गतांक से आगे...
भावेश को आज अॉफिसियल मीटिंग की वजह से देर से आना था। अवनी बेचैन थी। रात भर न सोनें की वजह से कब नींद आ गयीं, पता ही नही चला। शाम को जब बाई ने कॉल बेल बजाई तब नींद से अवनी जागी।
"मेमसाहब, तबियत ठीक नही क्या?"
"ठीक हूँ, एक कप चाय पिला दे।" बात को टालने के लिहाज से बोला था उसने।
बाई तुरंत चाय बना लायी। चाय पीते हुये अवनी को विमल ढाबा याद आ गया, जहॉ वों अनगिनत बार हर शाम साकेत के साथ चाय-कॉफी पीने जाती थी।
साकेत मध्यमवर्गीय परिवार से था। गेहुँआ रंग.. दुबला-पतला.. मुस्कुराता चेहरा। माता-पिता का इकलौता संतान।
उस पहली शाम को उसे अपने घर की तरफ आते देखा था। मेरी तो धड़कन बढ़ गयी थी। मै तुरंत नीचे आ गयी थी। संयोग से सब घर के अंदर थे। मै जैसे ही मेन गेट पर आयी, वो हकलाता हुआ बोला था,
"छत पर पतंग आ गयी है"
मैने वापस पतंग उसको दी ही थी।
"मुझे लोग "साकेत" कहते है। आपका नाम?"
उस अप्रत्याशित बोल ने मेरे होश उड़ा दिये थे। मै तुरंत भाग आयी थी।
क्रमशः
©️व्याकुल