यूँ न कर दूर मुझसे खुद को
कबूतरखाना न कहा जाऊँ
भटक क्यो रहा दरबदर
मुकम्मल ठीकाना हूँ मै
वो भी जमाना था कभी
कई उस्ताद गिरफ्त में थे
तलाश फिर उनकी
शहर बियाबां क्यो हैं..
धूल झाँक रही किताबों से
तेरे निशां छुपे हो जैसे
उँगलिया छूँये उन्हे ऐसे
जमाने से तरस रहा हो जैसे
पन्नों के सुर्ख गुलाब
राज छुपायें हो जैसे
दस्तक से खिले ऐसे
बयां कर रहे हो जैसे
आज भी वही वैसे ही हूँ
प्यार से जहाँ छुपाया तूने
हर शख्स में तलाश तेरी
आप सा रहनुमा हो जैसे
@व्याकुल
Real love for Library
जवाब देंहटाएंIt gives us strength
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