शक करते रहे थे उम्र भर
चुगली थी इस कदर गैरों की...
चर्चा शहर में आम हो गया
शहर फिर बदनाम हो गया..
वो इस कदर नादान थे
यूँ बेखबर हो हवाओं से..
रोकते भी कैसे खुद को
मचले अरमान थे अदाओं पे
"व्याकुल" खुद के भी न रहे
जो कातिल हो गये गुनाहों के..
@व्याकुल
आस पास तड़पते लोगो को देखना और कुछ न कर पाना कितनी कोफ़्त होती है न। व्याकुलता ऐसे ही थोड़े न जन्म लेती है। कितना तड़प चुका होगा वो। रक्त का एक एक कतरा बह रहा होगा। दिल से कह ले या आँखों से। ह्रदय ग्लानि से कितना विदीर्ण हो चुका होगा। पैर भी ठहर गए होंगे। असहाय इस दुनिया में सिवाय एक निर्जीव शरीर के।
शक करते रहे थे उम्र भर
चुगली थी इस कदर गैरों की...
चर्चा शहर में आम हो गया
शहर फिर बदनाम हो गया..
वो इस कदर नादान थे
यूँ बेखबर हो हवाओं से..
रोकते भी कैसे खुद को
मचले अरमान थे अदाओं पे
"व्याकुल" खुद के भी न रहे
जो कातिल हो गये गुनाहों के..
@व्याकुल
महाशिवरात्रि, भगवान शिव का प्रमुख पर्व है, हर वर्ष बड़े ही जोर शोर से मनाया जाता है इस पर्व पर आप सभी को नमन 💐🙏🏻
व्यक्त करूँ
वाणी से
कैसे
या धृष्टता करूँ
देवो के देव
महादेव का
या पढ़ लू
शिव पुराण संहितायें
या पर्व
मना लू
महाशिवरात्रि का
पर तिथि हो
फाल्गुन कृष्ण
चतुर्दशी का...
किस रूप में मनाऊँ
माँ पार्वती की
तपस्या समझु
या
वर्षगाँठ मनाऊँ
वैवाहिक
पवित्र सूत्र का
या
प्रकाट्य लिंगरूप
का..
शिव
भुक्ति मुक्ति
दाता
महामृत्युंजय जप
काल बने
आसुरियों का
कौन फैलाये
भ्रान्ति ऐसे अजन्मा
का....
बिछौना है
मृगछाला तेरा
निवास है
हिम चोटी
आराधना करे
सम जग तेरा
विस्मृत कर
अपराध करे...
जग पुकारे
काम निहंता
अधुना जगत
लिप्त हो जिसमे
धारण हलाहल
करे कण्ठ में
नाम है
नीलकण्ठ जिसका...
कष्ट
भक्त का
द्रवित करे
जिसे
दानी बन
लुटा दे
जो भोला
रुष्ट हो
भस्म करे
जग सारा...
सह न सके
विछोह
सती का
कर ताण्डव
जग हिलाये
धरा हिली
भूचाल आया
आवंदन करू
महेश्वर का...
रूद्र रूप
धर
करता
दुख का नाश
कहे जाते जगत्स्वामी
लिंगम रूप
ब्रहांड का
मोहक हर
रूप तेरा
क्यो करे न नमन
जिसका...
वन्दन हो
उस
अनुग्रही का
सौम्य है
नृत्य देव
पंचामृत से
पूजा जाय
मस्तक सोहे
शीत चन्द्र सी
गले डाल
साँप की माला
वीतरागी
कहा तू जायें
समाहित ब्रह्माण्ड
उस अनादि में
जिनका जश
हर जन
गावें...
@व्याकुल
राजन पर मानो पहाड़ टूट पड़ा हो। वह बेचारा असहाय हो गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था किं उसकें साथ क्या हो रहा है। उसने नगीना फिल्म का एक गाना बहुत सुन रखा था,
"आज कल याद कुछ और रहता नहीं"
गीत माला में यह गाना उसने कई बार सुना था।
तभी उसको पता चला किं पुरानी बाजार के पास हीमांक टॉकीज में नगीना फिल्म लगी है। उसे वह फिल्म इतनी अच्छी लगी कि वह चारों शो प्रतिदिन देखने लगा। घर में पैसे नहीं थे। पाँच किलो गेहूं रोज घर से ले जाता था। उसे बेचकर फिल्म के चारों शो के टिकट खरीद लेता था और सुबह 11:00 बजे से लेकर रात को 12:00 बजे तक टॉकीज में बैठा नगीना फिल्म देखा करता था।
कभी-कभी रो पड़ता था वों। जब उसके कानों पर "भूली बिसरी एक कहानी" गानें की लाईन सुनाई पड़ती थी। बुश रेडियों के लिये तड़प उठता था वों।
उसके घर वाले बहुत ही परेशान थे नगीना फिल्म देखने के बहाने वह अपने दुःखी मन को कहीं बहला लेना चाहता था। कुछ दिन तक उसकी पत्नी को कुछ भी समझ नहीं आया था। जब उसकी पत्नी को लगा मैंने रेडियो को रास्ते से हटा कर बहुत बड़ी गलती की है। उसने ठान लिया था की मुंह दिखाई में मिली हुई रकम से राजन के लिए नई रेडियो ला कर देगी।
अगली बार मायके से ससुराल आते समय उसने राजन के लिए रेडियो खरीद लिया था उस दिन राजन के लिए खुशगवार सुबह थी जब उसने सुबह 6:00 बजे विविध भारती में भक्ति संगीत सुना था।
अब क्या था राजन फिर से अपनी पुरानी रौ में आ चुका था। उसकी दुल्हन भी बहुत खुश थी किं राजन अब घर में ही रहने लगा है।
आज उसने जीप कम्पनीं की बैटरी भी थोक में खरीद लिया था।
@विपिन "व्याकुल"
कुछ
ठहराव लें
व
प्रतिदाय
करें
उन हवाओं का
जो आज
भी
फेफड़ो
को
निर्मल कर
रही...
नथुने तक
माटी की
सोंधी खुशबु
उच्चस्तरीय
मानकीय
इत्र से भी
टिकाऊ...
कितना दूर
का सफर
रहा
गॉव से
शहर तक का
सात
समुन्दर
भी लाँघ
गये
माटी की
परीक्षा
आखिर
कब तक....
स्नेह सिंचित
कर तुम्हे
बहुक्षम बनाती
याद करो
पोखरा
भैस की
सवारी कर
खुद यमदूत
बन जाया
करते थे....
अश्रु मिश्रित
आमंत्रण
स्वीकार कर
लो
और
लौट जाओ
जड़
की ओर....
@व्याकुल
पुलवामा के शहीदों को नमन💐🇮🇳
भारतीय वीर जवानों ने अपने पराक्रम से न सिर्फ़ देश का मान रखा वरन् दुश्मनों के दाँत भी खट्टे कर दिये..इसी को ध्यान में रखते हुये एक कविता:
तपती दिवा-मध्य हो
या कँटीले रास्ते
पग बढ़ चलें
जहाँ दुश्मनो की कतार हो..
गिद्ध सी निगाह हो
या लक्ष्य को भेदना
अपलक अचूक हो
ये हिमालयी बाँकुरे...
प्रगलित लौह सा भुज हो
या कवच सा वक्ष हो
चण्डी का अवतार हो
या प्राकृतिक दिवार हो..
भूख हो या प्यास हो
डिगे न लाख आँधी हो
शिकन न आये आन पर
हौसलो की उड़ान हो...
@व्याकुल
"चंदा मामा आरे आवा पारे आवा नदिया किनारे आवा ।
सोना के कटोरिया में दूध भात लै लै आवा
बबुआ के मुंहवा में घुटूं ।।"
आवाहूं उतरी आवा हमारी मुंडेर, कब से पुकारिले भईल बड़ी देर ।
भईल बड़ी देर हां बाबू को लागल भूख ।
ऐ चंदा मामा ।।
मनवा हमार अब लागे कहीं ना, रहिलै देख घड़ी बाबू के बिना
एक घड़ी हमरा को लागै सौ जून ।
ऐ चंदा मामा ।।
बचपन में ये गाना सुनता रहा हूँ... खाना खाने का मन न होते हुये भी मुँह खुल जाता था। ये गाना सुनकर लगता था चंदा रूपी मामा बस आने ही वाले है। मुझे लगता है 70 व 80 के दशक में घर-घर तक बहुत ही लोकप्रिय था ये गाना। इस गाने के बोल अवधी बोली के पर्याय है। इस गाने को लिखने वाले मजरूह सुल्तानपुरी सुल्तानपुर के थे तो स्वाभाविक है।
ऐसी अवधी गीत को गाने व जन-जन तक ले जानी वाली सुर कोकिला को मेरा नमन....आज दिनांक 6 फरवरी, 2022 को उनकी पुुुण्य तिथि पर मेरी भावपूर्ण श्रृद्धांजलि...
@व्याकुल
लक्ष्य
साधते
चीटीयाँ
कण-कण
समेटते...
सीमाओं
पर
रक्त
बहाते
सहते वार
हाड़
कवच
से...
लघु
प्रयास
जन-जन
का
बन
अदृश्य
शक्ति
राष्ट्र निर्माण का...
नमन
चेतन-अचेतन
राम-शबरी
पल-पल
शहीद
होते
प्रतिपल
लक्ष्य
भेंदते
@व्याकुल
शून्य ही
रखना
जुड़ सकू
कही भी
नही सम्भाल
पाऊँगा
दम्भ
मद
सा
खुद को...
अट्टहास
कराने को
न
बनू
दशानन
या
जलाया
जाऊँ
जन जन में...
आहार
बनू
चीटियों का
और
ओढ़
सके
कोई उरंग
ढेर को....
@व्याकुल
साझा
कभी
टिकता नही
मन का
ख्याल से
वाणी का
विचार से
राह का
पथिक से...
साझा
जिंदा
रहता है
जीवन की
संझा व
चंद
लकड़ियों
में....
@व्याकुल
धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...