उसने जिद पकड़ ली थी। मेरा हाथ पकड़ कर बोला,
"मुझे कहीं नहीं जाना, मुझे सिर्फ तुम्हारे साथ ही रहना है।"
मैं क्या जवाब देता। मैंने कहा,
"ठीक है भाई, तुम मेरे साथ ही रहना।"
शेखर को आये हुए कुछ घंटे ही व्यतीत हुए थे। मैंने सुन रखा था शेखर की मानसिक हालत ठीक नहीं। शुरुआती बातचीत में मुझे तो सब कुछ ठीक लग रहा था। लगा ही नहीं की उसकी तबीयत ठीक नहीं है।
जब वह घर आया था पुरानी चर्चाएं छेड़ दी थी उसने। मैं भी बहुत देर तक पुरानी यादों में खोया रहा।
बातचीत के बीच में कई बार उसने रिया का नाम लिया था। रिया से वह बहुत प्यार करता था और शायद रिया भी उससे उतना ही प्यार करती थी।
शेखर एक जिंदादिल इंसान था। सिर्फ जिंदादिल इंसान ही नहीं बल्कि पढ़ाकू भी था। ये कह सकते हैं कुछ विशेष गुण जो लोगों को अपने सम्मोहन में बांध देते थे मैं भी शेखर के ही सम्मोहन में बंधा हुआ था। अस्सी के दशक में प्रयागराज के सिविल लाइंस में राजदूत से घूमना हम लोगों का शौक बन गया था कोई नही कह सकता था किं शेखर सोलह वर्षीय बालक है।
तब तक तो सब ठीक था पर अचानक से इन तीन वर्षों में ऐसा क्या हो गया जो शेखर को इतना बदल कर रख दिया था। मेरे सर में दर्द होने लगा था। शेखर की बातें मुझे सुनाई नहीं दे रहे थे। मन द्रवित हो रहा था।
हाय!!!! किस्मत का खेल...
शेखर को आज क्या हो गया। वह आज भी ऐसे बात कर रहा था जैसे रिया से मिलकर आया हो।
रिया मोहल्ले की निहायत खूबसूरत लड़की थी आंखें ऐसी थी जैसे बोल रही हो। सुन्दर इतनी जैसे ईश्वर ने खुद रचा हो। उसके पास से जो गुजरता देखता ही रह जाता।
रिया के जादू में वह पूरी तरह आ चुका था उसने रिया के छत पर जाने का समय व रिया के बाहर निकलने का समय हर चीज पता कर लिया था। बाद में से उसका मिलना जुलना भी जारी हो गया था।
याद है मुझे, जब रिया ने उससे मंदिर में मिलने का वादा किया था। पहली मुलाकात में शेखर बहुत घबराया हुआ था मुझे भी साथ ले गया था। मैं मंदिर के बाहर बैठा रहा शेखर रिया के साथ मंदिर के अंदर गया। कब दोनों दूसरे दरवाजे से निकल गए पता ही नहीं चला। मैं बाहर बैठा इंतजार कर रहा था। एक घंटे बाद जाकर देखा तो दोनों नदारद थे। शेखर रिया का मिलना जुलना जारी हो गया था। कभी कंपनी बाग तो कभी मिंटो पार्क दोनों मिलते रहते थे। मेरी शेखर से मुलाकात अब कम होने लगी थी मुझे लग गया था शेखर का जीवन ठीक चल रहा था। शेखर ने सोच लिया था शादी करना है तो सिर्फ रिया से।
पर होनी को कुछ और ही मंजूर था।
इधर शेखर रिया के प्यार में था, उधर शेखर की मां चल बसी पर शेखर को सहारा देने के लिए रिया तो थी ही ना। मां का गम धीरे धीरे शेखर भूल गया था। उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी जो शेखर को पसंद नहीं करती थी। शेखर पूरी तरह रिया पर निर्भर हो गया था रिया के जादू में सब कुछ भूल बैठा था।
बी.एस.सी. प्रथम वर्ष का परिणाम आया शेखर फेल हो चुका था। इधर रिया बगल में रहने वाले पीयूष की ओर आकर्षित हो गई थी। एम.बी.ए. था पीयूष। एक अच्छी जॉब में था रिया से बड़ा था पर प्यार उम्र कहां देखता है।
रिया ने बात करना बंद कर दिया था। शेखर अब अकेला रह गया था। घर पर सौतेली मां का व्यवहार अन्जाना सा था। इधर रिया ने बात करना बंद कर दिया था।
शेखर बी.एस.सी. में फेल होने के पश्चात पूरा समय जमुना नदी के किनारे मछलियों को गोते लगाते देखा करता था। सोचता था एक दिन मैं भी ऐसे ही गोते लगाऊंगा।
तभी उसने मेरी बाँह बहुत तेजी से झक-झोरी। मैं जैसे तंद्रा से जाग उठा।
उसने कहा, "भाई, मुझे यही रहना तुम्हारे साथ।"
मैं क्या कहता। मैंने कहा, "हां भाई, अब हम लोग एक साथ ही रहेंगे, वह मेरे साथ कई दिन बना रहा"
चार-पांच दिनों के बाद एक सुबह जब मैं उठा तो देखता हूँ किं शेखर नहीं था। एक कागज पर कुछ शब्द लिखे थे, शायद मैं अपनी धुँधली आँखों से यही पढ़ पाया था,
"मुझे भी गोते लगाने हैं भाई," "मुझे भी गोते लगाने हैं भाई।"
@व्याकुल
शायद वोह तैरना नहीं जानता था।
जवाब देंहटाएंसीख नही पाया था सर..
जवाब देंहटाएंऐसा लग है मानो वृतांत आँखों के सामने ही है । 👌👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंआपकी इस कहानी में इतना आकर्षण है कि इसमें इंसान खो जाता है, पढ़ते रहने का मन करता है।
जवाब देंहटाएंप्रणाम सर... प्रेरणादायी है आपके शब्द
हटाएंHeart touching story🌟
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएं����
जवाब देंहटाएंNice story ����
जवाब देंहटाएंThank you
हटाएंEk aur Devdas sambhal nahi paya.Uttam Rachana.
जवाब देंहटाएंप्रणाम मामा जी...शुक्रिया
हटाएंBilkul aaj kal ki zindagi pr aadharit kahaani, apne bahut hi acche dhang se darshaya hai uncle ji
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया.. आपके प्रेरणादायी शब्द से और भी कुछ बेहतर प्रस्तुत करने के लिये उत्साहवर्धन होगा
हटाएंअति सुन्दर वर्णन
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद
हटाएंV nice
जवाब देंहटाएंभाई कब आप कवि से लेखक बन गए और वो भी इतना उम्दा लेखक की बात नही सकता। जो भी कहानियां पढ़ीं आपकी वो दिल को छू गयी। बहुत बहुत बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई.. किसी जमाने में ये लौ आपने ही दिखायी थी...
हटाएंnice story
जवाब देंहटाएंThank you
हटाएंnice story
जवाब देंहटाएंदुनिया की वास्तविकता यही है
जवाब देंहटाएंसत्य... शुक्रिया
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