कबाड़ी ढूंढ़ लेता हूँ
धुँधले होते पन्नों को..
मुस्कुरा भी लेता हूँ
सौदा होते देखता हूँ..
पसंद है खुद को बेचना
कीमत लगा देखता हूँ..
आँखे खुली रह गयी
मोल कौड़ी के बिकता देखता हूँ..
मुझे चौराहे पर खड़ा देख
सिक्के उछाल दिये दोस्तों ने..
धुँआ बन यूँ उड़ा वहम
पीठ पर खंजर घोपते देखता हूँ..
@व्याकुल
Bahut khub
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई
हटाएंबहुत अच्छा।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया पाण्डेय जी
हटाएंकैसे तारीफ करें
जवाब देंहटाएंसमझ नहीं आता
शब्दों की महफिल में
आपकी तारीफ लायक
कोई शब्द नजर नहीं आता
शुक्रिया... आपके उत्साहवर्धक शब्दों से प्रेरणा मिलेगी...
जवाब देंहटाएंशानदार
जवाब देंहटाएंप्रणाम... शुक्रिया
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