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रविवार, 20 जून 2021

गंगाजल - 5

गतांक से आगे...

माधुरी के भाई अजीत को कोई संतान नही थी। अजीत की पत्नी को ये पसंद नही था कि माधुरी साथ रहे। 

केस बहुत लम्बा चल गया। माधुरी के पास अब पैसे की कमी रहने लगी। गहने सब बिक गये। 

भाई ढाढ़स देता रहता, 

"बहन, तुम पैसे की चिंता न करना"

माधुरी शुन्य में खोई रहती। अपनी हालत पर तरस आ रहा था। 

पिछले बुधवार को जब मोहन को देखने गयी थी, पता चला था किं उसे टी. बी. शिकायत हो गयी थी। बहुत ही कमजोर हो गया था। बात कहाँ हो पाती थी। सिर्फ आँखों में आँसु रहते थे। 

भाभी ठीक से बात नही करती थी। दिन भर लड़ना। घर के सारे काम करवाती रहती थी। हमेशा अजीत से कहती,

"इस कुलक्षणी को घर से निकालों"

"इसका मेरे सिवाय और कौन है" भाई जवाब देता।

माधुरी किस्मत समझ कुछ नही बोलती।

एक दिन पति के चल बसने की खबर आयी। माधुरी निष्प्राण सी हो गयी।

अजीत बहन को बहुत मानता था। घर की प्रतिदिन की किचकिच से बहुत परेशान था। 

एक दिन बहन से बोला,

"बहन,अगर बुरा न मानों तो कही और रहने की व्यवस्था कर दूँ। सारे खर्चे मै दूँगा। घर की किचकिच से बहुत परेशान हूँ"

माधुरी तैयार थी।

बड़े हनुमान के पास एक छोटी कुटिया में माधुरी रहने लगी। भाई कभी कभी मिलने आता था। 

गंगाजल ही जीविका का सहारा रहा। गंगाजल का क्या मूल्य लगाती??? पैसे जितने मिल जाते संतोष कर लेती। कभी गंगाजल लेकर शहर चली जाती। 

बहुत दिन हो गया था भाई को आये। कभी कदम बढ़ते किं भाई को देख आये पर आधे रास्तें से लौट आती। 

आज कुटिया के बाहर भीड़ लगी थी। माधुरी नही रही थी। लोग उसके मुँह में गंगाजल डाल रहे थे। 

हाय!!!!! वों राख बन गंगाजल की होकर रह गयी....

©️व्याकुल

समाप्त

14 टिप्‍पणियां:

  1. इस अत्यंत मार्मिक कथानक को बहुत ही सहज व सरल भाषा शैली के माध्यम से आपने हम सब से साझा किया, इसके लिए बहुत धन्यवाद।

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  2. जीवन के यथार्थ से परिचय कराने वाली..... शानदार

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  3. अंत तक बंधे रहने वाली कहानी का मार्मिक अंत। बढ़ईया

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  4. गंगाजल बहुत ही अच्छी कहानी है अंत तक पढ़ने की उत्सुकता बनी रहती है 👏👍

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