FOLLOWER

शनिवार, 30 अक्टूबर 2021

अबे!!!!

एक चौराहे पर "Obey the rules" पंक्ति देखी.. दिमाग पर जोर आया... obey शब्द तो किसी चिर परिचित शब्द से मिलता जुलता है.. एकाएक स्मृतियों के किसी कोने से 'अबे' की आवाज आई। अवध के किसी भी शहर यानि प्रयागराज, लखनऊ कही भी चले जाइये 'अबे' शब्द की धूम का पता चल जायेगा। फिर क्या था गुस्सा होने की बजाय मुस्कुराहट ने स्थान ले लिया। अंग्रेजो पर गुस्सा बहुत आ रहा था। पर जैसे मुझे उत्तर मिल गया हो। 'अबे' बड़ा पावरफुल शब्द है। अगर किसी ने बोल दिया 'अबे'... उसके बाद आगे कोई और शब्द बोलने की जरूरत नही.. इस एक शब्द में इतनी शक्ति छुपी हुई है कि कुछ ज्यादा समझाने की जरूरत नही। कही-कही इसका भी अपभ्रंश हो गया जैसे 'कस में' 'अबे' से 'बे' और फिर 'में' में रूपान्तरण। सामने वाले ने 'अबे' को ठीक से समझ लिया तो समझो काम पक्का.. इस शब्द को बोलने के साथ ही साथ अगर आँखे लाल है तो समझो सामने वाले की ह्रदयागति कब रूक जाय कुछ नही कह सकते। अंग्रेजो का अपना दिमाग शब्दकोष के मामले में तंग था.. चुरा लिये हमारा शब्द.. a (abey) को o(obey) कर दिये.. उनका काम हो गया..

चिरकुटई की भी हद होती है..


@व्याकुल

शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2021

कनक

कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय, या खाये बौराय जग, वा पाये बौराय।

बचपन में अलंकार पढ़ते समय उक्त पंक्तियाँ रट ली थी।धतुरा तो गॉव में एक पड़ोसी को खाते देखा था। चार दिन तक बुत पड़े रहे वों। उनकी माई सारे संगी-साथी को गरियाती रही थी।  कम समय में ही पहले वाले कनक का अनुभव हो गया था। 

दूसरी वाली कनक तो ज्यादा खतरनाक थी। वैभव से जुड़ी चीज थी। समझने में समय लगा। गॉवों की शादी में कलेवा का परम्परा है। बौराने का प्रत्यक्ष उदाहरण कलेवा के समय देखा। दुल्हा रिषिया गया था सोने की चेन के लिये। बड़ा मनवनिया हुआ तब जाकर सब खत्म हुआ।

फिर तो जिनकों सोने की चेन मिली वो बुशर्ट या कुर्ते के ऊपर की बटन खोलकर लापरवाही वाले अंदाज में चेन निकाल देते थे जिससे लोगों को उनके बौराने का अंदाज लग जायें।

कुछ वर्ष पहले कानपुर में एक मजेदार घटना हुई। किसी बाबा ने घोषणा कर दी थी कि फलां जगह खुदाई की जाये तो सोने का भंडार मिलेगा। सरकार लग गयी थी खुदाई में। सारा हिन्दुस्तान बौरा गया था।

देख लीजिये कही आप में बौराने का कीड़ा तो नही लग गया..........

@व्याकुल

बुधवार, 13 अक्टूबर 2021

न्याय


महँगा

न्याय 

अमीरी चासनी में 

डूबा हुआ

बचे कतरन

पर निहारते

पसारते

गरीबी...


©️व्याकुल

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021

डर

निडरता बहुत आवश्यक है जीवन में। अगर आप डर गये तो समझिये गये काम से। डर आपका आत्मविश्वास छीन लेता है। 

समाज में जो लोग अग्रिम पंक्ति में है वो कही न कही अपनी निडरता की वजह से। हम आधे से ज्यादा समय इस बात पर निकाल देते है कि लोग क्या कहेंगे। इस प्रकार की चिंता ज्यादातर मध्यम समाज में होता है।

एक प्रकार का और भी डर देखने को मिल जाता है। ये है कल्पना कर लेना कि मेरा नुकसान हो रहा या इस व्यक्ति से नुकसान हो सकता है। फिर उसी के इर्द गिर्द ताने बाने बुन लेना। 

अध्यात्म की दृष्टि बहुत जरूरी होती इस डर से उबरने के लिये। इसमे खोने जैसा कुछ नही होता। सब यहीं पाया है कुछ खो भी दिया तो क्या हुआ।

मुझे तो अपने ताऊ जी से बहुत डर लगता था। बड़ी-बड़ी मूँछें, कड़क आवाज। एक बार निडर होकर मित्रवत क्या हुये डर का पता ही नही रहा। पता नही क्यो मीर असर ने ऐसा क्यो कहाँ..

तू ने ही तो यूँ निडर किया है

बस एक मुझे तिरा ही डर है

जो लोग किसी को निडर करते है उनके लिये मन में सम्मान का भाव रहता है। किसी एक के लिये भी आपके मन डर का भाव है तो आप निडर नही हो सकते।

मेरी तो ख्वाहिस है कोई कह दे जैसा तनवीर देहलवी जी कहते है..

साए से चहक जाते थे या फिरते हो शब भर

वल्लाह कि तुम हो गए कितने निडर अब तो



एक बार रात 12 बजे अकेले स्टेशन से अपने गॉव पैदल चला गया था। कुत्तों के भूँकने में डर दिख रहा था। मै था, मेरा साया था चाँदनी रात में और मन में हनुमान चालीसा....

@व्याकुल

रविवार, 3 अक्टूबर 2021

फिल्मी स्टार व राजनीति

फिल्मी स्टारों का राजनीति में आना हमेशा से ही रोचक रहा है। मै थोड़ा बहुत समझने लायक हुआ तो अमिताभ को राजनीति में पाया। इनके चुनाव प्रचार में पूरा परिवार सम्मिलित रहा है। जया जी माथे पर चश्मा चढ़ाये वोट माँगते हुये। पब्लिक को जया जी के शब्द सुनाई कहॉ देता था। वोट की परिभाषा तो वो जानते ही थे। वो तो गुड्डी को देख रहे थे। हेमवती नंदन बहुगुणा को हरा पाना कोई आसान बात थी क्या। 

उसी चुनाव प्रचार में अजिताभ बच्चन, हरिवंश राय बच्चन व उनकी मॉ को प्रयागराज के खत्री पाठशाला पर बोलते सुना था। 

                           चित्र: गूगल से

इन चुनावों से पहले बच्चन जी को अमृत प्रभात अखबार में देखा करता था। उस अखबार का एक पृष्ठ सिर्फ टॉकीजों में लगी फिल्मी से भरा रहता था। तब 15-20 टॉकिजों में बच्चन जी की फिल्में लगी रहती थी।

श्लोगन हवा में तैरते रहते थे। हम सभी बच्चे थे। श्लोगन समझ भले ही न आये पर जुबान पर रटा रहता था। 

दूसरे फिल्मी स्टार को सुना करता था वो थे सुनील दत्त। उनकी 2000 किमी की पदयात्रा याद है मुझे। कई वर्षो तक सांसद रहे है। फिल्मी स्टारों के राजनीति में आने वालों मे वो बेहतरीन थे। 

लम्बी फेहरिस्त है शत्रुघ्न सिन्हा, राज बब्बर, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना व हेमामालिनी इत्यादि कई लोग राजनीति में आये। कुछ क्षेत्रीय फिल्मों से भी आये जैसे रवि किशन व मनोज तिवारी आदि। कुछ राज्यसभा के लिये मनोनीत भी हुये।

वैसे दक्षिण भारत इस मामले में भाग्यशाली रहा है एन. टी. रामा राव को ही देखिये आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री तक रहे।

तमिलनाडू में एम. जी. रामचंद्रन व जयललिता का नाम विशेष तौर पर लिया जा सकता है। जयललिता 1984 से लेकर 2016 तक राजनीति में सक्रिय रही है।

यह शायद बहुत कम लोगो को पता होगा कि इमरजेंसी के बाद फिल्मी स्टारों ने " नेशनल पार्टी" नाम से पार्टी बनायी थी।

इंतेजार रहेगा फिर किसी सुपर स्टार का.....

@व्याकुल

गुरुवार, 30 सितंबर 2021

बापू

जब भी "रघुपति राघव...." धुन सुनाई पड़ता था। श्रद्धा के भाव उमड़ पड़ते थे। गाँधी जी बापू ऐसे ही नही कहे गये होंगे। संरक्षकत्व का भाव जनमामस में जगा जरूर होगा। 

एक आम इंसान जिसने राजनीति को अपने घोर आदर्श रूपी विचारों से भर दिया। संघर्ष से लड़ने का नया शस्त्र दिया। वों शस्त्र लोहे का नही था। विचारों का था।

विचारवान् व्यक्ति सांगठनिक ढांचा खड़ा करते है। अग्नि रूपी सत्ता की आंच से दूर ही रहते है क्योकि उनका विचार समग्र रहता है। वें पथ प्रदर्शक की तरह होते है। उनका कार्य हर क्षेत्र में पूर्णता का मानक खड़ा करना होता है।

गाँधी जी के अच्छें विचारो का स्वयं में समाहित करने की जो कला थी वो उन्हे श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर की ओर अग्रसर करती चली गयी।

अजातशत्रु बमुश्किल से मिलते है। गाँधी जी कोई अजातशत्रु नही थे। उनके भी कई आलोचक रहे है। दृष्टिकोण भिन्न हो सकते है। नज़रिया अलग हो सकता है पर गाँधी दर्शन अकाट्य व देशकाल से परे ही था। आज की पीढ़ी को लगता है जैसे वे अभी भी हमारे साथ है।

देश भ्रमण करना। बंगाल से पख्तून व कश्मीर से लेकर मद्रास तक अपने विचारों की अपार प्रभाव कौन बना पाया। कोई राजा-महाराजा नही थे जो राजसूय यज्ञ किये थे भारत पर एकछत्र राज्य के लिये। ये विचार का विजय ही था। सीमांत गाँधी से राजगोपालाचारी तक सब गाँधी दर्शन के संवाहक थे।

महामानव कहना समीचीन होगा बापू जी को। आदर्शों से समझौता कोई आसान काम नही। पर बापू जी ने आदर्शो को ऊपर रखा। कभी कोई समझौता नही चाहें असहयोग आंदोलन हो या देश बँटवारा। कही डिगे नही। आदर्श पूर्ण जीवन जीना आसान नही। मजबूत इच्छा शक्ति चाहिये अडिग बने रहने के लिये। वे संकीर्णता से दूरी बनाये रखना चाहते थे। सांप्रदायिक भावनाओ के शिकार हो सकते थे पर अपने इंसानियत को दूर ही रखा।

एक विदेशी, माउंटबेटन, जो पराधीन देश के अंतिम क्षणो में आये थे। माउंटबेटन के उद्गार को भला कौन नकार सकता है, "महात्‍मा गांधी को इतिहास में महात्मा बुद्ध और ईसा मसीह का दर्जा प्राप्‍त होगा।"

सत्य के लिये आग्रह "सत्याग्रह" एक मजबूत माध्यम बना न सिर्फ हिन्दुस्तान में वरन् विश्व में। आग्रह सत्य का हो तो बरबस ही वो संत याद आ जाते है......

@व्याकुल

बुधवार, 29 सितंबर 2021

अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस

कुछ दिन पहले एक बुजुर्ग से बात हो रही थी। उस दिन उनका जन्मदिवस था। मैने शुभकामनाओं के साथ 120 वर्ष की उम्र तक दीर्घायु होने की बात कही। वों बोले कम है। मै तो 150 वर्ष तक जिंदा रहने का प्लान किया हूँ। मै सन्न रह गया। ये उनके जिंदादिली का प्रत्यक्ष उदाहरण देख हतप्रभ रह गया। उनके शब्द अन्य बुजुर्गो के लिये प्रेरणादायी है।

इस देश में रिटायर होते ही ये मान लिया जाता है कि कार्य करने की उम्र गयी। कार्यालयों में रिटायर होने के 2-3 वर्ष पहले से ही लोग ढीले पड़ जाते है। मानसिक तौर पर अगर ढीले पड़ गये तो समझिये शारीरिक रूप से आप अक्षम्य हो जायेंगे।

कभी-कभी सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो देखने को मिल जाता है जहाँ बुजुर्ग नाचते गाते मिल जाते है। उन्हे कभी मत कहिये आप नाच नही सकते। आप लोग भी उनके साथ खूब नाचिये। 

मैने african proverb पढ़ा था कि "If you refuse the elder’s advice you will walk the whole day.” सही बात है। बुजुर्गो को नही सुनने का मतलब भटक ही जाना है।

अनुभव बहुत ही कमाल की चीज होती है। अनुभव उम्र के साथ बढ़ता ही जाता है। घर से आप निकले नही कि "फलां रास्ते नही जाना", ये सीख सुनने को मिल जाता है।

                      चित्र: गूगल से
पीढ़ी दर पीढ़ी अनुभव का स्थानान्तरण होता रहता है। बुजुर्ग पीढ़ियों को जोड़ने का काम करती है।

अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस हर वर्ष 1 अक्टूबर को 1990 से मनाया जाता रहा है। संयुक्त परिवार के विघटन से बुजुर्गों की स्थिति दयनीय हो गयी है जो कि भारत की पुरातन सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप नही है....

@व्याकुल

सोमवार, 27 सितंबर 2021

समौरी

अवधी बोली का एक शब्द है "समौरी" इसका अर्थ है समकक्ष या समव्यस्क। हमारे एक भाई है अशोक। मुझसे तीन माह बड़े है। ये कहा जाता है कि वो मेरे समौरी है। इस शब्द की व्युत्पत्ति कैसे हुई बता पाना सम्भव नही पर अवधी बोली का यह आम शब्द है।

अगर आयु के संदर्भ में लिया जाये तो समौरी में 2-3 माह छोटे भी हो सकते है और बड़े भी।

समौरी का अर्थ सिर्फ आयु से ही नही है भाव के भी परिपेक्ष्य में लिया जा सकता है जब भाव के अर्थ एक हो। 

नीचे दिये गये चित्र में मेरे समौरी अशोक भाई है-



आज से ही शुरू कर दीजिये तलाशना आपका समौरी कौन कौन है......

@व्याकुल

रविवार, 26 सितंबर 2021

हेंगा

गॉवों में बरधा (बैल) दुआर (घर के बाहर) की शोभा मानी जाती रही है। खेती की बात हो तो हेंगा शब्द बरबस ही मुँह में आ जाता है। हेंगा का उपयोग मिट्टी के ढेले को समाप्त कर जमीन को समतल करने के काम आता है। 

छोटे बच्चे हेंगा पर बैठकर स्केटिंग जैसा आनन्द लेते थे। बैलों से बँधी रस्सी को पकड़ लिया जाता था। रस्सी को पकड़ते वक्त इस बात का ख्याल रखा जाता था कि शरीर का ऊपरी हिस्सा पीछे की ओर ज्यादा झुका हुआ हो। आगे झुके तो चलते हेंगा में पैर फसने का डर रहता था। किसान गजब का संतुलन बनाये रखते थे।

हेंगा लम्बा व आयताकार व भारी होता है।



हेंगा को पाटा भी कहते है। वैसे देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है।

मै पहली बार बैठते समय डर रहा था। जब इसकी टेक्निकल्टी समझ आयी, फिर मजा आने लगा।

आप भी जरूर मजा लीजिये या बच्चों को इस अनुभव से जरूर अवगत कराइयें.....

@व्याकुल

शनिवार, 25 सितंबर 2021

फेसबुक

"घुटनों का ग्रीस कैसे बनाये" गलती से फेसबुक पर देख कर हटा ही था कि दूसरा वीडियो "घुटनों से कट-कट की आवाज कैसे कम करे" आ गया।  फेसबुक की महिमा का बखान कैसे करे। मन की भाव को समझ लेता है। एक वीडियो से हटे नही कि उसी टाईप के वीडियों की झड़ी लगा लेता है जैसे किसी दुकान पर पहुंच बस जाइये। कुछ न कुछ आपको पकड़ा ही देगा। 

मोटापा था तो सोचा "चर्बी कैसे घटाऊ" देख लूँ। फिर क्या था... अजवाईन पानी.. जीरा पानी... पता नही क्या क्या...सलाह पर सलाह...

एक विद्वान से बात की तो बोले ये सब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कमाल है... मशीनी इंटेलिजेंस... वर्च्युल इंटेलिजेंस और पता नही क्या क्या सुनने को मिल जाते है आजकल। मानवीय इंटेलिजेंस तो जैसे गायब ही हो गये है आजकल।मशीन ही सही मामलों में इस मशीनी युग में रिश्ता निभा रहा है।

मानवीय इंटेलिजेंस तो देखा व सुनता आ रहा हूँ पर वो भी किसी के मनोभावों को समझने व ताड़ने में चूक करता रहा है।

भावुक कर देता है फेसबुक। कुमार विश्वास के कविता से उठा ही था कि कविता तिवारी काव्य पाठ करती आ गयी। बनारस के कवि दुबे जी प्रगट हो गये। थोड़ा आगे बढ़े मुशायरा से वाकिफ हुये।

कुछ तो अनचाहा मेहमान की तरह प्रगट हो जाते है। 

मै तो सोच-सोच कर हैरान रह जाता हूँ... क्या देखूं और क्या न देखूं... 

खैर अब मुझे साँपों से कम डर लगता है क्योंकि मुरलीवाले हौसला का वीडियो देखता रहता हूँ.....

ऐसे ही आनन्द लेते रहियें.. बस मोबाइल में डेटा हो और चार्जर जेब में....

@व्याकुल

धाकड़ पथ

 धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...