ये चाय नही चाह है सा'ब। गॉव में बूढ़े बुजुर्गों को लोटे मे चाय सिप करते देख एक बात जेहन में उठती थी। जरूर ये कोई अमृत है। तब ये अमृत छोटे गिलास मे मिल जाया करता था। लगता था जरूर ये चाय भी समुद्र मंथन का हिस्सा रही होगी। ये देव या दानव दोनो से निगाह चुराकर इंसानी फितरत का शिकार हो गयी होगी।
चाय हमारी संस्कृति का हिस्सा है या नही चिंतन का विषय हमेशा रहेगा। सुबह की पहली किरण और चाय न मिले तो लगता है दिन ही निरर्थक हो गया। यार!!!!! आज मूड क्यों ऑफ है। उत्तर बस यही सुबह से चाय नही मिली। जी.आई. सी. प्रयागराज मे अध्ययन के दौरान हमारे अंग्रेजी के अध्यापक श्री अवध नारायण पाण्डेय, जो रिश्ते में हमारे मामा लगते थे, कहते थे 'एक चाय ही तो है जिसके बहाने हमारे पेट मे दो बूँद दूध चला जाता है'.. बस वही बात दिल पर लग गयी। कुछ भी हो जाय चाय नही छोड़नी।
लत भयंकर है छूटनी वाली नही। हमारे यहॉ के विद्यार्थी रात दो बजे चाय की लत में तीन किमी. तक चले जाते है। हर शहर की कुछ मशहूर दूकाने है जैसे कानपुर की बदनाम चाय... शुक्ला चाय...। निःसंदेह बेमिशाल.... सोशल मीडिया का कोई भरोसा नही.. हर दस दिन में एक ही दिवस विचरण करती रहती है..
हिन्दुस्तान की माटी की खूबसूरती ही यही है हर दिन हर दिवस हम मनाते है.. आशा है आप चाय रूपी अमृत नही छोड़ेंगे नही तो आपको पाप लगेगा...
©व्याकुल
Bahut khoob
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंBahut khoob.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
जवाब देंहटाएंBdhiya☕
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंare sir man ki baat kah dali rojana sham 3 bje badi yaad ati h iski
जवाब देंहटाएंचाय का नशा शाम को ही क्यों चढ़ता है.... दोपहर हारा है आहट में उसकी...
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