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मंगलवार, 31 अगस्त 2021

डंठी

 

राह पर

रहु

या वजह बनु 

छॉव की

खुद जलु धूप 

पी कर

या ज्वाला की

ताप

सहूँ

अन्न पकने को..


कपकँपाते हाथ

से सहलाते

ओस से

सिहरते

बदन

बन सकु 

राख

किसी का..


बना ही

रहूँ

कृशकाय 

अभिलाषा

लिये दधीचीं का

पर

बोझ न बनु

किसी 

दीन का...

@व्याकुल

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