इलाहाबाद में बारिश के समय नाव को बहते पानी में छोड़ना कितना सुखदाई लगता था। मैं और मेरे बचपन के कई मित्र कागज की नाव बनाकर पानी में छोड़ दिया करते थे। बड़ी अच्छी मित्रता हुआ करती थी। बारिश में केचुओं को इकट्ठा करना.. उनको इधर उधर भटकने ना देना हम सभी का शौक हुआ करता था। हम सभी के एक ही स्कूल व एक ही कक्षा थे। सिर्फ सोने के वक्त हम लोग अलग होते थे।
आज भी बरसात की वह दिन याद है जब मैंने कुछ आहट का आभास किया था जैसे अनिल के घर मारपीट चल रही हो। मेरी उम्र उस वक्त 8 वर्ष की होगी। मैं अबोध बालक देखता हूँ की अनिल के घर से ठेले पर घरेलू सामान लद कर जा रहे थे जो मेरे ह्रदय को विदीर्ण कर देने वाला थे। मैं समझ नहीं पा रहा था कि इतने घनघोर बारिश में कौन घर से बाहर निकलता है पर अनिल व उसके पूरे परिवार का इस तरह से निकलना दुखदाई था।
मैं पूछ भी नहीं सकता था की क्यों यहां से जा रहे हो??? और कहाँ के लिए???
मैंने अपनी मां से पूछा था,
"अनिल कहां जा रहा है?"
मां ने बोला था
"बेटा, यह उसका घर अब नहीं होगा।"
मैंने पूछा, "क्यों माँ???"
मां ने बताया,
"उनके पिता इस घर को जूए में हार गए हैं।"
मुझे तब जूए का अर्थ भी नहीं पता था।
मैंने पूछा, "माँ, जूए में जो लोग मकान हार जाते हैं क्या उन्हें ऐसे मौसम में ही मकान छोड़ना होता है???"
माँ ने मुझे गले लगा लिया था और बोला था, "नहीं बेटा!!!"
मानवता जब मर जाती है तभी मानव को ऐसे हाल पर छोड़ दिया जाता है चाहे रेगिस्तान हो या बाढ़....
माँ की सुनाई कहानी मुझे स्मरण हो आया था..द्रोपदी का क्या हश्र हुआ होगा, उनके पास तो उनकी लाज बचाने को उस युग में कृष्ण थे क्या इस युग में कोई तारणहार बन सकेगा।
@व्याकुल
nice interpretation of Rain
जवाब देंहटाएंThank you so much dr. Sahab
जवाब देंहटाएंSuper se b upar
जवाब देंहटाएंशुक्रिया☺️🤔
जवाब देंहटाएंNice👌👌👌🙏🙏
जवाब देंहटाएंNice write-up
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
जवाब देंहटाएंबढिया..👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
जवाब देंहटाएं