गतांक से आगे...
शादी के इतने वर्षो बाद भी माधुरी का दिनचर्या बहुत ही संतुलित था। नौकरों से दयालुता का व्यवहार था। किसी के भी बीमारी या शादी में पैसे की कोई कमी नही होने देती थी।
आज सुबह पूजा में बैठी ही थी कि घर में कोलाहल का आभास हुआ था। पता चला कि राम दयाल को दिल का दौरा पड़ गया। हॉस्पिटल पहुँच ही पाते साँसे थम चुकी थी। घर पर मातम छाया हुआ था। मोहन को तो जैसे होश ही नही रहा।
समय ने कैसी करवट ले ली थी माधुरी के जीवन में। अभी कुछ ही दिन तो हुये थे मॉ-पिता एक दुर्घटना में चल बसे थे। भईया इलाहाबाद आकर बस गये थे।
अब मोहन अकेला रह गया था। सच ही कहा गया है किं पिता का साथ किसी भगवान से कम नही होता। पिता तो वो हैं जो आपकों कभी हारने नही देते। पिता तो वो हैं अपने सारे अनुभव उड़ेल देते है बच्चों में। उन्हें हमेशा ही अपने बच्चें नासमझ लगते है। मोहन का नियम था, सुबह प्रतिदिन एक घंटे पिता के पास बैठते थे। आज पिता का साया उठने पर किसी से आँखे मिलाने का साहस नही कर पा रहे थे।
ससुर के जाने के बाद से माधुरी ज्यादा सजग रहने लगी थी। उसकों बस हमेशा ही एक बात अखरती रही है.. मुझे आज तक क्यों नही पहले मंजिल पर जाने दिया गया। कुछ लोग तो बे-रोक टोक चले जाते थे, पर मैं नही। आखिर ऐसा क्या था। वों इंतजार में थी किं कभी ऐसा समय आये जब लोग घर में न हो, तब देख आयें। मोहन से कई बार पूछा भी था। उसने हँस कर टाल दिया था और कहा करता था, "तुम्हें बिजनेस समझ नही आयेगा।"
माधुरी असंतुष्ट अपने घरेलू व्यवस्थाओं में लग जाती।
आज सुबह से ही शहर में हलचल थी। इधर कुछ दिनों से समाचारों में भी ये बात सुर्खियाँ बनी हुई थी। दिल्ली से पचास अधिकारियों का डेरा कानपुर में लगा हुआ है....
©️व्याकुल
क्रमशः
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