FOLLOWER

बुधवार, 11 मार्च 2020

चापलूसनामा


बड़े बड़े लोग चापलूसों के आगे नतमस्तक रहते है। चापलूस लोग महिमामन्डन मे पीछे नही रहते है। व्यक्ति को एहसास दिला ही देते है किं इस धरा पर आप जैसा शूरवीर नही.. मजाल है कोई दूसरा सही बात कह पाये.. जिसकी सत्ता आने वाली हो या आ चुकी हो उसकी चिंता कर स्थान बना लेते है ये वैसे भी सत्ता से दूर नही रह पाते.. सत्ता से दूर ये ऐसे लगते है जैसे किसी ने इनको बहुत दिन से भूखा रखा हो या गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया हो.. इनका प्रयास जारी रहता है कैसे घुसपैठ किया जाय.. कुछ सत्तासीन को यही चापलूस लोग ही पसंद है इनके बिना सत्ता कुछ फीकी फीकी सी लगती है..बड़ी बड़ी साहित्यिक रचनायें रच गयी इस चक्कर में.. चालीसा तक लिख डाली लोगों ने..

चापलूसों की भी श्रेणी अलग-अलग होती हैं। कुछ लोग जीवनी लिखने के बहाने नजदीकी बनाते है। कुछ जरूरत से ज्यादा चिंता करके जगह बनाते है। कुछ सतत् उपस्थिति दर्शाकर। 

ऐसे लोगों का आत्मविश्वास भी गज़ब का होता है। चेहरा भी दयनीय बना लेते है। एक बार वरदहस्त प्राप्त हो जाये फिर तो पूछियें मत।

बहुत ही ज्यादा समर्पण कर देते है यें खुद को। अब तो जमाना सोशल मीडिया का है। मजाल है चरण पादूका सर पर रखने का कोई मौका चूक जायें।

इनका पूरा एक ग्रूप है हर पार्टी में है यही गठबंधन में भी अहम् भूमिका निभाते है.. हर पार्टी को अपने लोगों के बीच में से ही चापलूसों को चिन्हित करना होगा..

@व्याकुल

मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

मुंतज़िर

बोझिल सांसे थमने को
ढली शाम मुंतज़िर तेरा
©️व्याकुल

मिजाज

मिजाज-ए-शहर इतना ही
हवायें बेचैन है खबर को...
@व्याकुल

चाय या अमृत



ये चाय नही चाह है सा'ब। गॉव में बूढ़े बुजुर्गों को लोटे मे चाय सिप करते देख एक बात जेहन में उठती थी। जरूर ये कोई अमृत है। तब ये अमृत छोटे गिलास मे मिल जाया करता था। लगता था जरूर ये चाय भी समुद्र मंथन का हिस्सा रही होगी। ये देव या दानव दोनो से निगाह चुराकर इंसानी फितरत का शिकार हो गयी होगी। 

चाय हमारी संस्कृति का हिस्सा है या नही चिंतन का विषय हमेशा रहेगा। सुबह की पहली किरण और चाय न मिले तो लगता है दिन ही निरर्थक हो गया। यार!!!!! आज मूड क्यों ऑफ है। उत्तर बस यही सुबह से चाय नही मिली। जी.आई. सी. प्रयागराज मे अध्ययन के दौरान हमारे अंग्रेजी के अध्यापक श्री अवध नारायण पाण्डेय, जो रिश्ते में हमारे मामा लगते थे, कहते थे 'एक चाय ही तो है जिसके बहाने हमारे पेट मे दो बूँद दूध चला जाता है'.. बस वही बात दिल पर लग गयी। कुछ भी हो जाय चाय नही छोड़नी। 

लत भयंकर है छूटनी वाली नही। हमारे यहॉ के विद्यार्थी रात दो बजे चाय की लत में तीन किमी. तक चले जाते है। हर शहर की कुछ मशहूर दूकाने है जैसे कानपुर की बदनाम चाय... शुक्ला चाय...। निःसंदेह बेमिशाल.... सोशल मीडिया का कोई भरोसा नही.. हर दस दिन में एक ही दिवस विचरण करती रहती है.. 

हिन्दुस्तान की माटी की खूबसूरती ही यही है हर दिन हर दिवस हम मनाते है.. आशा है आप चाय रूपी अमृत नही छोड़ेंगे नही तो आपको पाप लगेगा...

©व्याकुल

फलक

चलों फलक से उन्हे भी ढूँढ़ लायें
सीखे थे चलना पकड़ नन्हीं ऊँगलियाँ
@व्याकुल



तदबीर

खुद को गुमराह न कर
सरे बाजार बात न कर
खुद तदबीर तू यू  कर
तकदीर यू नीलाम न कर...
@व्याकुल

अहं

अहं का बीज अंकुरित हो
बेहतर है धूल धुसरित हो जाय...
@व्याकुल

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

मौत


कश्मशा रहा ये सोचकर
कह सकुँ कुछ
हाथ बढ़ाँऊ
और पकडुँ
तेरा हाथ
कह सकुँ
चलो कही घूम ले
या कहु कुछ
बहाने से
तब शायद मान जाओ...

आँखों में आँखे
डाल कर
समझाऊ
अब दुबारा नही होगा
हाथ बढ़ाऊ
तो
छू नही पाता
दूर इतना तो
नही
तुम देखती भी
नही...

आँसु ठहर
गयी
किनारों पर
याद आया
ये तो सिर्फ
एहसास है
अस्तित्व
रूह का..

बस देखते
रहना है
और निरुत्साह सा
भ्रम में जीने की
लालसा...

@व्याकुल

रविवार, 4 मार्च 2018

त्योंहार

हमारे देश मे त्योहारों का बहुत महत्व है। वर्ष भर कई त्यौहार होते है। इसके पीछे शायद हमारे पूर्वजों का यही मकसद रहा होगा कि इसी बहाने जनता जनार्दन इकट्ठे होंगे। मेल मिलाप होगा। जो हमारे कुटीर उद्योग है उनको पनपने का मौका मिलेगा, पर अब तो सब कुछ बदल गया है। इस हाई टेक युग मे सब कुछ रेडी मेड हो गया है। तभी तो माँ माँ बनना भी पसंद नहीं करती। हम अपनी प्राकृतिक विरासत को खोते जा रहे है सिर्फ अनावश्यक बातों मे अटक गए है। आप का इस पर कुछ विचार हो तो अवश्य प्रकट करे....

@ व्याकुल

ऊब

मै एक पत्रिका पढ़ रहा था उसमे एक लेख ओशो के विचारों पर थी।काफी अच्छी लगी । उसमे लिखा था "आदमी बहुत जल्दी ऊब जाता है। किसी भी चीज से ऊब जाता है। अगर सुख ही सुख मिलता जाए, तो मन करता है की थोड़ा दुःख कही से जुटाओ। आदमी बड़े से बड़े महल में जाए, उससे ऊब जाता है । सुन्दर से सुन्दर स्त्री मिले, सुन्दर से सुन्दर पुरुष मिले, उससे भी ऊब जाता है, धन मिले, अपार धन मिले, उससे ऊब जाता है। यश मिले, कीर्ति मिले, उससे भी ऊब जाता है। जो चीज मिल जाए, उससे ऊब जाता है। हाँ, जब तक न मिले बड़ी सजगता दिखलाता है, बड़ी लगन दिखलाता है। लेकिन मिलते ही ऊब जाता है।"

कठिनाई एक ही है की संसार की यात्रा पर प्रयत्न नहीं ऊबता, प्राप्ति उबाती है, और परमात्मा की यात्रा पर प्रयत्न की यात्रा पर प्रयत्न ऊबाता है। प्राप्ति कभी नहीं। जो पा लेता है। वह तो फिर कभी नहीं ऊबता ...

@व्याकुल

धाकड़ पथ

 धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...