FOLLOWER

मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

बढ़ते भाव और टोटकहा नींबू

 


हमारे पड़ोस के दो लोगों में जबर्दस्त झगड़ा होता था। ये दोनो ऊपर नीचे रहते थे। ये तो पता नही कि नीचे वाले के आँगन में कौन नींबू और कपड़े में बँधा हुआ सिंदूर फेंक जाता था। नारियल भी होता था। पूरे मोहल्लें में आनन्ददायक माहौल रहता था। एक बार कई दिनों तक कोई आवाज नही आयी। मोहल्ला शूकून में था। 


लम्बे अंतराल के बाद एक दिन फिर जोर से झगड़े की आवाज आने लगी। दोनों के झगड़े में एक पक्ष से मै भी था। मुझे लग रहा था इसमे किसी तीसरे का हाथ था जिसने मजे लेने के लिये ये सब किया होगा। विरोधी पक्ष के पैरोकार मुझसे एक कदम आगे निकले नारियल मुँह मेें डालकर बोले," आप लोग फालतू में घबड़ा रहे है, मुझे देखिये नारियल खा गया और कोई फर्क नही पड़ा"


खैर उनके नारियल खाते ही झगड़ा खत्म हो गया। आज जब नींबू के दाम इतने बढ़ गये है तो शायद विरोधी पक्ष के पैरोकार नारियल खाने के साथ-साथ नींबू भी घर ले जाते और पत्नी के साथ शिकंजी पी रहे होते और ऐसे ही झगड़े होने की उन्हे दरकार होती।


@विपिन "व्याकुल"

रविवार, 10 अप्रैल 2022

हरि मंदिर में राम नवमी

 

"भए प्रगट कृपाला दीनदयाला |

कौसल्या हितकारी।

हरषित महतारी मुनि मन हारी |

अद्भुत रूप बिचारी॥...."


मॉ की पूजा में ये स्वर आज के दिन विशेष रूप से सुनायी पड़ता था। प्रयागराज के मीरापुर मोहल्ला में हरि मंदिर में आज के दिन हर्षोल्लास का माहौल रहता था।

इस दिन भंडारे का भी आयोजन होता था। मेरी आयु बहुत ही छोटी थी। मुझे तो सिर्फ भंडारा ही समझ आता था। हरि मंदिर में प्रवचन का भी आयोजन होता था। मजे की बात ये थी कि ढोलक हमारे मुहल्ले के एक मुस्लिम बजाया करते थे। 

हरि मंदिर के ट्रस्टी में ज्यादातर पंजाबी लोग है जिनके पूर्वज सन् 1947 की त्रासदी झेले थे।

आज भी जब प्रयागराज जाता हूँ। हरि मंदिर मे अवश्य ही जाता हूँ। अब इस मंदिर में भीड़ कम ही देखने को मिलता है। मन दुःखी हो जाता है। सारी भीड़ का खिंचाव मॉ ललिता मंदिर में दिखायी देता है।

आज भी इस मंदिर में जाता हूँ तो दॉये हाथ की अनामिका अपने-आप बजरंग बली की मूर्ति को छू जाती है... जैसे मस्तक पर खुद टीका लगा लूँ... पर आयु अब बाल मन पर हावी हो चुका है...



राम नवमी की आप सभी को बधाई व शुभकामनायें....

@विपिन "व्याकुल"

शनिवार, 9 अप्रैल 2022

गॉव और बम्बई की नौकरी

 

हमारे एक मित्र की आई. आई. टी. की पढ़ाई करने के बाद नौकरी किसी सॉफ्टवेयर कम्पनी में लगी थी। गॉव में जब भी कोई काम-धन्धें के विषय में पूछता। वो बड़े मासूमियत से जवाब देता,"फलॉ कम्पनी में है।" लोग ज्यादा कुछ जवाब नही देते।

कोई समझ ही नही रहा था कि देश के बड़े संस्थान में बहुत ही परिश्रम से प्रवेश लिया था। चार साल मेहनत के बाद इंजीनियरिंग पूर्ण कर पाया था। 

गॉव के एक बुजुर्ग एक दिन बोले थे। बेटा, " तुम गॉव के बाकी युवाओं की तरह नौकरी छोड़ गॉव वापस न आना।"

मित्र ने बोला था, "चाचा, मै इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद कम्पनी में गया हूँ"

वों बुजुर्ग ज्यादा कुछ समझ नही पायें।


थोड़ा और डिटेल में गया तो पता लगा कि गॉव के बहुतेरे युवा जब भी बम्बई जाते थे तो गॉव में उस कम्पनी की बढ़-चढ़ कर बढ़ाई करते थे। चार महीने बाद जब घर वापसी करते थे तो कम्पनी की खस्ता हालत का रोना रो देते थे जिससे गॉव वालों का कम्पनी शब्द से ही विश्वास उठ चुका था। 

मेरे मित्र ने भी कसम खा ली थी कि अब गॉव में लोगों को सिर्फ इंजीनियर ही बताऊँगा नौकरी के नाम पर।

@विपिन "व्याकुल"

बुधवार, 23 मार्च 2022

खम्भा - कविता

 


घर के आँगन में कदम जो लड़खड़ायें थे

खम्भे को पकड़ लिया करता था मैं


छुपा लेता था खुद को दोस्तों से

छुपा-छुपी खेल में गोल-गोल खम्भे से


डेहरी की सीढ़ियों पर बाबा उतरे थे 

कोई पुत्र सा ये खम्भे सहारा बनी थी 

 

कलियुगी संस्कारों ने जो बाहर किया घरों से

बोतलों का पर्याय बना दिया दिवाने बेवड़ो ने


नाम लेने से इस कदर डरा हुआ है "व्याकुल"

बदनाम जो किया खम्भों को ज़माने ने।।


@व्याकुल

रविवार, 13 मार्च 2022

The Kashmir Files



"द कश्मीर फाईल्स" फिल्म की सोशल मीडिया पर चर्चा थी। खुद को देखने से कैसे रोक सकता था। कल दिनांक 11 मार्च को फिल्म देखना था पर टिकट उपलब्ध नही हो पाया। फिर कल शाम को ही आज के लिये टिकट लेना पड़ा। गज़ब की भीड़ थी आज। हिन्दुस्तान बदल रहा है।


हकीकत पर आधारित फ़िल्म। कैसे नरेटिव सेट होता आया भारत विरोधी गतिविधियों की। विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित फिल्म में अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती व दर्शन कुमार का अभिनय गज़ब का रहा। दर्शन कुमार द्वारा कश्मीर को ज्ञान की स्थली के रूप में वर्णन रोमांच कर देने वाला था। कई बार फिल्म ने दर्शकों को रूलाया। कैप्शंस हिन्दी भाषीय जनमानस के लिहाज़ से हिन्दी में होता तो और बेहतर होता।


मुझे 2002 के कश्मीर चुनाव की यादों में ले गया ये फ़िल्म। कैसे रास्तों के किनारों पर कश्मीरी पंडितो के वीरान घर दिखे थे। हिन्दुस्तान में मील का पत्थर साबित होगा ये फिल्म। मै सुझाव दूँगा अवश्य फिल्म देखने जाये वो भी सिनेमाघरों में।

@विपिन "व्याकुल"

https://youtu.be/Sj7mSL1e0qA

बुधवार, 9 मार्च 2022

मुगालता




राबता उजालों पर क्या करना

सूकूँ तलाशने लगें अँधेरों को


दर्द जो दब गयी हँसी में

दॉव क्या लगाना चेहरों पर


साँसों ने भी तमाम उम्र देखा

दम घुट कर जो मुकर जाना है


बसेरा रह गया किनारों पर

बोली जो लग गयीं बाजारों में


शागिर्द था वों ताश के पत्तों का

खाली ही रहा जाने से पहले


मुगालते का टूट जाना ही था "व्याकुल"

क़रार भी खूब रहा फकीरी का


@व्याकुल

मंगलवार, 8 मार्च 2022

लेमनजूस टॉफी पाँच पैसे के

इसका भी जमाना था । इसका उपयोग या तो टॉफी खाने में करते थे या गेंद खरीदने के लिये चंदा के तौर पर।

पाँच पइसे के तीन लेमनजूस टॉफी मिल जाती थी । टॉफियों पर रैपर नही होता था । संतरा नुमा टॉफियों का स्वाद संतरा जैसा होता था । कुछ गोल टॉफियाँ भी आती थी जिस पर लाल-नीली-हरी धारी बना रहता था। 


रबर की गेंदे सस्ती होती थी पर उछाल बहुत लेती थी। कैनवास की गेंदे ज्यादा सही होती थी पर कैनवास महँगी होती थी। जेब में हाथ डाल चेक कर लिया करता था। गलती से फटी ज़ेब न हो बस।

@व्याकुल

मंगलवार, 1 मार्च 2022

नाता प्रथा

"नाता प्रथा" राजस्थान की पुरानी प्रथाओं में से एक है। आजकल प्रचलित "लिव-इन" का ही प्राचीन रूप कहा जा सकता है। यह गुर्जरों या कुछ ही जातियों तक सीमित है। इस प्रथा में विवाहित स्त्रियाँ अपने पतियों को छोड़ कर किसी के भी साथ रह सकती है बिना किसी रीति-रिवाज के। इसे "नाता करना" भी कहते है।

हो सकता है "नाता प्रथा" विधवाओं व परित्‍यक्‍ता स्त्रियों को सामाजिक मान्यता देने के लिये बना हो।

             चित्र: गूूगल से
इसमें हिंसा के बढ़ जाने से नकारात्मक रूप सामने आने लगा है। इस वजह से कुछ लोग कुप्रथा भी कहते है।

@व्याकुल

रविवार, 27 फ़रवरी 2022

सूखे पत्ते


पतझड़

के मौसम

में

पेड़ से

गिरते

झरते

सूखे पत्ते...



तंद्रा

भंग करती

हर-पल

प्रतिपल

अहसास कराती

साथ होने का

जैसे

छाँव दिया था

कभी....


बसंत 

भले ही गढ़े

खुद को

नयेे कोपलों

से 

पर

ख्वाहिश

रहती

उन सूखे

पत्तों की

जो

गिरते रहे थे

सर पर

जैसे

बुजुर्ग सा

आशीर्वाद

दे रहे हो

काँपते-हिलते

हाथों से.....


@व्याकुल



बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

बिन्दौरी


राजस्थान में एक प्रथा बिन्दौरी के नाम से प्रचलित है। इसमे शादी के एक दिन पहले वर को घोड़े पर बैठाकर गाजे-बाजे के साथ सारे गाँव में घुमाया जाता है। इसमे वर के सारे मित्र व रिश्तेदार सम्मिलित होते है। इसमें जिस रास्तें से बिन्दौरी प्रथा निभाते है उस रास्ते से घर वापसी नही करता। 


               चित्र: गूगल से

राजस्थान के लिये यह सुखद है कि न सिर्फ वर वरन् वधु भी बिन्दौरी करती है। यह बेटियों द्वारा समाज में एक नयी दिशा दिखाने का कार्य करेगा।

@व्याकुल

धाकड़ पथ

 धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...