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गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

यादों को बाँधू तो कैसे


यादों को बाँधू तो कैसे

शिकन पेशानी पर यूँ बढ़ती रही
लम्हें भी टूट कर बिखर जाते रहे
यादों को बाँधू तो कैसे

गम को मेरा गम देखा जाता न रहा
खून के घूँट आँखों में उतर जाते रहे
यादों को बाँधू तो कैसे

यादों के दरख्त भी अब रूठ से गये
पसीने बन चाँदनी रात भिगोते रहे
यादों को बाँधू तो कैसे






पन्नों पर लिखी इबारत कैसे पलटते
हर्फ भी नजरों को धोखा देते रहे
यादों को बाँधू तो कैसे

यादें ही थी मिटती रही जेहन से
चश्में भी दिमाग को लगते रहे
यादों को बाँधू तो कैसे

यादों को "व्याकुल" सहेजते कैसे
जो बेचैन से दर-बदर घुटते रहे 
यादों को बाँधू तो कैसे

यादों को बाँधू तो कैसे

@विपिन "व्याकुल"





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