निडरता बहुत आवश्यक है जीवन में। अगर आप डर गये तो समझिये गये काम से। डर आपका आत्मविश्वास छीन लेता है।
समाज में जो लोग अग्रिम पंक्ति में है वो कही न कही अपनी निडरता की वजह से। हम आधे से ज्यादा समय इस बात पर निकाल देते है कि लोग क्या कहेंगे। इस प्रकार की चिंता ज्यादातर मध्यम समाज में होता है।
एक प्रकार का और भी डर देखने को मिल जाता है। ये है कल्पना कर लेना कि मेरा नुकसान हो रहा या इस व्यक्ति से नुकसान हो सकता है। फिर उसी के इर्द गिर्द ताने बाने बुन लेना।
अध्यात्म की दृष्टि बहुत जरूरी होती इस डर से उबरने के लिये। इसमे खोने जैसा कुछ नही होता। सब यहीं पाया है कुछ खो भी दिया तो क्या हुआ।
मुझे तो अपने ताऊ जी से बहुत डर लगता था। बड़ी-बड़ी मूँछें, कड़क आवाज। एक बार निडर होकर मित्रवत क्या हुये डर का पता ही नही रहा। पता नही क्यो मीर असर ने ऐसा क्यो कहाँ..
तू ने ही तो यूँ निडर किया है
बस एक मुझे तिरा ही डर है
जो लोग किसी को निडर करते है उनके लिये मन में सम्मान का भाव रहता है। किसी एक के लिये भी आपके मन डर का भाव है तो आप निडर नही हो सकते।
मेरी तो ख्वाहिस है कोई कह दे जैसा तनवीर देहलवी जी कहते है..
साए से चहक जाते थे या फिरते हो शब भर
वल्लाह कि तुम हो गए कितने निडर अब तो
एक बार रात 12 बजे अकेले स्टेशन से अपने गॉव पैदल चला गया था। कुत्तों के भूँकने में डर दिख रहा था। मै था, मेरा साया था चाँदनी रात में और मन में हनुमान चालीसा....
@व्याकुल
Main bht dar dar k padha but end me kutte wali bat par sab dar nikal gya...hehehe
जवाब देंहटाएंOn a serious note
Osho jaisa kuch feel bich k paragraph me..
Thank for this nice composition
ध्यान से पढ़ने के लिये शुक्रिया डॉ नवनीत जी... आपके शब्द प्रेरणा देते है...
हटाएंआप ने सच कहा सर डर चाहें कोई भी हो जब चला जाए तो जीवन में लोग आगे ही बढ़ते हैं
जवाब देंहटाएंशुक्रिया उद्गार हेतु
हटाएंडर के आगे जीत है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शैलजा जी
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