आई पी एल मैच जब भी देखता हूँ तो वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जाग्रत हो उठती है। क्षेत्रवाद की भावना से लखनऊ सुपर जायंट्स (LSG) का सपोर्ट करने की कैसे सोचता जब पता चला कि कप्तान साहब के. एल. राहुल है। यू. पी. वाली फिलिंग नही आ पा रही है। यही हाल बाकी टीम की भी है। बस खिलाड़ी के बढ़िया खेल को ही आधार मानकर सपोर्ट कर रहे है। गुजरात टाइटन्स व चेन्नई सुपर किंग्स के बीच के फाईनल मुकाबले में ऊहापोह की स्थिति थी। समझ नही आ रहा था किसको सपोर्ट करे। तभी एकाएक "सर्वे भवन्तु सुखिन:" की भावना जोर मारने लगी। कोई भी जीते हमे क्या!!!!
एकबारगी चेन्नई सुपर किंग्स के हारने का भय सताने लगा। फिर क्या था???
शिव मंगल सिंह सुमन की वाणी,
"क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं...."
भय हंता का काम कर गयी।
पठानियों से लेकर गोरो की भी बेरोजगारी दूर हो गयी वो भी आउटसोर्स के सहारे। वाह रे हिन्दुस्तानियों... ग्लोबलाईजेशन का सदुपयोग तो सही मामले में आप ही कर रहे है....
वों दिन दूर नही 10-10 (टनटन) टूर्नामेंट हर जिले का हो जिसमें विदेशी खिलाड़ी क्रिस मॉरिस... बेन स्टोक्स.. कानपुर भौकाल या प्रयाग बकईत टीम से खेलते दिख जायें....
@डॉ विपिन "व्याकुल"
अप्रतीम 👌👌👌👍👍👍👍👏👏🙏🙏
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंFantastic👍👍👍👍
जवाब देंहटाएंअतिसुंदरम्
जवाब देंहटाएं🚩🚩🚩🚩🚩🚩
जवाब देंहटाएंsupreme
जवाब देंहटाएंसर्वांत महत्वाचा
Ton of thanks
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