सतगुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खण्ड।
तीन लोक न पाइये, अरु इकइस ब्रह्मणड॥
कबीर दास जी गुरू की महिमा ऐसे ही नही कह दिये कुछ तो तर्क रहा ही होगा। मजे की बात ये है कि चातुर्मास को पड़ता है ये गुरू पूर्णिमा। भगवान विष्णु शयन को चले जाते है। कहते है इन चार मास में कोई भी शुभ कार्य नही कर सकते। कहा भी गया है गुरू की महिमा ईश्वर से ऊपर है।
आज के दिन को व्यास पूर्णिमा के लिये भी मनाया जाता है। कृष्ण द्वैपायन व्यास को आदिगुरू माना जाता है। वे वेदो के प्रथम व्याख्याता भी थे।
आधुनिक काल में लोग कई कई गुरू को साधे रहते है.. गिरते है तो कोई संभालने वाला नही होता। रहिमन की वाणी तो मुझे मूलमंत्र लगती है -
एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।।
विदेशी विद्वान जॉन ड्यूवी शिक्षा को सामाजिक बदलाव के महत्वपूर्ण कारक के रूप में देखते है और उससे भी ज्यादा नैतिक रूप से प्रबल मानवों के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका को अहं मानते है।
बचपन से एक दोहा जो जबान पर रहता था-
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
इसका अर्थ तो तभी समझ आया जब सामाजिक रूप से धक्के खाया। कितने ही बार गिरे और हर बार कोई न कोई गुरू बन उठाता रहा। शनैः शनैः ही सही गोविंद तक पहुँचाता रहा।
@व्याकुल
Guru Purnima Marg Darshan ke Parv per aap ko Badhai.
जवाब देंहटाएंप्रणाम मामा जी... शुक्रिया आपकों
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपको
हटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रणाम.. आभार
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