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बुधवार, 25 मार्च 2020

हिन्दू चिन्तन

हिन्दू चिन्तन#1



थोरो नामक पाश्‍चात्त्य तत्त्वज्ञानीको किसीने पूछा कि आपका आचरण एवं विचार इतने अच्छे कैसे हैं ? इसपर उसने तत्काल उत्तर दिया, ‘’ मैं नित्य प्रातःकाल अपने हृदय और बुद्धि को गीतारूपी पवित्र जल में स्नान कराता हूँ।’’
थोरो का कहना था "प्राचीन युग की सभी स्मरणीय वस्तुओं में भगवदगीता से श्रेष्ठ कोई भी वस्तु नहीं है। गीता के साथ तुलना करने पर जगत का समस्त आधुनिक ज्ञान मुझे तुच्छ लगता है।"
ऐसा था अपना सनातन धर्म। हिन्दू ही क्या विदेशी धरती पर भी लोगो को प्रेरित करती रही है..
अमेरिकावासी  हेनरी डेविड थोरो  विख्यात समाज-सुधारक थे। वे ' सविनय अवज्ञा आंदोलन' के जनक थे जिनसे गांधी ने अपना सविनय अवज्ञा आंदोलन' लिया था। थोरो भारतीय दर्शन की किताबें बड़े चाव से पढ़ते थे उनके पास गीता के अलावा भारतीय दार्शनिकों के कई ग्रन्थ थें। थोरो ने हिन्दू दर्शन व धर्म की कई जगहों पर खुलकर प्रशंसा की है।

इन्होने अपनी पुस्तक 'लाइफ इन दी वुड्स' में जीवन में निडरता व शांति के साथ ही साथ सत्य पर विशेष बल दिया । आपके दर्शन में भारतीय दर्शन की छाया परिलक्षित होती है ।

@व्याकुल

#विपिन पाण्डेय
#हिन्दूदर्शन#वेद#थोरो#सविनय

बुधवार, 11 मार्च 2020

व्यक्तित्व निर्माण


व्यक्तित्व का निर्माण कई सालो की तपस्या के बाद होता है और इसका स्थिर रहना मूल स्वभाव होता है.. जो लोग  किसी के क्षद्म व्यक्तित्व से क्षणिक रूप से प्रभावित होते है वे हमेशा धोखे मे रहते है.. कुछ लोग सामने वाले से जैसा चाहते है वैसे ही व्यक्तित्व देखना चाहते है जबकि सार्वभौमिक और सर्वमान्य व्यक्तित्व से कम लोग ही प्रभावित हो पाते है.. व्यक्तित्व के साथ ही साथ धैर्य भी अपनी अहं भूमिका अदा करती है कब आपका धैर्य टूटा और व्यक्तित्व धाराशायी..हम सबका व्यक्तित्व तो बचपन में कहानियाँ सुन-सुन कर बना जो माँ या घर के बूढ़े-बुजुर्ग बड़े चाव से सुनाया करते थे.. तब कही बाहर से लड़ के घर आने पर उन सबकी डाँट पहले पड़ती, भले ही खुद की गलती ना हो.. अब तो ये पहलू गायब हो चुका है। अंजाने मे वो व्यक्तित्व निर्माण प्रक्रिया गायब हो चुकी है.. आत्मचिन्तन करे.. व्यक्तित्व निर्माण कोई संस्था नही दे सकती सिवाय पारिवारिक संस्था के..

@व्याकुल

चापलूसनामा


बड़े बड़े लोग चापलूसों के आगे नतमस्तक रहते है। चापलूस लोग महिमामन्डन मे पीछे नही रहते है। व्यक्ति को एहसास दिला ही देते है किं इस धरा पर आप जैसा शूरवीर नही.. मजाल है कोई दूसरा सही बात कह पाये.. जिसकी सत्ता आने वाली हो या आ चुकी हो उसकी चिंता कर स्थान बना लेते है ये वैसे भी सत्ता से दूर नही रह पाते.. सत्ता से दूर ये ऐसे लगते है जैसे किसी ने इनको बहुत दिन से भूखा रखा हो या गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया हो.. इनका प्रयास जारी रहता है कैसे घुसपैठ किया जाय.. कुछ सत्तासीन को यही चापलूस लोग ही पसंद है इनके बिना सत्ता कुछ फीकी फीकी सी लगती है..बड़ी बड़ी साहित्यिक रचनायें रच गयी इस चक्कर में.. चालीसा तक लिख डाली लोगों ने..

चापलूसों की भी श्रेणी अलग-अलग होती हैं। कुछ लोग जीवनी लिखने के बहाने नजदीकी बनाते है। कुछ जरूरत से ज्यादा चिंता करके जगह बनाते है। कुछ सतत् उपस्थिति दर्शाकर। 

ऐसे लोगों का आत्मविश्वास भी गज़ब का होता है। चेहरा भी दयनीय बना लेते है। एक बार वरदहस्त प्राप्त हो जाये फिर तो पूछियें मत।

बहुत ही ज्यादा समर्पण कर देते है यें खुद को। अब तो जमाना सोशल मीडिया का है। मजाल है चरण पादूका सर पर रखने का कोई मौका चूक जायें।

इनका पूरा एक ग्रूप है हर पार्टी में है यही गठबंधन में भी अहम् भूमिका निभाते है.. हर पार्टी को अपने लोगों के बीच में से ही चापलूसों को चिन्हित करना होगा..

@व्याकुल

मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

मुंतज़िर

बोझिल सांसे थमने को
ढली शाम मुंतज़िर तेरा
©️व्याकुल

मिजाज

मिजाज-ए-शहर इतना ही
हवायें बेचैन है खबर को...
@व्याकुल

चाय या अमृत



ये चाय नही चाह है सा'ब। गॉव में बूढ़े बुजुर्गों को लोटे मे चाय सिप करते देख एक बात जेहन में उठती थी। जरूर ये कोई अमृत है। तब ये अमृत छोटे गिलास मे मिल जाया करता था। लगता था जरूर ये चाय भी समुद्र मंथन का हिस्सा रही होगी। ये देव या दानव दोनो से निगाह चुराकर इंसानी फितरत का शिकार हो गयी होगी। 

चाय हमारी संस्कृति का हिस्सा है या नही चिंतन का विषय हमेशा रहेगा। सुबह की पहली किरण और चाय न मिले तो लगता है दिन ही निरर्थक हो गया। यार!!!!! आज मूड क्यों ऑफ है। उत्तर बस यही सुबह से चाय नही मिली। जी.आई. सी. प्रयागराज मे अध्ययन के दौरान हमारे अंग्रेजी के अध्यापक श्री अवध नारायण पाण्डेय, जो रिश्ते में हमारे मामा लगते थे, कहते थे 'एक चाय ही तो है जिसके बहाने हमारे पेट मे दो बूँद दूध चला जाता है'.. बस वही बात दिल पर लग गयी। कुछ भी हो जाय चाय नही छोड़नी। 

लत भयंकर है छूटनी वाली नही। हमारे यहॉ के विद्यार्थी रात दो बजे चाय की लत में तीन किमी. तक चले जाते है। हर शहर की कुछ मशहूर दूकाने है जैसे कानपुर की बदनाम चाय... शुक्ला चाय...। निःसंदेह बेमिशाल.... सोशल मीडिया का कोई भरोसा नही.. हर दस दिन में एक ही दिवस विचरण करती रहती है.. 

हिन्दुस्तान की माटी की खूबसूरती ही यही है हर दिन हर दिवस हम मनाते है.. आशा है आप चाय रूपी अमृत नही छोड़ेंगे नही तो आपको पाप लगेगा...

©व्याकुल

फलक

चलों फलक से उन्हे भी ढूँढ़ लायें
सीखे थे चलना पकड़ नन्हीं ऊँगलियाँ
@व्याकुल



तदबीर

खुद को गुमराह न कर
सरे बाजार बात न कर
खुद तदबीर तू यू  कर
तकदीर यू नीलाम न कर...
@व्याकुल

अहं

अहं का बीज अंकुरित हो
बेहतर है धूल धुसरित हो जाय...
@व्याकुल

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

मौत


कश्मशा रहा ये सोचकर
कह सकुँ कुछ
हाथ बढ़ाँऊ
और पकडुँ
तेरा हाथ
कह सकुँ
चलो कही घूम ले
या कहु कुछ
बहाने से
तब शायद मान जाओ...

आँखों में आँखे
डाल कर
समझाऊ
अब दुबारा नही होगा
हाथ बढ़ाऊ
तो
छू नही पाता
दूर इतना तो
नही
तुम देखती भी
नही...

आँसु ठहर
गयी
किनारों पर
याद आया
ये तो सिर्फ
एहसास है
अस्तित्व
रूह का..

बस देखते
रहना है
और निरुत्साह सा
भ्रम में जीने की
लालसा...

@व्याकुल

धाकड़ पथ

 धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...