खट्!! खट्!!
कुछ ऐसी ही आवाज सुनी थी उसने। उसकी तंद्रा भंग हुई। पसीने से तरबतर थी वों। इतना डरावना सपना। दो मिनट तो उसे नींद से हकीकत की दुनिया में आने में लगा। समझ ही नही पा रही थी कि खट् की आवाज उसने सपने में सुनी या हकीकत में। इंतजार करती रही फिर से किसी हलचल का। भावेश और वो आज ही वैक्सीन लगवाकर आये थे। मांसपेशियों में गजब का दर्द था, जिसकी वजह से आलस्य पूरे शरीर में व्याप्त था और ऊपर से भयानक स्वप्न। दुःस्वप्न देखते देखते जब अहसास होता है कि वो तो मात्र एक दुःस्वप्न ही था तो बड़ा सुकून मिलता है, लगता है जैसे नयी जिन्दगीं मिल गयी हों।
सुबह चार बजे तक उसे नींद नही आई। चिड़ियों की चहचहाट ने अहसास दिला थी कि सुबह हो गयी पर दिमाग में वही सपना घूम रहा था। साकेत का सपने में ऐसी हालत में देखना उसे परेशान कर रहा था।
रात भर सो न पाने से उसे सुबह से सर भारी था। बाई काम करके कब का चली गयी थी व भावेश कब अॉफिस चले गये उसे कुछ पता ही नही चला।
साकेत को तो वो बचपन से जानती थी। ईश्वर करे सपना सच न हो...
@व्याकुल
क्रमशः