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बुधवार, 25 मार्च 2020

हिन्दू चिन्तन

हिन्दू चिन्तन#3

मन्दिर में प्रवचन चल रहा होता है अगर सुनने बैठ गया फिर उठने की इच्छा नही होती। पूरा श्रवण कर ही उठने की इच्छा होती है । अगर बीच में उठ कर घर आ गया तो प्रसंग दीमाग में चल रहा होता है कि इसके बाद क्या हुआ होगा। कुछ वर्ष पूर्व 15 दिन प्रवचन सुनता रहा । वह प्रवचन पूरी तरह तार्किक था । श्रवण का अर्थ ही यही होता है केवल ज्ञान की बातें सुनना नहीं है, बल्कि उनका तार्किक रूप से विश्लेषण कर आत्मसात करना है।
श्रवण का महत्व बताते हुए आचार्य चाणक्य ने कहा है-
श्रुत्वा धर्मं विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम्।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्।।
अर्थात श्रवण करने से धर्म का ज्ञान होता है, सुनकर कुबुद्धि का त्याग किया जाता है, सुनने से ज्ञान की प्राप्ति होती है और श्रवण करने से मुक्ति होती है।
अाध्यात्मिक अभ्यास में तीन चरण होते हैं: श्रवण, मनन और निदिध्यासन। उपनिषद भी व्यक्ति को श्रवण का अभ्यास करने के लिए प्रेरित करते हैं ।
यह सब देख सुनकर ही आभास होता है कि प्राचीन काल में कैसे श्रवण परम्परा से ही वेदों का ज्ञान गुरु से शिष्यों में आया होगा । इसी वजह से वेदों का ज्ञान जीवित रहा अन्यथा ये कभी के भुला दिए गए होते ।
विदेशी आक्रमणकारियों की हमारी संस्कृति से घृणा इस हद तक पराकाष्ठा पर थी कि भट्टियों में लकड़ी की जगह हिन्दुओं के धर्मग्रंथों की पांडुलिपियाँ जलाई जाती रहीं, पुस्तकालयों में जलाई हुई अग्नि महीनों तक जलती रहतीं। करोड़ों ग्रंथों की पांडुलिपियों को नष्ट किया|
वेदों को श्रुति भी कहते है क्योकि वेद श्रवण व याद द्वारा ही संरक्षित रहा है इसे "आम्नाय" भी कहते है। वेदों को अपौरुषेय यानि ईश्वर कृत माना जाता है। यह ज्ञान श्रुति परम्परा के माध्यम से सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने प्राप्त किया था ।
वैदिक संतों के प्रवचनों को सुनते रहना ही सिद्धांत श्रवण है। मन एवं बुद्धि को पवित्र तथा सकारात्मक बनाने के लिए सतत् श्रवण महत्वपूर्ण है।
@व्याकुल

#विपिन
#हिन्दूदर्शन#वेद#श्रवण#श्रुति#आध्यात्म

हिन्दू चिन्तन

हिन्दू चिन्तन#2

बचपन से ही मन्दिर की परिक्रमा करता आया हूँ । परिक्रमा का अर्थ किसी व्यक्ति, देव मूर्ति या स्थान के चारों ओर clockwise घूमना । इसको प्रदक्षिणा भी कहते है । यह हमारे षोडशोपचार पूजा का एक अंग माना जाता रहा है । शादी विवाहों में वर कन्या सात बार अग्नि की परिक्रमा करते है ।
दुनिया के जितने भी धर्म है जहाँ जहाँ प्ररिक्रमा की जाती है हिन्दू धर्म की देन है बाकी के धर्मो में जैन, सिख, बौद्ध व इस्लाम । इस्लाम में प्रदक्षिणा को तवाफ कहते हैं।
गणेश भगवान द्वारा अपने माता व पिता के परिक्रमा कर संदेश दिया था कि यह प्रथा कितनी प्राचीन है ।
हिन्दू धर्म में देवताओं के लियें अलग अलग प्रदक्षिणा का प्रावधान है।
'कर्म लोचन' नामक ग्रंथ में लिखा गया है कि- ''एका चण्ड्या रवे: सप्त तिस्र: कार्या विनायके। हरेश्चतस्र: कर्तव्या: शिवस्यार्धप्रदक्षिणा।'' अर्थात दुर्गाजी की एक, सूर्य की सात, गणेशजी की तीन, विष्णु भगवान की चार एवं शिवजी की आधी प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
@व्याकुल

#विपिन #हिन्दूधर्म #दर्शन #प्रदक्षिणा #हिन्दूचिंतन

हिन्दू चिन्तन

हिन्दू चिन्तन#1



थोरो नामक पाश्‍चात्त्य तत्त्वज्ञानीको किसीने पूछा कि आपका आचरण एवं विचार इतने अच्छे कैसे हैं ? इसपर उसने तत्काल उत्तर दिया, ‘’ मैं नित्य प्रातःकाल अपने हृदय और बुद्धि को गीतारूपी पवित्र जल में स्नान कराता हूँ।’’
थोरो का कहना था "प्राचीन युग की सभी स्मरणीय वस्तुओं में भगवदगीता से श्रेष्ठ कोई भी वस्तु नहीं है। गीता के साथ तुलना करने पर जगत का समस्त आधुनिक ज्ञान मुझे तुच्छ लगता है।"
ऐसा था अपना सनातन धर्म। हिन्दू ही क्या विदेशी धरती पर भी लोगो को प्रेरित करती रही है..
अमेरिकावासी  हेनरी डेविड थोरो  विख्यात समाज-सुधारक थे। वे ' सविनय अवज्ञा आंदोलन' के जनक थे जिनसे गांधी ने अपना सविनय अवज्ञा आंदोलन' लिया था। थोरो भारतीय दर्शन की किताबें बड़े चाव से पढ़ते थे उनके पास गीता के अलावा भारतीय दार्शनिकों के कई ग्रन्थ थें। थोरो ने हिन्दू दर्शन व धर्म की कई जगहों पर खुलकर प्रशंसा की है।

इन्होने अपनी पुस्तक 'लाइफ इन दी वुड्स' में जीवन में निडरता व शांति के साथ ही साथ सत्य पर विशेष बल दिया । आपके दर्शन में भारतीय दर्शन की छाया परिलक्षित होती है ।

@व्याकुल

#विपिन पाण्डेय
#हिन्दूदर्शन#वेद#थोरो#सविनय

बुधवार, 11 मार्च 2020

व्यक्तित्व निर्माण


व्यक्तित्व का निर्माण कई सालो की तपस्या के बाद होता है और इसका स्थिर रहना मूल स्वभाव होता है.. जो लोग  किसी के क्षद्म व्यक्तित्व से क्षणिक रूप से प्रभावित होते है वे हमेशा धोखे मे रहते है.. कुछ लोग सामने वाले से जैसा चाहते है वैसे ही व्यक्तित्व देखना चाहते है जबकि सार्वभौमिक और सर्वमान्य व्यक्तित्व से कम लोग ही प्रभावित हो पाते है.. व्यक्तित्व के साथ ही साथ धैर्य भी अपनी अहं भूमिका अदा करती है कब आपका धैर्य टूटा और व्यक्तित्व धाराशायी..हम सबका व्यक्तित्व तो बचपन में कहानियाँ सुन-सुन कर बना जो माँ या घर के बूढ़े-बुजुर्ग बड़े चाव से सुनाया करते थे.. तब कही बाहर से लड़ के घर आने पर उन सबकी डाँट पहले पड़ती, भले ही खुद की गलती ना हो.. अब तो ये पहलू गायब हो चुका है। अंजाने मे वो व्यक्तित्व निर्माण प्रक्रिया गायब हो चुकी है.. आत्मचिन्तन करे.. व्यक्तित्व निर्माण कोई संस्था नही दे सकती सिवाय पारिवारिक संस्था के..

@व्याकुल

चापलूसनामा


बड़े बड़े लोग चापलूसों के आगे नतमस्तक रहते है। चापलूस लोग महिमामन्डन मे पीछे नही रहते है। व्यक्ति को एहसास दिला ही देते है किं इस धरा पर आप जैसा शूरवीर नही.. मजाल है कोई दूसरा सही बात कह पाये.. जिसकी सत्ता आने वाली हो या आ चुकी हो उसकी चिंता कर स्थान बना लेते है ये वैसे भी सत्ता से दूर नही रह पाते.. सत्ता से दूर ये ऐसे लगते है जैसे किसी ने इनको बहुत दिन से भूखा रखा हो या गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया हो.. इनका प्रयास जारी रहता है कैसे घुसपैठ किया जाय.. कुछ सत्तासीन को यही चापलूस लोग ही पसंद है इनके बिना सत्ता कुछ फीकी फीकी सी लगती है..बड़ी बड़ी साहित्यिक रचनायें रच गयी इस चक्कर में.. चालीसा तक लिख डाली लोगों ने..

चापलूसों की भी श्रेणी अलग-अलग होती हैं। कुछ लोग जीवनी लिखने के बहाने नजदीकी बनाते है। कुछ जरूरत से ज्यादा चिंता करके जगह बनाते है। कुछ सतत् उपस्थिति दर्शाकर। 

ऐसे लोगों का आत्मविश्वास भी गज़ब का होता है। चेहरा भी दयनीय बना लेते है। एक बार वरदहस्त प्राप्त हो जाये फिर तो पूछियें मत।

बहुत ही ज्यादा समर्पण कर देते है यें खुद को। अब तो जमाना सोशल मीडिया का है। मजाल है चरण पादूका सर पर रखने का कोई मौका चूक जायें।

इनका पूरा एक ग्रूप है हर पार्टी में है यही गठबंधन में भी अहम् भूमिका निभाते है.. हर पार्टी को अपने लोगों के बीच में से ही चापलूसों को चिन्हित करना होगा..

@व्याकुल

मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

मुंतज़िर

बोझिल सांसे थमने को
ढली शाम मुंतज़िर तेरा
©️व्याकुल

मिजाज

मिजाज-ए-शहर इतना ही
हवायें बेचैन है खबर को...
@व्याकुल

चाय या अमृत



ये चाय नही चाह है सा'ब। गॉव में बूढ़े बुजुर्गों को लोटे मे चाय सिप करते देख एक बात जेहन में उठती थी। जरूर ये कोई अमृत है। तब ये अमृत छोटे गिलास मे मिल जाया करता था। लगता था जरूर ये चाय भी समुद्र मंथन का हिस्सा रही होगी। ये देव या दानव दोनो से निगाह चुराकर इंसानी फितरत का शिकार हो गयी होगी। 

चाय हमारी संस्कृति का हिस्सा है या नही चिंतन का विषय हमेशा रहेगा। सुबह की पहली किरण और चाय न मिले तो लगता है दिन ही निरर्थक हो गया। यार!!!!! आज मूड क्यों ऑफ है। उत्तर बस यही सुबह से चाय नही मिली। जी.आई. सी. प्रयागराज मे अध्ययन के दौरान हमारे अंग्रेजी के अध्यापक श्री अवध नारायण पाण्डेय, जो रिश्ते में हमारे मामा लगते थे, कहते थे 'एक चाय ही तो है जिसके बहाने हमारे पेट मे दो बूँद दूध चला जाता है'.. बस वही बात दिल पर लग गयी। कुछ भी हो जाय चाय नही छोड़नी। 

लत भयंकर है छूटनी वाली नही। हमारे यहॉ के विद्यार्थी रात दो बजे चाय की लत में तीन किमी. तक चले जाते है। हर शहर की कुछ मशहूर दूकाने है जैसे कानपुर की बदनाम चाय... शुक्ला चाय...। निःसंदेह बेमिशाल.... सोशल मीडिया का कोई भरोसा नही.. हर दस दिन में एक ही दिवस विचरण करती रहती है.. 

हिन्दुस्तान की माटी की खूबसूरती ही यही है हर दिन हर दिवस हम मनाते है.. आशा है आप चाय रूपी अमृत नही छोड़ेंगे नही तो आपको पाप लगेगा...

©व्याकुल

फलक

चलों फलक से उन्हे भी ढूँढ़ लायें
सीखे थे चलना पकड़ नन्हीं ऊँगलियाँ
@व्याकुल



तदबीर

खुद को गुमराह न कर
सरे बाजार बात न कर
खुद तदबीर तू यू  कर
तकदीर यू नीलाम न कर...
@व्याकुल

धाकड़ पथ

 धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...