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बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

घुसपैठिया

घुसपैठिया नहीं मानता 

इंसानों को 

जों गरीबी 

लाचारी 

मज़बूरी 

में घुस आते है 

पड़ोसी देशों में 

पड़ोसी परदेशों में।


घुसपैठिया मानता हूँ 

ललितपुर को

सहारनपुर को 

बलिया को 

जों खुल्लम खुल्ला 

घुस जाते है 

पड़ोसी परदेशो में।


मज़ाल है कोई 

निकाल सके 

या सीधे रेखा 

खींच सके 

जैसे गांवो में 

हम मेढ़ो के साथ 

करते है...


@डॉ विपिन पाण्डेय "व्याकुल"




सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

ख़्वाहिश

पता है मुझे वों सीतारें है फ़लक के 

जमीं पर रहें पाँव के निशाँ जरूर देखना 


बदलते मौसम की गठरी ग़ुरूर की ज़ब हो 

बहते हुए पसीने की आजिज़ी जरूर देखना


बढ़ चुके जों कदम छोड़ कर तन्हा मुझे 

समय मिले तो पुराने तोहफ़ो को जरूर देखना 


किस्से किताबों में ज़ब दफ़न हो जाये 

पहले पन्ने की सिसकियों को जरूर देखना


खूब करें गुफ़्तगू अजनबी तमाशाइयों से 

साहिल रहें उस शाम "व्याकुल" जरूर देखना


@डॉ विपिन पाण्डेय "व्याकुल"


आजिज़ी = बेबसी




सोमवार, 30 दिसंबर 2024

डोम तम्बू

नीचे चित्र देना अत्यावश्यक हो गया था। अब धर्म का भी व्यवसायीकरण हो गया है। सोशल मीडिया डोम तम्बू के साथ तैर रही इस प्रचार को देखे, "इस डोम सिटी मे गोलाकार आकार मे ट्रांसपेरेंट 360 डिग्री से कुम्भ मेले का अनोखा नज़ारा लें इस डोम तम्बू को काफ़ी ऊंचाई पर बनाया गया हैँ जहाँ से बेड पर लेट कर भी कुम्भ का नज़ारा ले सकते हैं।


ये कुंभ मेला में सबसे महंगा रेसिडेंशियल स्पेस है जहां एक रात के लिए 80,000 से 1,20,000 चुकाने होंगे।"

हमारे भारत में सैकड़ो ऐसे उदाहरण है जहां लोगो ने राजपट त्यागा फिर धर्म में आगे बढे। पर ऐसा कभी हुआ है कि 360 डिग्री से धर्म मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

क्या यह सिर्फ धनाढ्य लोगो तक ही सीमित रहने वाली है। व्यभिचार व पर्यटन का सबसे सस्ता प्रचार है। जबकि विदेशियों को मथुरा व बनारस की गलियां ही अधिक भाती है...

हिन्दुस्तान में धनाढ्य कितने ही है आखिर। रिपोर्ट भी कुछ ऐसा कहती है "भारत में आय वितरण शीर्ष पर अत्यधिक केंद्रित है। शीर्ष 10% (9 करोड़ लोग) औसतन 13 लाख रुपये से अधिक वार्षिक आय अर्जित करते हैं। शीर्ष 1% (90 लाख लोग) सालाना 53 लाख रुपये से अधिक कमाते हैं, और शीर्ष 0.1% (9 लाख लोग) 2 करोड़ रुपये से अधिक कमाते हैं। शिखर पर, शीर्ष 0.01% (लगभग 10,000 लोग) सालाना 10 करोड़ रुपये से अधिक कमाते हैं, और शीर्ष 9,223 व्यक्ति औसतन 50 करोड़ रुपये कमाते हैं।"(https://sabrangindia.in/the-growing-divide-a-deep-dive-into-indias-inequality-crisis/)

@डॉ विपिन पाण्डेय"व्याकुल"

बुधवार, 18 दिसंबर 2024

कॉफी हाउस


यह कॉफी हाउस है। कभी यहां जमावड़ा लगा रहता था इलाहाबाद के विभिन्न विधाओ के नामचीन हस्तियों के। यहां की दीवारे कई बतकहो की साक्षी रही है। अगर गवाहों की बात होंगी तो यहां की दीवारे भेद खोल देंगी। कभी प्रयागराज आये तो यहां बैठे 2-4 कॉफ़ी पीये बहुत शुकुन मिलेगा। यदि आप कवि है तो शब्दों के भण्डार मिलेंगे, नेता है तो राजनीतिक जोड़तोड़ का हौसला मिलेगा, कम्पटीशन की तैयारी कर रहें है तो उर्जित हो कर जायेंगे। कभी आइये प्रयागराज तो बेमतलब के ही यहां बैठ जाइये फिर बताइये आपको क्या मिला.....

@डॉ विपिन पाण्डेय

मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

भिखारी ठाकुर


आज भिखारी ठाकुर जी की जयंती है। भिखारी ठाकुर  भोजपुरी के बहुत ही नामचीन और बड़े गायक हैं उन्होंने परदेश पर कई गीत और गाने लिखे हैं इसमें मुझे "विदेशिया" याद आ रहा है, (उस जमाने में बहुतायत में लोग परदेस चले जाते थे) जों परदेस गये लोगो पर है। सालों घर बातचीत नहीं हो पाती थी। परिवार गांव में ही छोड़कर चले जाते थे। बाद में पाती या चिट्ठी कह सकते हैं आप, वही एक माध्यम होता था उनके आपस के संचार के लिए या बातचीत के लिए। लेकिन यह उस जमाने में मुझे जो थोड़ा बहुत याद है कि भिखारी ठाकुर की जो पंक्तियां थी वह एक अनुभव से होकर गुजरती है। यह भी मुझे याद है व बचपन में देखा करता था कि ज़ब गांव में लोग कमाने के लिए जाते थे तो घर की औरतें घेर लेती थी और वह बड़े मान सम्मान के साथ विदा करती थी। सब अच्छे से अपना आशीर्वाद और दुआएं देते थे और मजाल है कि कोई कुछ निगेटिव बोल दे या कुछ ऐसा सामान या कोई ऐसी वस्तु उनके सामने पड़ जाए कि जो अपसुकून  की श्रेणी में आ जाए। गांव की जो भी प्रथा थी वह बहुत ही आत्मिक थी। और गांव में यह सब घर तक ही सीमित नहीं था अगर गांव का कोई भी व्यक्ति परदेश जा रहा है जैसे मुंबई या कोलकाता में। तो उससे भी कहा जाता था कि उनका हाल-चाल जरुर लीजिएगा और पाती में उनका भी समाचार दीजिएगा। या गांव का कोई व्यक्ति परदेश से वापस अपने गांव आता था तो उससे पूछा जाता था कि हमारे परदेसी कैसे हैं। अनायास ही आज भिखारी ठाकुर की जयंती पर यह सब मुझे याद आ गया।

@डॉ विपिन पाण्डेय 

मंगलवार, 23 जुलाई 2024

वापसी

वापसी की बेला में

वों

स्वयं ही 

रह जाता है

उस अहसास

के साथ

जिसमें 

दर्द छुपा होता है

बहुत सी बातों का

कुछ अनकहे

बंद हो जाती है कानें

खींच लेती है

लक्ष्मण रेखा

उन 

कहकहों से।


दिमाग में

घेर लेती है

चक्रव्यूह सी

शून्यता

जो

खेल 

खेलता रहता है

तुझे

अभिमन्यु समझ कर

अब या

लड़ रण में

या

आत्मसमर्पण कर।


@डॉ विपिन "व्याकुल"




सोमवार, 11 सितंबर 2023

नियति

 

मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार हुई थी। बाबू जी का कहना था , "बिटिया, बाकी की पढ़ाई तुम ससुराल में ही करना"

ससुराल आने के पहले ही दिन मालती का ख्वाब धाराशाई हो गया था। पति श्याम लाल अनपढ़ थे। पंद्रह दिन ही बीते थे कि पति मुम्बई चले गये थे। पति मुम्बई में वॉचमैन (सिक्योरिटी गार्ड) थे। बार के गेट पर नाईट शिफ्ट की ड्यूटी करते थे। कमाई खूब थी। बार में आने वाले नोट पकड़ा जाते थे। 

पति के मुम्बई जाने के बाद से मालती छः महीने ससुराल रही। वह बी. ए. फाईनल वर्ष में थी। दर्शन शास्त्र उसका पसंदीदा विषय था। अंतिम वर्ष का इम्तहान नजदीक था। उसने समझ लिया था। बी. ए. के बाद शायद ही आगे की पढ़ाई सम्भव हो पाये। तर्कशास्त्र की सारी युक्तियाँ समाप्त हो चुकी थी।

पति श्याम लाल को कस्टमर पैसे के साथ- साथ मुफ्त में शराब की बोतल पकड़ा देते थे। वह खुशी खुशी शराब घर ले आता। अब उसकी लत पड़ चुकी थी। संगत भी बिगड़ने लगी थी उसकी।

मालती की दूसरी विदाई अब होनी थी। श्याम लाल भी अब मुम्बई से आ चुका था। गॉव में एड्स चेकअप हेतु कैम्प  लगा था। अगले दिन श्याम लाल ने भी अपना टेस्ट करवाया था। रिपोर्ट आने के बाद श्याम लाल के पॉजिटिव आने की खबर सारे गॉव में आग की तरह फैल गयी थी। 

मालती के दूसरी विदाई के अब दो ही दिन ही बीते थे। एड्स की खबर सुनते ही उसके होश फाख्ता हो गये थे। उसने ससुराल न जाने का फैसला कर लिया था।

तीन महीने बाद सूचना मिली कि श्याम लाल दुनिया छोड़ चुके है। मालती उदास थी। पास के एक स्कूल में अध्यापन कर जीविका चलाने लगी। आगे की शिक्षा के लिये प्रोत्साहित थी। 

मालती स्कूल सोचती हुई जा रही थी कि अब जमाना सिर्फ साक्षर होने का ही नही है वरन् अच्छी शिक्षा होने से भी है।

तभी ई-रिक्शा वाले की घंटी ने उसके अवचेतन मन  को बाहरी दुनिया से जोड़ दिया था...... और तब तक वह स्कूल पहुँच चुकी थी....

मालती के जीवन में अब ठहराव आ गया था। स्कूल में बच्चों को बड़े मनोयोग से पढ़ाती थी। कुछ महीने बाद बी. ए. का परीक्षाफल घोषित हो गया था। स्कूल के अलावा शाम को घर पर ट्यूशन पढ़ाने लगी थी वों।

स्कूल में किसी को भी उसके व्यक्तिगत जीवन के बारे में खबर नही थी। वह उदास व गंभीर रहती। 

स्कूल वालों का विश्वास उस पर बढ़ गया था। प्रबंधक उसके कार्य से प्रभावित होकर अन्य प्रबंधकीय कार्य सौंपने लगा। प्रबंधक युवा व अविवाहित था। एक दिन प्रबंधक ने उससे पूछ ही लिया था, "मालती, तुम विवाहित हो?"

मालती अचानक इस प्रश्न से सकपका गयी थी। बस हॉ ही बोल पायी थी।

अब प्रतिदिन प्रबंधक समय से आने लगे। दोनों की बातचीत भी खूब होने लगी। 

एक दिन प्रबंधक उसके घर अचानक पहुँच गये। मालती के माता- पिता से उनकी मुलाकात हुई। बातचीत में मालती के विधवा होने का पता चला। अब प्रबंधक 2-4 दिन में मालती के घर आने लगे।

एक दिन प्रबंधक ने मालती का हाथ उनके पिता से माँग लिया। पिता क्या बोलते, "हामी भर दी थी"

हँसी- खुशी मालती का जीवन चल रहा था। पाँच वर्ष कब बीत गये मालती को पता ही नही चला। 

इधर प्रबंधक उदास रहने लगे। उनकों पुत्र की अभिलाषा थी। क्रोध नाक पर आ गया था। मालती से कम बात करते थे। इतने बड़े घर में मालती उपेक्षित थी।

एक दिन किसी कार्य से अपने प्रबंधक पति से मिलने उनके चैम्बर तक गयी। अंदर से आवाज आ रही थी "तुम चिंता न करों। मैं उसके खाने में मीठा जहर मिला रहा हूँ। थोड़ा समय लगेगा पर अपना काम बन जायेगा।" वह नयी टीचर को बाहों में समेटे हुये थे।

अगली सुबह स्कूल में हड़कम्प मचा हुआ था। मालती की खोज जारी थी। प्रबंधक हतप्रभ थे। 

मालती ने काशी के अनाथालय का रुख कर लिया था।


@डॉ विपिन "व्याकुल"

गुरुवार, 10 अगस्त 2023

फ्लाईंग किस



सन् 1990 की घटना है। हमारे एक मित्र थे। तब उस वक्त सलमान की फिल्मों का बोल-बोला युवाओं पर सर चढ़ कर बोला करता था। उस वक्त के अधिकांश युवा फुल बाह की लाईनदार टीशर्ट पहने रेंजर साईकिल पर घूमा करते थे व कॉलेजों में ईलू ईलू गाने पर झूमा करते थे। 

मित्र के मन में फितूर सवार रहता था। छत पर खड़े होकर बन्धुवर ताक-झाँक में लगे रहते थे। अब वह छत पर सुबह सुबह ही आ जाते थे। घर के पीछे एक लड़की पर उनका दिल आ गया था। एक दिन उनके मन में पता नही क्या भूत सवार हुआ उस लड़की पर फ्लाईंग किस दे मारी... पर लड़की कम कलाकर नही थी .... तुरन्त ही स्वीकार भी कर ली।

मित्र के तो मानो पंख ही लग गये थे। 
"आज मै ऊपर.. आसमां नीचे..." गाना गुनगुनाने लगे थे।

अगले दिन की सुबह का बेसब्री से उन्हे इंतजार था। लड़की ने उन्हे घर के पीछे वाले दरवाजे पर बुलाया था। पहुँचते ही सामान्य परिचय के बाद मित्र लौट आये थे।

अब मित्र प्रतिदिन उसके घर के पिछवाड़े जाने लगे और फ्लाईंग किस का भी जोरदार ढंग से आदान-प्रदान होने लगा। मित्र को उस लड़की ने बताया कि शनिवार को घर पर कोई नही है। पीछे के दरवाजे से आ जाये। मित्र सुबह से ही शेव वगैरहा करके क्रीम इत्यादि लगाकर उसके घर तय समय पर पहुंच गये थे। 
आधे घंटे मुश्किल से हुये होंगे मित्र के चिल्लाने की आवाज सुनी मैने। मै भागकर पीछे की गली में पहुच गया। मित्र लात जूतों से धुने जा रहे थे। लड़की कह रही थी "भैया, इसकों और धुनिये.. यह प्रतिदिन मुझे फ्लाईंग किस करता है...

मै दुःखी मन व लाचारी से मित्र की धुनाई देखता रहा।

@डॉ विपिन "व्याकुल"

मंगलवार, 30 मई 2023

क्रिकेटाम्बुकम्


आई पी एल मैच जब भी देखता हूँ तो वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जाग्रत हो उठती है। क्षेत्रवाद की भावना से लखनऊ सुपर जायंट्स (LSG) का सपोर्ट करने की कैसे सोचता जब पता चला कि कप्तान साहब के. एल. राहुल है। यू. पी. वाली फिलिंग नही आ पा रही है। यही हाल बाकी टीम की भी है। बस खिलाड़ी के बढ़िया खेल को ही आधार मानकर सपोर्ट कर रहे है। गुजरात टाइटन्स व चेन्नई सुपर किंग्स के बीच के फाईनल मुकाबले में ऊहापोह की स्थिति थी। समझ नही आ रहा था किसको सपोर्ट करे। तभी एकाएक "सर्वे भवन्तु सुखिन:" की भावना जोर मारने लगी। कोई भी जीते हमे क्या!!!!


एकबारगी चेन्नई सुपर किंग्स के हारने का भय सताने लगा। फिर क्या था??? 


शिव मंगल सिंह सुमन की वाणी,

"क्‍या हार में क्‍या जीत में

किंचित नहीं भयभीत मैं...."


भय हंता का काम कर गयी।


पठानियों से लेकर गोरो की भी बेरोजगारी दूर हो गयी वो भी आउटसोर्स के सहारे। वाह रे हिन्दुस्तानियों... ग्लोबलाईजेशन का सदुपयोग तो सही मामले में आप ही कर रहे है....


वों दिन दूर नही 10-10 (टनटन) टूर्नामेंट हर जिले का हो जिसमें विदेशी खिलाड़ी क्रिस मॉरिस... बेन स्टोक्स.. कानपुर भौकाल या प्रयाग बकईत टीम से खेलते दिख जायें....


@डॉ विपिन "व्याकुल"

रविवार, 26 फ़रवरी 2023

चमचागीरी

 


आज जब चमचागीरी एक शान का विषय माना जाता है व किसी बड़े नेता के आगे-पीछे फोटो खिचवाना गर्व का विषय समझा जाता है। राजा हरि सिंह ठीक इसके उलट थे। वो चमचागीरी से बहुत ज्यादा चिढ़ते थे। उन्होनें चमचागीरी के लिये एक खिताब तय किया था जिसका नाम ‘ख़ुशामदी टट्टू’ था। इसमे बन्द दरबार में हर साल सबसे बड़े चमचे को "चाँदी और काँसे के भीख माँगते टट्टू की प्रतिमा" दी जाती थी। आज आवश्यकता है हर स्तर पर इस तरह के ‘ख़ुशामदी टट्टू’ जैसे पुरस्कारों की शुरुआत करने की ताकि चिन्हित किया जा सके चापलूसों को।


@डॉ विपिन "व्याकुल

धाकड़ पथ

 धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...