गतांक से आगे..
वो शाम आज भी नही भूली थी जब साकेत दुःखी था। बोला था," अवनि, तुम कहीं और शादी कर लो।
मेरे घरवाले तैयार नही हो रहे"
अवनि अनुत्तरित थी। अपना सब कुछ समर्पण कर चुकी थी। जिंदगी ठहर गयी थी। समझ नही पा रही थी क्या बोलें। उस दिन घर आकर रात भर रोती रही।
उस दिन के बाद बहुत दिनों तक साकेत फिर कभी नही दिखा था। एक दिन उसके घर के पास चहल-पहल बहुत थी, पता चला उसकी किसी दूसरे शहर में शादी हो गयी। मेरे ऊपर वज्रपात टूट गया हों।
अंदर से बहुत ही टूट चुकी थी। भाई का भी पढ़ने से मन उचट चुका था। जुआ और आवारगी उसका मुख्य धंधा।
गरीबी और बेबसी में ही इंसानों का असली चेहरा सामने आता। कोई सहानूभूति जता मेरे अकेलेपन का फायदा उठाना चाहता था, कोई सच्चा होने का झूठा नाटक करता।
एक दिन पापा के पुराने मित्र आयें। भावेश का फोटो दिखाकर शादी का प्रस्ताव रखे। बस इतना ही बताये कि लड़का विधुर है। मै, असहाय, सिवाय सहमति के कर भी क्या सकती थी।
मै भावेश के साथ दूसरे शहर आ गयी थी। भावेश बहुत ही खुशमिजाज था।
तभी भावेश ने मेरे आँख बँद कर दिये। बोला, "अवनि, एक सरप्राईज है" "आँखें न खोलना, जब तक न कहूँ"
मेरा प्रोमोशन हो गया। दूसरे शहर शिफ्ट होने की तैयारी करों। मै फिर उदास हो गयी। इस शहर ने मुझे नवजीवन दिया था। रिश्तों की कई उलझनों को पार कर यहॉ तक आ पहुँची थी। मै तो मानती ही नही ईटें, दिवारें और सड़के नही बोलती। इनसे भी हमारा अनवरत संवाद होता रहता है और ये हमारे व्यक्तित्व निर्माण में अहम् भूमिका निभाते है।
मै भावेश से यहीं कह पायीं थी किं "एक बार मेरे मायके घुमा दों"
"कल ही...", इतना कह भावेश नहाने चला गया।
मुझे अपने मॉ-पिता की धरा पर जाने की व्याकुलता हो रही थी।
अगली सुबह मै बस में भावेश के साथ बैठी थी। रास्ते भर जो जगह मेरे जीवन से जुड़ी थी, उसकों दिखातें चली जा रही थी। उत्सुकता थी जल्द पहुँच जाने की।
दुर्योग रहा!!!! मै बस से उतर रही थी और साकेत की पत्नी सफेद साड़ी पहने बस पर चढ़ रही थी। बस इतना ही पता चल पाया कि साकेत अपनी शादी के बाद से बहुत दुःखी रहने लगा था। कुछ दिन पहले रात दों बजे उसने इहलीला समाप्त कर ली थी, जैसे मेरे सपने की वों "खट्" की आवाज उसी की हों।
मै निःस्तब्ध बस को ओझल होते देख रही थी....
समाप्त...
©️व्याकुल
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