आस पास तड़पते लोगो को देखना और कुछ न कर पाना कितनी कोफ़्त होती है न। व्याकुलता ऐसे ही थोड़े न जन्म लेती है। कितना तड़प चुका होगा वो। रक्त का एक एक कतरा बह रहा होगा। दिल से कह ले या आँखों से। ह्रदय ग्लानि से कितना विदीर्ण हो चुका होगा। पैर भी ठहर गए होंगे। असहाय इस दुनिया में सिवाय एक निर्जीव शरीर के।
FOLLOWER
बुधवार, 18 दिसंबर 2024
कॉफी हाउस
मंगलवार, 17 दिसंबर 2024
भिखारी ठाकुर
आज भिखारी ठाकुर जी की जयंती है। भिखारी ठाकुर भोजपुरी के बहुत ही नामचीन और बड़े गायक हैं उन्होंने परदेश पर कई गीत और गाने लिखे हैं इसमें मुझे "विदेशिया" याद आ रहा है, (उस जमाने में बहुतायत में लोग परदेस चले जाते थे) जों परदेस गये लोगो पर है। सालों घर बातचीत नहीं हो पाती थी। परिवार गांव में ही छोड़कर चले जाते थे। बाद में पाती या चिट्ठी कह सकते हैं आप, वही एक माध्यम होता था उनके आपस के संचार के लिए या बातचीत के लिए। लेकिन यह उस जमाने में मुझे जो थोड़ा बहुत याद है कि भिखारी ठाकुर की जो पंक्तियां थी वह एक अनुभव से होकर गुजरती है। यह भी मुझे याद है व बचपन में देखा करता था कि ज़ब गांव में लोग कमाने के लिए जाते थे तो घर की औरतें घेर लेती थी और वह बड़े मान सम्मान के साथ विदा करती थी। सब अच्छे से अपना आशीर्वाद और दुआएं देते थे और मजाल है कि कोई कुछ निगेटिव बोल दे या कुछ ऐसा सामान या कोई ऐसी वस्तु उनके सामने पड़ जाए कि जो अपसुकून की श्रेणी में आ जाए। गांव की जो भी प्रथा थी वह बहुत ही आत्मिक थी। और गांव में यह सब घर तक ही सीमित नहीं था अगर गांव का कोई भी व्यक्ति परदेश जा रहा है जैसे मुंबई या कोलकाता में। तो उससे भी कहा जाता था कि उनका हाल-चाल जरुर लीजिएगा और पाती में उनका भी समाचार दीजिएगा। या गांव का कोई व्यक्ति परदेश से वापस अपने गांव आता था तो उससे पूछा जाता था कि हमारे परदेसी कैसे हैं। अनायास ही आज भिखारी ठाकुर की जयंती पर यह सब मुझे याद आ गया।
@डॉ विपिन पाण्डेय
मंगलवार, 23 जुलाई 2024
वापसी
वापसी की बेला में
वों
स्वयं ही
रह जाता है
उस अहसास
के साथ
जिसमें
दर्द छुपा होता है
बहुत सी बातों का
कुछ अनकहे
व
बंद हो जाती है कानें
खींच लेती है
लक्ष्मण रेखा
उन
कहकहों से।
दिमाग में
घेर लेती है
चक्रव्यूह सी
शून्यता
जो
खेल
खेलता रहता है
तुझे
अभिमन्यु समझ कर
अब या
लड़ रण में
या
आत्मसमर्पण कर।
@डॉ विपिन "व्याकुल"
सोमवार, 11 सितंबर 2023
नियति
मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार हुई थी। बाबू जी का कहना था , "बिटिया, बाकी की पढ़ाई तुम ससुराल में ही करना"
ससुराल आने के पहले ही दिन मालती का ख्वाब धाराशाई हो गया था। पति श्याम लाल अनपढ़ थे। पंद्रह दिन ही बीते थे कि पति मुम्बई चले गये थे। पति मुम्बई में वॉचमैन (सिक्योरिटी गार्ड) थे। बार के गेट पर नाईट शिफ्ट की ड्यूटी करते थे। कमाई खूब थी। बार में आने वाले नोट पकड़ा जाते थे।
पति के मुम्बई जाने के बाद से मालती छः महीने ससुराल रही। वह बी. ए. फाईनल वर्ष में थी। दर्शन शास्त्र उसका पसंदीदा विषय था। अंतिम वर्ष का इम्तहान नजदीक था। उसने समझ लिया था। बी. ए. के बाद शायद ही आगे की पढ़ाई सम्भव हो पाये। तर्कशास्त्र की सारी युक्तियाँ समाप्त हो चुकी थी।
पति श्याम लाल को कस्टमर पैसे के साथ- साथ मुफ्त में शराब की बोतल पकड़ा देते थे। वह खुशी खुशी शराब घर ले आता। अब उसकी लत पड़ चुकी थी। संगत भी बिगड़ने लगी थी उसकी।
मालती की दूसरी विदाई अब होनी थी। श्याम लाल भी अब मुम्बई से आ चुका था। गॉव में एड्स चेकअप हेतु कैम्प लगा था। अगले दिन श्याम लाल ने भी अपना टेस्ट करवाया था। रिपोर्ट आने के बाद श्याम लाल के पॉजिटिव आने की खबर सारे गॉव में आग की तरह फैल गयी थी।
मालती के दूसरी विदाई के अब दो ही दिन ही बीते थे। एड्स की खबर सुनते ही उसके होश फाख्ता हो गये थे। उसने ससुराल न जाने का फैसला कर लिया था।
तीन महीने बाद सूचना मिली कि श्याम लाल दुनिया छोड़ चुके है। मालती उदास थी। पास के एक स्कूल में अध्यापन कर जीविका चलाने लगी। आगे की शिक्षा के लिये प्रोत्साहित थी।
मालती स्कूल सोचती हुई जा रही थी कि अब जमाना सिर्फ साक्षर होने का ही नही है वरन् अच्छी शिक्षा होने से भी है।
तभी ई-रिक्शा वाले की घंटी ने उसके अवचेतन मन को बाहरी दुनिया से जोड़ दिया था...... और तब तक वह स्कूल पहुँच चुकी थी....
मालती के जीवन में अब ठहराव आ गया था। स्कूल में बच्चों को बड़े मनोयोग से पढ़ाती थी। कुछ महीने बाद बी. ए. का परीक्षाफल घोषित हो गया था। स्कूल के अलावा शाम को घर पर ट्यूशन पढ़ाने लगी थी वों।
स्कूल में किसी को भी उसके व्यक्तिगत जीवन के बारे में खबर नही थी। वह उदास व गंभीर रहती।
स्कूल वालों का विश्वास उस पर बढ़ गया था। प्रबंधक उसके कार्य से प्रभावित होकर अन्य प्रबंधकीय कार्य सौंपने लगा। प्रबंधक युवा व अविवाहित था। एक दिन प्रबंधक ने उससे पूछ ही लिया था, "मालती, तुम विवाहित हो?"
मालती अचानक इस प्रश्न से सकपका गयी थी। बस हॉ ही बोल पायी थी।
अब प्रतिदिन प्रबंधक समय से आने लगे। दोनों की बातचीत भी खूब होने लगी।
एक दिन प्रबंधक उसके घर अचानक पहुँच गये। मालती के माता- पिता से उनकी मुलाकात हुई। बातचीत में मालती के विधवा होने का पता चला। अब प्रबंधक 2-4 दिन में मालती के घर आने लगे।
एक दिन प्रबंधक ने मालती का हाथ उनके पिता से माँग लिया। पिता क्या बोलते, "हामी भर दी थी"
हँसी- खुशी मालती का जीवन चल रहा था। पाँच वर्ष कब बीत गये मालती को पता ही नही चला।
इधर प्रबंधक उदास रहने लगे। उनकों पुत्र की अभिलाषा थी। क्रोध नाक पर आ गया था। मालती से कम बात करते थे। इतने बड़े घर में मालती उपेक्षित थी।
एक दिन किसी कार्य से अपने प्रबंधक पति से मिलने उनके चैम्बर तक गयी। अंदर से आवाज आ रही थी "तुम चिंता न करों। मैं उसके खाने में मीठा जहर मिला रहा हूँ। थोड़ा समय लगेगा पर अपना काम बन जायेगा।" वह नयी टीचर को बाहों में समेटे हुये थे।
अगली सुबह स्कूल में हड़कम्प मचा हुआ था। मालती की खोज जारी थी। प्रबंधक हतप्रभ थे।
मालती ने काशी के अनाथालय का रुख कर लिया था।
@डॉ विपिन "व्याकुल"
गुरुवार, 10 अगस्त 2023
फ्लाईंग किस
मंगलवार, 30 मई 2023
क्रिकेटाम्बुकम्
आई पी एल मैच जब भी देखता हूँ तो वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जाग्रत हो उठती है। क्षेत्रवाद की भावना से लखनऊ सुपर जायंट्स (LSG) का सपोर्ट करने की कैसे सोचता जब पता चला कि कप्तान साहब के. एल. राहुल है। यू. पी. वाली फिलिंग नही आ पा रही है। यही हाल बाकी टीम की भी है। बस खिलाड़ी के बढ़िया खेल को ही आधार मानकर सपोर्ट कर रहे है। गुजरात टाइटन्स व चेन्नई सुपर किंग्स के बीच के फाईनल मुकाबले में ऊहापोह की स्थिति थी। समझ नही आ रहा था किसको सपोर्ट करे। तभी एकाएक "सर्वे भवन्तु सुखिन:" की भावना जोर मारने लगी। कोई भी जीते हमे क्या!!!!
एकबारगी चेन्नई सुपर किंग्स के हारने का भय सताने लगा। फिर क्या था???
शिव मंगल सिंह सुमन की वाणी,
"क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं...."
भय हंता का काम कर गयी।
पठानियों से लेकर गोरो की भी बेरोजगारी दूर हो गयी वो भी आउटसोर्स के सहारे। वाह रे हिन्दुस्तानियों... ग्लोबलाईजेशन का सदुपयोग तो सही मामले में आप ही कर रहे है....
वों दिन दूर नही 10-10 (टनटन) टूर्नामेंट हर जिले का हो जिसमें विदेशी खिलाड़ी क्रिस मॉरिस... बेन स्टोक्स.. कानपुर भौकाल या प्रयाग बकईत टीम से खेलते दिख जायें....
@डॉ विपिन "व्याकुल"
रविवार, 26 फ़रवरी 2023
चमचागीरी
आज जब चमचागीरी एक शान का विषय माना जाता है व किसी बड़े नेता के आगे-पीछे फोटो खिचवाना गर्व का विषय समझा जाता है। राजा हरि सिंह ठीक इसके उलट थे। वो चमचागीरी से बहुत ज्यादा चिढ़ते थे। उन्होनें चमचागीरी के लिये एक खिताब तय किया था जिसका नाम ‘ख़ुशामदी टट्टू’ था। इसमे बन्द दरबार में हर साल सबसे बड़े चमचे को "चाँदी और काँसे के भीख माँगते टट्टू की प्रतिमा" दी जाती थी। आज आवश्यकता है हर स्तर पर इस तरह के ‘ख़ुशामदी टट्टू’ जैसे पुरस्कारों की शुरुआत करने की ताकि चिन्हित किया जा सके चापलूसों को।
@डॉ विपिन "व्याकुल
कऊड़ा
कऊड़ा को छोटा पंचायत स्थल कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी। मचई साधे कऊड़ा के चारों ओर देश दुनिया की चर्चा का शीतकालीन सत्र कहना ही होगा। झगड़े की सम्भावना नही के बराबर ही रहता है क्योकि मजाल है कोई आग की तपिश छोड़ दे। मचई में बईठई का हक घरे का वरिष्ठों को ही रहता था। वईसे पियरा का छोटी-छोटी गोल गद्दियाँनुमा बनती थी। बाल्यावस्था में उसी पर बैठने का हक था। कऊड़ा जलानें का हुनर कुछ ही लोगो को होता था। कंडी या लकड़ी का सामंजस्य कैसे सेट किया जाये कि देर तक अग्नि प्रज्जवलित होता रहे। धूँआ आँख पर लगने पर ये कहा जाता था कि सासू बहुत मानती है..यह सुनकर मन प्रफुल्लित होना स्वाभाविक ही है। आलू या शकरकन्द को भून कर खाने का अलग ही मजा होता था।
@डॉ विपिन "व्याकुल"
मायाजाल
बगल से वो निकली ही थी। एक ही झलक देख पाया था मै। मुस्कुराई थी वों। मन में गुदगुदी होना स्वाभाविक ही था। पहले भी कई बार उसे देखा था पर कभी चेहरे पर निगाह गयी ही नही। आज अॉफिस के मोड़ पर मेरी बाईक और उसकी एक्टिवा आमने-सामने थी। मुस्कुरा रही थी वों।
अब तो लगभग डेली ही उससे मुलाकात हो जाया करती थी। जब भी पास से निकलती, मुस्कुराते हुये ही मिलती। अब तो मुझे उसकी टाईमिंग भी समझ में आ गयी थी। उसी समय मै भी घर से निकलने लगा।
कई दिन हो गये थे उसकों मुस्कुराते हुये। आज मन का नियन्त्रण समाप्त हो चुका था। विश्वामित्र साक्षात प्रगट हो चुके थे। काम का गुन ही होता है किं वों आपके बुद्धि को कैद कर ले। आज मै भी कैद में था। मेरी बाईक उसकी एक्टिवा के सामने थी।
मैने उससे पूछना चाहा ही था, "तुम्हारा नाम क्या है... कहॉ जॉब करती हो"
मुझे लगा वों किसी और से बात कर रही। कह रही थी, "रुकों यार, एक सिरफिरा नाम पूछ रहा है??" इसकों निपटा लू पहले।
मै कुछ समझ पाता.. इससे पहले उसने गले में लिपटी नागपाश जैसी किसी चीज को हटाया। ब्लूटूथ ही थी नागपाश के रूप में।
मैने उसको उसकी मुस्कुराहट के बारे में पूछा। उसने आश्चर्यचकित होकर मुझे देखा। बोली भाई!!! " मै किसी और से बात करती हूँ" " कृपया आप गलतफहमी न पालें"
वों फुर्र से हवा हो गयी।
मै जड़वत् रहा व उसके ब्लूटूथ की महिमा का शिकार हो चुका था।
@डॉ विपिन "व्याकुल"
शनिवार, 25 फ़रवरी 2023
जगत रहा भैया तू सोए मत जईहा
"जगत रहा भैया तू सोए मत जईहा"
'बलम परदेशिया' फिल्म का यह गाना मोहम्मद रफी द्वारा गाया गया है। ये गाना माया मोह से विमोह के लिये प्रेरित करता है। पसीने की कमाई पर जोर दिया गया है। बचपन का मेरा प्रिय गाना रहा है।
सोशल मीडिया पर कई-कई ग्रुप है। जब भी कोई मैसेज आता है। ये गाना याद आ जाता है। जैसे प्रेरित कर रहा हो "सोए मत जईहा"
आप सोने जा रहे हो और टन टन बज जाये तो मजाल है आप सो जाये। कभी-कभी मोबाइल रात को टन टना जाता है। एक बार ये सोच कर फोन उठाईये कि देखू कोई महत्वपूर्ण मैसेज तो नही। पास-पड़ोसी वाले मैसेज तो देखना ही पड़ेगा। "जगत रहा भैया" इतना जगा रहा है जितना रात भर कभी इम्तहान में भी नही जगे होंगे।
अगर गाने का आनन्द लेना हो तो सुनते रहिये और सोशल मीडिया को सोचते रहिये...
https://youtu.be/iUKDq5wPkBo
अगर आप मोबाइल के दूसरे किनारे पर बैठे शख्स को "जगत रहा भैया तू सोए मत जईहा" के पैमाने पर कसना चाहते है तो रात 2-3 बजे जरूर मैसेज करते रहिये और गाना खुद सुनिये उसे भी सुनाइये.....
@डॉ विपिन पाण्डेय "व्याकुल"
धाकड़ पथ
धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...
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वापसी की बेला में वों स्वयं ही रह जाता है उस अहसास के साथ जिसमें दर्द छुपा होता है बहुत सी बातों का कुछ अनकहे व बंद हो जाती है कानें खींच ...
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आज भिखारी ठाकुर जी की जयंती है। भिखारी ठाकुर भोजपुरी के बहुत ही नामचीन और बड़े गायक हैं उन्होंने परदेश पर कई गीत और गाने लिखे हैं इसमें मुझ...