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गुरुवार, 20 जनवरी 2022

बोझ

 


थोप देना

सर पर भारी बोझ

कुन्तल दो कुन्तल

या जितना 

तुम चाहो


शून्य है

हाड़-माँस 

शिराओं 

से 

रक्त

नही बहते

इसमें


क्या कभी

देखा

तुमने

पूरी

गृहस्थी

बसाये-समाये

सर

को 


सफेद 

पोश गण

झूटे

बहस

पर 

बहस

करते रहते

टी.वी.

रेडियो पर...


लाद देते

चुनावी 

वादे

और

फेंक देते

सर की गठरी

मनुज 

की...


@व्याकुल

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