निदा फाजली की चंद लाइन....
दुश्मनी लाख सही, ख़त्म न कीजिए रिश्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये
हाथ मिलाना तो अब हो नही सकता। मै सोच रहा था कोई और विकल्प क्या क्या हो सकता है????
अब तो निगाहें ही रह गयी मिलाने को। उसे ढंग से दुरूस्त कर लिया जायें। लोग कहते है कि इसकी निगाहें ठीक नही थी.. फलाँ की निगाह ठीक थी।
निगाहों का भी अपना वसूल है.. कितने समय तक ये टिकाये रखना है। अगर ज्यादा समय लगा दिये तो समझिये आप गयें। गिरफ्त हुये दुनियादारी में।
"निगाहे मिलाने को जी चाहता है....."
जब से ये चंद लाईन सुनी है। गीतकार को धन्यवाद देने का मन करता है पर निगाहों को चलाने का उन्हें अभ्यास था सेकेंडो में निगाहों को फेरने का। हम कब तक पुतलियों में बैठने का इंतजार करते।
इकबाल साहब तब तो सही कहते है...
मुमकिन है कि तू जिसको समझता है बहारां
औरों की निगाहों में वो मौसम हो खिजां का
इससे बढ़िया साकी है जो मौज से गिरफ्त में है मस्क के.. वरना निगाहें फेर लेते है वो...हम गुनगुना उठते है..
हाय रे इकबाल...
साकी की मुहब्बत में दिल साफ हुआ इतना
जब सर को झुकाता हूं शीशा नजर आता है...
@व्याकुल
Nice������
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंBeautiful lines
जवाब देंहटाएंThank you so much
जवाब देंहटाएंवाह, अद्भूत
जवाब देंहटाएंस्नेह रहे... आभार
जवाब देंहटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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