गतांक से आगे...
टंगमर्ग में दूसरे चरण के चुनाव के बाद हम सभी को तीसरे चरण के चुनाव हेतु श्रीनगर जाना था। श्रीनगर के बेमीना कॉलेज में ठहराया गया। वहॉ एक मजेदार व भयावह घटना घटित होते-होते बची।
पता नही कहा से मुझमें ये साहस आया कि क्या जरूरत है हमे बी. एस. एफ. वालों को साथ लेकर चलने की। 3-4 अपने साथियों से बात की कॉलेज की सुरक्षा चक्र से निकलने की। हम चल पड़े। ये प्लान हुआ कि बाहर निकलकर पी. सी. ओ. से अपने-अपने घरों पर फोन करेंगे।
कॉलेज के मुख्य द्वार पर बात की। अनुमति मिल गयी बाहर निकलने को। जैसे ही हम सभी कॉलेज के बाहर मुख्य सड़क पर आये गोलियाँ चलने की तड़तड़ाहट सुनाई दी। परेशान हो गये थे हम सभी। पॉव ठीठक गये थे। ये हुआ बुद्धिमानी इसी में है लौट चला जाये। लौटा तो कॉलेज का गेट बन्द। हम सभी बाहर। बाहर से आवाज देना और गेट पीटना शुरू कर दिया था चूँकि कुछ ही देर हुआ था सो वो जवान मौके की नजाकत को देखते हुये हम सभी को प्रवेश कराया।
उसने बताया बगल के पुलिस कॉलोनी में फिदाइन हमला हो गया है आप सब इस बगल वाले निर्माणाधीन बिल्डिंग में छुप जाओं। जब गोली चलने की आवाज बंद हो तभी अपने-अपने बटालियन मे जाना।
गोली बंद होने का नाम ही नही ले रहा था। उस निर्माणाधीन बिल्डिंग के छत पर दबे पॉव गया तो एक जवान पोजीशन लिये बैठा था। हम दबे पॉव नीचे आ गये। सोचा अगर कुछ बोला तो कही ये शूट न कर दे।
हम सभी बैठे रहे।
प्राचीन कालीन समय होता तो सूर्य डूबने के साथ बन्दूकें भी थम जाती। अब अँधेरा होने लगा था। हम सभी फस चुके थे। दिमाग ने भी काम करना बंद कर दिया था।
इंसान का असली साहस मुसीबत में ही निकलकर सामने आती है यही हम सभी के साथ हुआ। अब प्रश्न जीवन-मरण का था सोचा गया जो होगा देखा जायेगा। निकल पड़े उस बिल्डिंग से।
अभी कुछ कदम ही चले होंगे। पीछे से बंदूक की नली हमारी पीठ पर। पूछा गया, कौन? हम सभी अपना परिचय बटालियन के साथ दिये। पूछा गया, ' यहॉ क्या कर रहे आप लोग'। निरूत्तर थे हम सभी। क्या जवाब देते?? आदेश, ' जाइये अपने अपने बटालियन में' ।
हम सभी ने आग्रह किया साथ चलने को। दुबारा कभी ऐसा नही सोचने का प्रण लेकर मन व्याकुल रहा।
@व्याकुल
क्रमशः
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