जमीं की तपती धरा पर
मासूम के पाँव न पड़ पायें
डग तेज से चल रहे
बदले कैसे काँधों को..
गॉवों के मेले हो
या धूलों से सने रेले
विश्व दर्शन कराने
उठा ले अपने काँधों पर..
बतायें न कभी पाठ
रीति दुनिया की
सीख ली ढंग जीने की
कर कृतित्व से उनकी..
तन मन निरंतर दौड़ते
खींचते भार अपनो के
भाव छुपा लेते विश्रृंखल
विश्रांत से चेहरे पर..
@व्याकुल"
wah ✌������
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंअति उत्तम
हटाएंप्रेरणा हेतु आपका आभार
हटाएंकृतज्ञता का भाव उत्पन्न करने वाला
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...
हटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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