड़े वाले अनाथ हो गये। ऐसे अनाथ हुये कि बेगारी के शिकार हो गये।
मुझे तो उस गली के मुहाने पर चाय-पकोड़ी की दुकान बखूबी याद है। फिर क्या????कौन छोड़ता है भाई।
बड़े बताशे को पानी में डूबोकर खाने में जो आनंद प्राप्त होता था वो हमे सिखाता था किं हम timing या समय पर कैसे किसी कार्य को करें। बताशा गले भी न और पानी से डूबोकर खाना मन प्रफुल्लित कर देता था।
चित्र: गूगल से
मुझे तो बताशे के ऊपर की चिकनाई बेहद पसंद थी। बस छूते रहो। इसकी चिकनाई और बिच्छू की चिकनाई एक जैसी लगती थी। एक बार तो बिच्छू को घंटो सहला डाला था। बताशे के चक्कर में ऊँगली में पता नही क्या जादू आ गया था किं बिच्छू तक ने डंक को सिकोड़ लिया था।
इलाहाबाद की फुलकी कानपुर आकर बताशा बन गयी और अमर हो गयी....
वैसे तमाम बिमारियों का संबंध हाजमें से है और ये हाजमें को दुरूस्त रखता है...
डायबिटीज वालों को विशेष रूप से बताशों को खाना चाहिये। हो सकता है उन सबकों बताशा का श्राप लग गया हो.....
देर किस बात की... घूम आइये आप भी किसी बताशा गली में..............
@व्याकुल