सफर थकाने वाला रहा
आप से तुम तक का
कल तक मर्यादाए थी
तुम बोल पाने में...
तुम भी बैचेन थी
लकीर तुम्हे भायी नही थी
वर्जनाओं को
तार-तार तुम्हीं ने की थी..
कल स्वप्न देखा था
लहरों को आगोश में लेते हुए
सुबह शुन्य में
विचरण करता रहा
गुँजता रहा कानों में
तुम का घोल
पिघलते रहे आप
बेसबब....
@व्याकुल
Sir apki lekhani ...ati uttam
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंWahhh Kya bat hai 🦚
जवाब देंहटाएंगंभीर छायावाद
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपको
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