हिन्दू चिन्तन#3
मन्दिर में प्रवचन चल रहा होता है अगर सुनने बैठ गया फिर उठने की इच्छा नही होती। पूरा श्रवण कर ही उठने की इच्छा होती है । अगर बीच में उठ कर घर आ गया तो प्रसंग दीमाग में चल रहा होता है कि इसके बाद क्या हुआ होगा। कुछ वर्ष पूर्व 15 दिन प्रवचन सुनता रहा । वह प्रवचन पूरी तरह तार्किक था । श्रवण का अर्थ ही यही होता है केवल ज्ञान की बातें सुनना नहीं है, बल्कि उनका तार्किक रूप से विश्लेषण कर आत्मसात करना है।
श्रवण का महत्व बताते हुए आचार्य चाणक्य ने कहा है-
श्रुत्वा धर्मं विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम्।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्।।
अर्थात श्रवण करने से धर्म का ज्ञान होता है, सुनकर कुबुद्धि का त्याग किया जाता है, सुनने से ज्ञान की प्राप्ति होती है और श्रवण करने से मुक्ति होती है।
अाध्यात्मिक अभ्यास में तीन चरण होते हैं: श्रवण, मनन और निदिध्यासन। उपनिषद भी व्यक्ति को श्रवण का अभ्यास करने के लिए प्रेरित करते हैं ।
यह सब देख सुनकर ही आभास होता है कि प्राचीन काल में कैसे श्रवण परम्परा से ही वेदों का ज्ञान गुरु से शिष्यों में आया होगा । इसी वजह से वेदों का ज्ञान जीवित रहा अन्यथा ये कभी के भुला दिए गए होते ।
विदेशी आक्रमणकारियों की हमारी संस्कृति से घृणा इस हद तक पराकाष्ठा पर थी कि भट्टियों में लकड़ी की जगह हिन्दुओं के धर्मग्रंथों की पांडुलिपियाँ जलाई जाती रहीं, पुस्तकालयों में जलाई हुई अग्नि महीनों तक जलती रहतीं। करोड़ों ग्रंथों की पांडुलिपियों को नष्ट किया|
वेदों को श्रुति भी कहते है क्योकि वेद श्रवण व याद द्वारा ही संरक्षित रहा है इसे "आम्नाय" भी कहते है। वेदों को अपौरुषेय यानि ईश्वर कृत माना जाता है। यह ज्ञान श्रुति परम्परा के माध्यम से सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने प्राप्त किया था ।
वैदिक संतों के प्रवचनों को सुनते रहना ही सिद्धांत श्रवण है। मन एवं बुद्धि को पवित्र तथा सकारात्मक बनाने के लिए सतत् श्रवण महत्वपूर्ण है।
मन्दिर में प्रवचन चल रहा होता है अगर सुनने बैठ गया फिर उठने की इच्छा नही होती। पूरा श्रवण कर ही उठने की इच्छा होती है । अगर बीच में उठ कर घर आ गया तो प्रसंग दीमाग में चल रहा होता है कि इसके बाद क्या हुआ होगा। कुछ वर्ष पूर्व 15 दिन प्रवचन सुनता रहा । वह प्रवचन पूरी तरह तार्किक था । श्रवण का अर्थ ही यही होता है केवल ज्ञान की बातें सुनना नहीं है, बल्कि उनका तार्किक रूप से विश्लेषण कर आत्मसात करना है।
श्रवण का महत्व बताते हुए आचार्य चाणक्य ने कहा है-
श्रुत्वा धर्मं विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम्।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्।।
अर्थात श्रवण करने से धर्म का ज्ञान होता है, सुनकर कुबुद्धि का त्याग किया जाता है, सुनने से ज्ञान की प्राप्ति होती है और श्रवण करने से मुक्ति होती है।
अाध्यात्मिक अभ्यास में तीन चरण होते हैं: श्रवण, मनन और निदिध्यासन। उपनिषद भी व्यक्ति को श्रवण का अभ्यास करने के लिए प्रेरित करते हैं ।
यह सब देख सुनकर ही आभास होता है कि प्राचीन काल में कैसे श्रवण परम्परा से ही वेदों का ज्ञान गुरु से शिष्यों में आया होगा । इसी वजह से वेदों का ज्ञान जीवित रहा अन्यथा ये कभी के भुला दिए गए होते ।
विदेशी आक्रमणकारियों की हमारी संस्कृति से घृणा इस हद तक पराकाष्ठा पर थी कि भट्टियों में लकड़ी की जगह हिन्दुओं के धर्मग्रंथों की पांडुलिपियाँ जलाई जाती रहीं, पुस्तकालयों में जलाई हुई अग्नि महीनों तक जलती रहतीं। करोड़ों ग्रंथों की पांडुलिपियों को नष्ट किया|
वेदों को श्रुति भी कहते है क्योकि वेद श्रवण व याद द्वारा ही संरक्षित रहा है इसे "आम्नाय" भी कहते है। वेदों को अपौरुषेय यानि ईश्वर कृत माना जाता है। यह ज्ञान श्रुति परम्परा के माध्यम से सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने प्राप्त किया था ।
वैदिक संतों के प्रवचनों को सुनते रहना ही सिद्धांत श्रवण है। मन एवं बुद्धि को पवित्र तथा सकारात्मक बनाने के लिए सतत् श्रवण महत्वपूर्ण है।
@व्याकुल
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#हिन्दूदर्शन#वेद#श्रवण#श्रुति#आध्यात्म
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