पता है मुझे वों सीतारें है फ़लक के
जमीं पर रहें पाँव के निशाँ जरूर देखना
बदलते मौसम की गठरी ग़ुरूर की ज़ब हो
बहते हुए पसीने की आजिज़ी जरूर देखना
बढ़ चुके जों कदम छोड़ कर तन्हा मुझे
समय मिले तो पुराने तोहफ़ो को जरूर देखना
किस्से किताबों में ज़ब दफ़न हो जाये
पहले पन्ने की सिसकियों को जरूर देखना
खूब करें गुफ़्तगू अजनबी तमाशाइयों से
साहिल रहें उस शाम "व्याकुल" जरूर देखना
@डॉ विपिन पाण्डेय "व्याकुल"
आजिज़ी = बेबसी
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