FOLLOWER

मंगलवार, 1 जून 2021

भ्रमजाल


आज फिर वो ठगा सा महसूस कर रही थी। कुछ भी अच्छा नही लग रहा था।
आज मितेश की कमी खल रही थी उसको। पिछले बरसात की ही तो बात है जब इन्ही बरसात के दिनों में दोनो घूम रहे थे। समय कितना सब कुछ बदल देता है। ऐसा कोई दिन नही जाता था जब दोनो की मुलाकात न होती हो।
मितेश जब पहली बार कॉलेज आया था कितना गुमशुम सा रहता था। पूरा अन्तर्मुखी स्वभाव था उसका। किसी का कभी ध्यान ही नही जाता। सबसे पीछे की सीट पर बैठना क्लास करना फिर निकल लेना।
उसने घर किराये पर मेरे पड़ोस में ही ले रखा था। कई महीनों बाद उसने सब्जी के ठेले पर सब्जी लेते समय पूछ ही लिया था क्या आप फलां कॉलेज से है। बस मै हाँ ही कह पायी थी। पता नही उसने सुना भी था या नही। आगे बढ़ गया था।
अब हम सभी द्वितीय वर्ष में आ गये थे। थोड़ा सभी लोग आपस में घुलने मिलने लगे थे। कब हमारी प्रगाढ़ता बढ़ गयी पता ही नही चला।
कॉलेज के बाद वो ट्यूशन पढ़ाने लगा। मै भी छोटे से स्कूल में पढ़ाने लगी। हम दोनों वीकेंड पर मिलने लगे।
एक दिन उसने शादी का प्रस्ताव भी रख दिया। मै ना नही कर पायी थी। हम दोनो ने चुपके से कोर्ट मैरिज कर ली थी। बाहर रूम ले लिया था।
मेरे घर में सिर्फ मेरा भाई ही था। मॉ-बाप बचपन में ही गुजर गये थे। 2-3 दिन के लिये बाहर का बहाना बना देती तो वो समझ नही पाता था। 4 साल तक सब ठीक ठाक रहा। अब उसने कानूनी रूप से तलाक लेने को कागज रख दिया था। शादी इतना गुप्त रूप में हुआ था कि किसी को अपना दुख भी जता नही सकती थी।
आज कुछ भी अच्छा नही लग रहा था। खिडकियों के बाहर बरसात का पानी ऐसे शोर कर रहे थे जैसे पत्थर मार रहे हो मुझे।
©️
व्याकुल

फिल्म न्यूटन और जम्मू कश्मीर चुनाव - 6


गतांक से आगे...

श्रीनगर चुनाव के बाद चौथे चरण के मतदान हेतु हम सभी को कुकरनाग ले जाया गया। पर्यटन के लिहाज से बेहतरीन जगह।

@व्याकुल

जिस स्कूल में ठहराया गया था उसके ठीक सामने पहाड़ जो घने वन से आच्छादित था और ठीक पीछे प्राकृतिक चश्में।
स्कूल के ही पास में महबूबा मुफ्ती का चुनावी भाषण भी सुना जो हमारें आश्रयस्थल तक स्पष्ट सुनाई दे रहा था। कुकरनाग बहुत ही सुन्दर स्थल था। वहॉ हम सभी को एक गार्डेन ले जाया गया जो मन को मोह लिया था।
वहाँ गाँव वालों से बात करने का मौका मिला। चुनावी गतिविधियाँ सामान्य रही।
चुनाव के पश्चात हम सभी को वापसी के लिये अवन्तीपुरा वायु बेस ले जाया गया जहॉ से हम सभी की वापसी हुई।
अवन्तीपुरा जाते वक्त बहुत सी दूकाने दिखी जों क्रिकेट के बल्ले से सजी हुई थी।
एक बात भूल गया था श्रीनगर चुनाव के दौरान हम सभी एक पहाड़ी पर गये थे जो काफी ऊँचाई पर था उसके शिखर पर प्रसिद्ध शंकराचार्य मंदिर है 10वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य यहां आए थे, जिसके कारण इस मंदिर का यही नाम पड़ गया। यह प्राचीन मंदिर भगवान शंकर को समर्पित है।
@व्याकुल

फिल्म न्यूटन और जम्मू कश्मीर चुनाव - 5


गतांक से आगे...

बेमीना वाले घटना ने अंदर तक हिला कर रख दिया था। हम पूरी तरह सुृधर चुके थे। वहॉ की भयावहता भाप चुके थे।
हमेशा की तरह बी.एस. एफ. वाले घुमाने ले गये। डल झील पर शिकारा से हम सभी ने सैर की। वहॉ के लोगो से कई अन्य मुद्दो पर चर्चा भी हुई।
वही पॉचवे चरण की चुनाव के लिये डोडा के लिये भी बोला गया। पर इतने लम्बे समय तक घर से बाहर होने के कारण ऊब चुके थे। ये था कि जल्दी से चुनाव समाप्त हो और घर वापसी हो।
कानपुर के कई मित्र मजाक में बोल कर गये भी थे कि अगर वापसी न हो पाये तो इतना करना एक मूर्ति लगवा देना। कानपुर हो या लखनऊ चुनाव कर्मियों को छोड़ने आये हुए परिवारीजनों के आँखों में आँसू थे।
बी.एस. एफ. जवानों की जितनी तारीफ की जाय कम ही है। इस बीच एक नई समस्या ने जन्म ले लिया था। माँसाहारियों नें भोजन में सामिष भोजन की माँग कर दी। जिला स्तर के चुनाव अधिकारियों से जोर शोर से माँग होने लगी। उनकी माँग पूर्ण होते देख हम शाकाहारी शांत कैसे बैठते। हम लोगों ने भी छेने की माँग कर डाली। जो शाकाहारी लोग डायबिटीज से ग्रसित थे वे ठगा हुआ महसूस कर रहे थे।
इसके अलावा और भी कई संवेदनशील मुद्दे पर कई बार लोगो से झड़प हुई। उन प्रकरण को यहॉ उल्लिखित करना उचित प्रतीत नही होता।
जहॉ तक चुनाव में वोटिंग प्रतिशत का सवाल था। पूरी तरह से चुनाव boycotted था। मजाल कोई वोट डालने आ जायें। एजेंट इत्यादि थे। शायद 6-7 वोट पड़े होंगे बस।

@व्याकुल

(नीचे चित्र में शिकारा की सैर करते हुये)



क्रमशः

फिल्म न्यूटन और जम्मू कश्मीर चुनाव - 4


गतांक से आगे...

टंगमर्ग में दूसरे चरण के चुनाव के बाद हम सभी को तीसरे चरण के चुनाव हेतु श्रीनगर जाना था। श्रीनगर के बेमीना कॉलेज में ठहराया गया। वहॉ एक मजेदार व भयावह घटना घटित होते-होते बची।
पता नही कहा से मुझमें ये साहस आया कि क्या जरूरत है हमे बी. एस. एफ. वालों को साथ लेकर चलने की। 3-4 अपने साथियों से बात की कॉलेज की सुरक्षा चक्र से निकलने की। हम चल पड़े। ये प्लान हुआ कि बाहर निकलकर पी. सी. ओ. से अपने-अपने घरों पर फोन करेंगे।
कॉलेज के मुख्य द्वार पर बात की। अनुमति मिल गयी बाहर निकलने को। जैसे ही हम सभी कॉलेज के बाहर मुख्य सड़क पर आये गोलियाँ चलने की तड़तड़ाहट सुनाई दी। परेशान हो गये थे हम सभी। पॉव ठीठक गये थे। ये हुआ बुद्धिमानी इसी में है लौट चला जाये। लौटा तो कॉलेज का गेट बन्द। हम सभी बाहर। बाहर से आवाज देना और गेट पीटना शुरू कर दिया था चूँकि कुछ ही देर हुआ था सो वो जवान मौके की नजाकत को देखते हुये हम सभी को प्रवेश कराया।
उसने बताया बगल के पुलिस कॉलोनी में फिदाइन हमला हो गया है आप सब इस बगल वाले निर्माणाधीन बिल्डिंग में छुप जाओं। जब गोली चलने की आवाज बंद हो तभी अपने-अपने बटालियन मे जाना।
गोली बंद होने का नाम ही नही ले रहा था। उस निर्माणाधीन बिल्डिंग के छत पर दबे पॉव गया तो एक जवान पोजीशन लिये बैठा था। हम दबे पॉव नीचे आ गये। सोचा अगर कुछ बोला तो कही ये शूट न कर दे।
हम सभी बैठे रहे।
प्राचीन कालीन समय होता तो सूर्य डूबने के साथ बन्दूकें भी थम जाती। अब अँधेरा होने लगा था। हम सभी फस चुके थे। दिमाग ने भी काम करना बंद कर दिया था।
इंसान का असली साहस मुसीबत में ही निकलकर सामने आती है यही हम सभी के साथ हुआ। अब प्रश्न जीवन-मरण का था सोचा गया जो होगा देखा जायेगा। निकल पड़े उस बिल्डिंग से।
अभी कुछ कदम ही चले होंगे। पीछे से बंदूक की नली हमारी पीठ पर। पूछा गया, कौन? हम सभी अपना परिचय बटालियन के साथ दिये। पूछा गया, ' यहॉ क्या कर रहे आप लोग'। निरूत्तर थे हम सभी। क्या जवाब देते?? आदेश, ' जाइये अपने अपने बटालियन में' ।
हम सभी ने आग्रह किया साथ चलने को। दुबारा कभी ऐसा नही सोचने का प्रण लेकर मन व्याकुल रहा।
@व्याकुल
क्रमशः

रविवार, 30 मई 2021

फिल्म न्यूटन और जम्मू कश्मीर चुनाव - 3

गतांक से आगे...

चुनाव में जाने से पहले धर्म ग्रन्थ "गीता" ले जाने को कहा गया था। एक छोटा ट्रांजिस्टर भी। मै अपना परिवार प्रयागराज छोड़ आया था।

कश्मीर जाने से पहले लोगो के परिवार में बहुत सी चिन्तायें थी। लोग ड्यूटी कटवाने में लगे हुये थे चिकित्सीय आधार पर। मेरी युवावस्था थी कौन सा बहाना बनाता।
कश्मीर के एअर पोर्ट पर पहुँचते ही एक अलग ही एहसास महसूस हुआ।
कैमरा था नही पास में। बी. एस. एफ. के कुछ जवानों से अच्छी मित्रता हो गयी थी। एक जवान ने बीड़ा उठाया, "सर, आप चिंता न करे फोटो आपके पास भेज दूँगा।" मैने उनको पता दे दिया था। बाद में सारी फोटो मेरे पते पर भेज दिया गया था। कमाण्डेंट स्तर के अधिकारी बहुत चौकाने वाले अनुभव शेयर करते थे।
                                           @विपिन

मुझे भाषा सीखने की बड़ी दिलचस्पी रही है। वर्णमाला तो नही पर कुछ कश्मीरी वाक्यों को लिखता व बोलने की कोशिश करता। आज भी जब किसी कश्मीरी को कानपुर में मिलता हूँ तो उन वाक्यों को अवश्य ही दुहराता हूँ। लेकिन जैसे ही वे क्लिष्टता की ओर बढ़ते मै आत्मसमर्पण कर देता हूँ।
कश्मीर के अधिकांश लोगों में मेहमान नवाजी गजब का देखा। 1-2 गॉवों मे चुनाव ड्यूटी के समय उनके साथ नाश्ते का मौका मिला। लगा ही नही इतनी दूर चुनाव ड्यूटी में हूँ।
@व्याकुल
क्रमशः

फिल्म न्यूटन और जम्मू कश्मीर चुनाव - 2


गतांक से आगे...

पहली बार चुनाव में EVM का प्रयोग हुआ था। पट्टन के चुनाव के बाद अगले चरण के लिये टंगमर्ग ले जाया गया। हर एक बटालियन मे 20 चुनाव कर्मी थे। बी.एस. एफ. के जवान बड़ा ही ध्यान रखते थे हम सभी का।
टंगमर्ग बहुत ही संवेदनशील जगह था। वहॉ रात्रि में एक मेजर, जो इलाहाबाद के थे, से मुलाकात हुई। इलाहाबाद के नाते मुझसे काफी बाते की उन्होनें।
                                            @विपिन

टंगमर्ग में ठहराव के दौरान बी.एस. एफ. वाले हम सभी चुनाव पार्टियों को गुलमर्ग भी ले गये। वहाँ काफी इंज्वाय किया हम सभी ने।
                                           @विपिन

चुनाव में औसत वोटिंग प्रतिशत रहा था। चुनाव में बूथ पर एक दिन पहले न जाकर वोटिंग वाले दिन ही जाना होता था। प्रपत्र अंग्रेजी भाषा में ही होता था।
चित्र: टंगमर्ग में गंडोला के सामने।
@व्याकुल
क्रमशः

फिल्म न्यूटन और जम्मू कश्मीर चुनाव - 1

 

छुट्टियों में बेहतरीन फिल्म देखने का एक अलग ही मजा होता है। न्यूटन फिल्म किसी नक्सली क्षेत्र में चुनाव ड्यूटी को लेकर बनी है। न्यूटन फिल्म देखते जा रहा था और मुझे 2002 में अपनी ड्यूटी याद आ रही थी जो कि कश्मीर के विभिन्न जगहों पर लगी थी और लगभग मै वहाँ एक महीने रहा था।
लखनऊ से लादे गये और पहुँच गये कश्मीर। शायद वो श्रीनगर का एअरपोर्ट था। वहॉ पहुँचते ही एक हमारे चंचल मित्र किसी फलदार वृक्ष पर चढ़ गये थे और डाल हिला हिला कर लोगो को फल चखने का मौका दिये। बी.एस.एफ. वालो के कहने पर नीचे आये।


@विपिन
श्रीनगर से हम लोगो को पट्टन भेज दिया गया था। श्रीनगर से पट्टन जाते वक्त ऐसे कई बढिया मकान दिखे जो खाली ही था और लग रहा था जैसे सालों से कोई रह न रहा हो। जिस जगह ठहराया गया था उसके ठीक सामने सेब का बाग था। जब सेब खाने का मन होता हम सभी चले जाते और सेब जेबों में भर लाते। बी.एस.एफ वाले बताते थे कि वो बाग किसी कश्मीरी पंडित का था।
पट्टन 7 दिन तक रहा। गोलियों की आवाज सुनाई देना सामान्य बात रहती थी। पट्टन से उड़ी सेक्टर की दूरी ज्यादा नही थी।
बड़ा ही अफवाह व भय का माहौल रहता था....
@व्याकुल
क्रमशः

पढ़ने की आदत और पुस्तकालय

आज की पीढ़ी और आने वाले समय में समाज को एक भयंकर समस्या से ग्रसित होना है.. वह है "पढ़ने की आदत" की समस्या। पुस्तकालयों की मनोदशा के अंदर झाँक कर देखिये। किताबों पर पड़ती धूल। कॉलेजों में कुछ assignment ऐसे मिले जिसमें सप्ताह में एक दिन किसी पब्लिक पुस्तकालय में कम से कम 4-5 घंटे अध्ययन करे व संबंधित प्रोजेक्ट पर कुछ अंक भी निर्धारित हो। पुस्तकालय कदम रखते ही बच्चों को और भी विषय सामग्रियों से वास्ता पड़ेगा जिससे उनमें अध्ययन की आदत पड़ेगी। अध्ययन से विभिन्न विचारों को जानने समझने का मौका मिलता है व खुद के भी विचारों का जन्म होता है। ऐसे ही बड़े विचारकों का जन्म नही हुआ होगा जरूर वे महान पुस्तकालयों की शरण में गये होंगे।

@व्याकुल

(संलग्न आर्टिकल हिन्दूस्तान समाचार पत्र में 12 अक्टूबर, 2019 से लिया गया)


मन

 

कभी कभी कुछ ताना बाना अंदर से निकलता है.. यही आत्मा की सुर होती है शायद......
कहावत सुनता आया हूँ लुटिया डूब गयी। लुटिया डूबेगी नही तो भरेगी कैसे। लुटिया की आकार या बनावट पर जायेंगे तो यहीं पायेंगे किं खाली ही रहता है और लुटिया डूबेगी वही जहा पात्र भरा होगा
कुछ भी खत्म नही होता। बस उसका रूप व प्रकार बदल जाता है। हताश या निराश होना ही नही चाहिये। प्रकृति अपने हिसाब से चीजो को समायोजन कर रही। प्रश्न है किं बलवान कौन???प्रकृति या मानव। निःसंदेह प्रकृति ही होगा। जिसका निर्माण खुद से होगा वही बलवान होगा। मानव तो निर्भर है प्रकृति पर। ऐसे ही मानव का प्रयास खुद को निर्मित करने का होना चाहिये। ये काम कर लिया तो समझो यथार्थता के चरम को पा लिया। एक बार ऐसा तारतम्य बना लिया तो समझो लयबद्ध हो गये आप। फिर प्रश्न उठता है लय कहॉ और किससे। उसी प्रकृति से। करके देखिये एक बार। मन आनंदित हो उठेगा।
राम राम।
@"व्याकुल"

शनिवार, 29 मई 2021

काठ-घोड़ा नृत्य

 

मै बहुत छोटा था जब मैने काठ के घोड़े का नृत्य उत्तर प्रदेश के छोटे से जिले भदोही में देखा था। गजब का उत्साह था नृत्य करने वाले पुरूष का। गोल- गोल घूम कर नृत्य कर रहा था। हम लोग बहुत पीछे चले जाते थे कही घोड़ी पास न आ जाये। 

                                                                     चित्र: गूगल से

बचपन में चेतक घोड़े पर जो कविता सुनी थी उसकों चरितार्थ कर रहा था। हवा से बाते कर रहा था। सजीला घोड़ा था। चमकदार कपड़े पहने हुये था। उस पर बैठा हुआ व्यक्ति पगड़ी पहने किसी राजसी ठाठ वाला व्यक्ति। शादी विवाह में मुख्यतः इस प्रकार का नृत्य दिख जाता था।  राजस्थान में इस नृत्य को कच्छी घोड़ी नृत्य कहा जाता है।जरूर इस प्रकार के नृत्य का कोई इतिहास रहा होगा। आधुनिकता में कही गुम हो गया ये नृत्य भी।

©️विपिन



धाकड़ पथ

 धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...